लद्दाख त्रासदी के 13 साल: आज ही के दिन प्रकृति ने धारण किया था रौद्र रूप, बाढ़ ने सबकुछ कर दिया था तहस-नहस
लद्दाख के लोग आज भी 13 साल पहले आई त्रासदी को याद कर सिहर उठते हैं। उनके ज़हन में आज भी 6 अगस्त की त्रासदी का खौफ है। 13 साल पहले आज ही के दिन प्रकृति ने रौद्र रूप धारण कर लिया था। भारी बारिश के बाद अचानक बादल फटने से आई बाढ़ ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया था। बाढ़ में 250 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी।
जम्मू-कश्मीर, जागरण डिजिटल डेस्क। Ladakh Floods 2010 13 साल पहले आज ही के दिन लद्दाख रीजन में बाढ़ आई थी। लद्दाख उस समय जम्मू-कश्मीर का हिस्सा हुआ करता था। वहीं, अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश हैं। लद्दाख में आई इस बाढ़ ने हजारों लोगों की जिंदगियां बर्बाद कर दी थी। लद्दाख के 71 कस्बे और गांव बाढ़ की चपेट में आने से क्षतिग्रस्त हुए थे। लेह भी बाढ़ की चपेट में आया था।
सरकारी आंकड़ों की मानें तो बाढ़ में कम से कम 255 लोगों की मौत हुई थी। जिनमें छह विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। बाढ़ की शुरुआत में ही 200 लोगों के लापता होने की सूचना मिली थी। वहीं, बाढ़ के कारण संपत्ति और बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान हुआ था। हजारों लोग बेघर हो गए थे। कुल मिलाकर 9000 लोग इस घटना से सीधे तौर पर प्रभावित हुए।
बादल फटने से आई थी अचानक बाढ़...
यह बात 6 अगस्त, 2010 की है। पूरे क्षेत्र में भारी बारिश का दौर जारी था। वहीं, रात के समय 12-12:30 के आसपास लद्दाख के कई रीजन में बादल फटने (Cloudburst) की घटना हुई। इसके बाद अचानक बाढ़ आ गई। मौसम केंद्र का डेटा बताता है कि 6 अगस्त की रात को केवल 12.8 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई थी। जबकि तूफान आने के बाद सिर्फ लेह में ही 150 मिमी/घंटा तक वर्षा रिकॉर्ड की गई।
रात में हुई इस बारिश ने सभी को झकझोर कर दिया। पूरे लद्दाख में लोग सहम गए थे। लेह में भारी बारिश से अस्पताल, बस टर्मिनल, रेडियो स्टेशन ट्रांसमीटर, टेलीफोन एक्सचेंज और मोबाइल-फोन टावर सहित कई इमारतें नष्ट हो गईं। बीएसएनएल की संचार व्यवस्थाएं पूरी तरह ध्वस्त हो गईं। बाद में भारतीय सेना ने कम्युनिकेशन सर्विस को बहाल किया।
कितना नुकसान हुआ?
भारी बारिश से स्थानीय बस स्टेशन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और कुछ बसें कीचड़ में एक मील से भी अधिक दूर तक चली गईं। शहर का हवाई अड्डा भी भारी बारिश में क्षतिग्रस्त हो गया था। वहीं, अगले दिन इसकी मरम्मत की गई। उसके बाद कई फ्लाइट्स को राहत कार्य और रेस्क्यू में लगाया गया। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि लेह के बाहरी इलाके में स्थित चोगलमसर गांव बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
लेह-लद्दाख के सोबू, फ्यांग, निमू, न्येह और बासगो गांवों में भी काफी नुकसान हुआ। कुल मिलाकर पूरे क्षेत्र की 71 बस्तियों में लगभग 1500 घरों के क्षतिग्रस्त होने की सूचना मिली। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जिस दौरान लेह-लद्दाख बाढ़ की चपेट में था, उस दौरान वहां 1000 विदेशियों सहित 3000 पर्यटक थे। इनमें से छह विदेशी पर्यटकों की मौत हो गई थी। आधिकारिक दस्तावेजों की मानें तो बाढ़ के कारण कम से कम 255 लोग मारे गए। वहीं, 29 लोगों को कोई पता नहीं लगा।
कैसे चला राहत-बचाव कार्य?
लद्दाख में अचानक आई बाढ़ ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया था। हजारों लोग विस्थापित हो गए थे। सैकड़ों लोग लापता हो गए थे। हर तरफ सिर्फ तबाही का मंजर था। जगह-जगह पानी भरा था। कई जगह तो 10-10 फीट तक जलभराव था। इस वजह से राहत एवं बचाव कार्य में काफी बाधा उत्पन्न हुई। इसके अलावा, लेह की ओर जाने वाली कई सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हो गए, जिससे राहत सामग्री ट्रक में ले जाना मुश्किल हो गया।
देवदूत बनकर आई भारतीय सेना
राहत एवं बचाव में लगी एजेंसियों ने कम से कम 400 लोगों को रेस्क्यू किया, जो बाढ़ की वजह से गंभीर रूप से घायल हुए थे। इनमें से कुछ को लेह के आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। भारतीय सेना (Indian Army) के जवानों ने बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाया। तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने बताया था कि बचाव कार्यों के लिए लेह में 6 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया।
उधर, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने दुख व्यक्त किया और मुआवजे की घोषणा की। मृतक के परिजनों को 1,00,000 रुपये और घायलों के लिए 50,000 रुपये मुआवजा दिया गया। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने प्रशासन को युद्ध स्तर पर राहत प्रयास करने का निर्देश दिया था।