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    कश्मीरी पंडितों में खुशी, 30 साल बाद बडगाम में फिर से खुला शारदा भवानी मंदिर; मुस्लिम समुदाय ने भी दिया साथ

    Updated: Sun, 31 Aug 2025 06:07 PM (IST)

    कश्मीर के बडगाम जिले में तीन दशक बाद शारदा भवानी मंदिर फिर से खोला गया। इस अवसर पर कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1990 में पलायन कर चुके पंडित परिवार पहली बार अपने पैतृक स्थान पर लौटे। समुदाय ने इसे शारदा माता मंदिर की शाखा बताया और वार्षिक आयोजन की उम्मीद जताई।

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    तीन दशकों बाद बडगाम ज़िले में फिर खुला शारदा भवानी मंदिर। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, जम्मू। कश्मीरी पंडित समुदाय ने तीन दशकों से भी अधिक समय बाद रविवार को बडगाम ज़िले में शारदा भवानी मंदिर को फिर से खोल दिया। इस समारोह में स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

    मध्य कश्मीर ज़िले के इचकूट गांव में आयोजित इस समारोह में मुहूर्त के बाद प्राण प्रतिष्ठा भी की गई। इस दौरान 1990 में आतंकवाद शुरू होने के बाद अपने घरों से पलायण कर चुका कश्मीरी पंडित परिवारों का एक समूह पहली बार अपने पैतृक स्थान पर वापस लौटा।

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    बडगाम स्थित शारदा स्थापना समुदाय के अध्यक्ष सुनील कुमार भट ने कहा कि हम कह सकते हैं कि यह पाकिस्तान स्थित शारदा माता मंदिर की एक शाखा है। हम लंबे समय से इस मंदिर को फिर से खोलना चाहते थे। स्थानीय मुसलमान भी यही चाहते थे।

    वे हमसे नियमित रूप से आकर मंदिर की पुनर्स्थापना करने के लिए कहते थे। उन्होंने कहा कि पंडित समुदाय ने 35 साल बाद मंदिर को फिर से खोला है। हमें उम्मीद है कि यह एक वार्षिक आयोजन होगा और हम माता रानी से प्रार्थना करते हैं कि समुदाय के सदस्य जल्द ही कश्मीर लौट आएं।

    भट ने कहा कि कुछ कश्मीरी पंडितों ने जिनमें से अधिकांश प्रधानमंत्री पैकेज के तहत काम कर रहे हैं, मंदिर का पुनर्निर्माण किया और एक नए मंदिर के निर्माण के लिए जिला प्रशासन से संपर्क किया है। राना मंदिर खंडहर हो गया है। हम निर्माण की योजना बना रहे हैं। हमने वहां एक शिवलिंग स्थापित किया है जो हमें इस स्थान की सफाई और जीर्णोद्धार के दौरान प्राप्त हुआ था।

    पुनः उद्घाटन समारोह में घाटी की प्रसिद्ध मिश्रित संस्कृति की झलक दिखाई दी। स्थानीय मुसलमान भी समारोह में शामिल हुए। भट ने कहा स्थानीय समुदाय के बिना यह संभव नहीं होता।उन्होंने कहा कि उनका समर्थन जबरदस्त रहा है।

    जब हम यहां आए थे, तब हम सिर्फ़ चार लोग थे। आज पूरा गांव हमारे साथ है। यह स्थानीय समुदाय के समर्थन को दर्शाता है। एक बुज़ुर्ग स्थानीय मुसलमान ने कहा कि पंडित समुदाय का अपनी जड़ों की ओर लौटने पर हार्दिक स्वागत है।ये लोग इसी गांव के निवासी हैं।

    हालात बिगड़ने से पहले हम साथ रहते और खाते-पीते थे। अगर उन्हें किसी चीज की ज़रूरत होती है, तो हम उनकी मदद के लिए मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी पंडितों की जन्मभूमि है और दोनों समुदायों के लोग साथ-साथ पले बढ़े हैं।हम साथ बिताए पलों को कैसे भूल सकते हैं। हमें खुशी है कि वे यहां आए और प्रार्थना की। यह उनकी आस्था का मामला है।

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