'अब यह सब नहीं चलेगा, अब से पीड़ितों को उनका अधिकार-अपराधियों को मिलेगा दंड', एलजी सिन्हा की चेतावनी
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को लागू करने की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि आतंकी हिंसा के ...और पढ़ें

बरसों तक आतंकी हिंसा के पीड़ित परिवारों के दर्द और पीड़ा को नजरंदाज किया गया।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शनिवार को आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को पूरी तरह लागू करने की प्रतिबद्धता दोहरात हुए बिना किसी का नाम लिए कहा कि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक आतंकी हिंसा के पीड़ितों को नजरंदाज किया गया। एक तरफ आतंकियों के मददगारों को नौकिरयों दी गई, दूसरी तरह आतंकी हिंसा के पीड़ितों को बेसहारा छोड़ दिया गया। अब यह सब नहीं चलेगा, अब पीड़ितों को उनका अधिकार मिलेगा और अपराधियों को दंड मिलेगा।
आज यहां कश्मीर प्रांत में आतंकी हिंसा से 39 पीड़ितों कों अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र प्रदान करते हुए कहा कि यहां जो व्यवस्था और शासन रहा है, उसमें आतंकियों और अलगाववादियों का इकोसिस्टम इतना मजबूत था कि बरसों तक आतंकी हिंसा के पीड़ित परिवारों के दर्द और पीड़ा को नजरंदाज किया गया। आतंकवाद ने सिर्फ जाने नहीं लीं बल्कि इन परिवारों को भी तोड़ दिया और यह बेगुनाह लोग दशकों तक चुप्पी, उपेक्षा, भय और गरीबी के अंधकार में जीते रहे।
उन्होंने कहा कि हमने इन पीड़ितों के पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाकर, हमने उनकी इज्ज़त और आत्मसम्मान को बहाल करने के साथ-साथ शासन में उनका विश्वास पुन: बहाल करने का प्रयास किया है।
न्याय और आर्थिक स्थिरता का लंबा इंतजार समाप्त हुआ
उपराज्यपाल ने आतंकी हिंसा के कई पीड़ितों की कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि आतंकवादियों द्वारा की गई हर बेरहमी से हत्या के पीछे एक ऐसे घर की कहानी है जो कभी ठीक नहीं हो पाया, उन बच्चों की कहानी है जो बिना माता-पिता के बड़े हुए। उन्होंने कहा कि अनंतनाग की पाकीज़ा रियाज़, जिनके पिता रियाज अहमद मीर 1999 में मारे गए थे। श्रीनगर में हैदरपोरा की शाइस्ता, जिनके पिता अब्दुल रशीद गनई 2000 में मारे गए थे। दोनों को यहां सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र मिला है। जिससे न्याय और आर्थिक स्थिरता का उनका लंबा इंतजार आज अंतत. समाप्त हुआ है।
फ़ैयाज़ गनी के परिवार को आखिरकार न्याय मिला
उन्होंने कहा कि 19 वर्ष पहले एक आतंकरोधी अभियान में बलिदान हुए बीएसएफ के वीर अल्ताफ हुसैन के पुत्र इश्तियाक अहमद को भी सरकारी नौकरी मिल गई है, जिससे उस परिवार को सहारा मिला है, अपने पिता के सर्वोच्च बलिदान के बाद से उसने बड़ी मुश्किलें झेली हैं। काज़ीगुंड के दिलावर गनी और उनके बेटे, फ़ैयाज़ गनी के परिवार को आखिरकार न्याय मिला, जिनकी 4 फरवरी, 2000 को बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
एक ही दिन में, फ़ैयाज़ की छोटी बेटी फौजी ने अपनी ज़िंदगी के दो सहारे, पिता व दादा , दो पीढ़ियों के सहारे पिता व दादा और मार्गदर्शन को खो दिया। वह घर जो कभी प्यार और हंसी से गूंजता था, अचानक खामोशी से भरी जगह में बदल गया और 25 वर्षाें तक पूरा परिवार डर के साए में जीता रहा है।तीस साल पहले, श्रीनगर के रहने वाले अब्दुल अज़ीज़ डार की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। आज उनके परिवार की न्याय का लंबा इंतजार समाप्त हुआ है।
पीड़ित परिवारों को नया आत्मविश्वास मिला
उपराज्यपाल ने कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आतंक पीड़ित परिवारों को नया आत्मविश्वास मिला है और वे अब बिना भय के अपने अधिकारों की आवाज़ उठा रहे हैं। “पीढ़ियों से इन मामलों को वह प्राथमिकता नहीं दी गई जिसके वे हकदार थे। अब सरकार पीड़ितों की आवाज़ को मजबूती दे रही है और यह सुनिश्चित कर रही है कि उन्हें उनका अधिकार मिले।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पूरे समाज की साझा जिम्मेदारी है। उन्होंने दोहराया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के प्रति नीति बिल्कुल स्पष्ट है, सभी रूपों में आतंकवाद के लिए ज़ीरो टालरेंस। “जो लोग आतंकवादियों को पनाह, सहायता या समर्थन देंगे, उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।