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    Mirwaiz Umar: मीरवाइज के पिता को आतंकियों ने भून डाला था, फिर भी सुरक्षाबलों के खिलाफ उगलते रहे जहर

    By Preeti GuptaEdited By: Preeti Gupta
    Updated: Fri, 22 Sep 2023 05:32 PM (IST)

    ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेन्स के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक चार सालों की नजरबंदी के बाद आज शुक्रवार 22 सितंबर 2023 को मुक्त हुए हैं। उन् पर आतंकी हमले का अदेंशा देखते हुए नजरबंद किया गया था। उमर फारूक विश्व के 10 प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सूची में शामिल हैं। उन्हें कभी भी सियासत में आना पसंद नहीं था लेकिन पिता की हत्या के बाद उन्हें सियासत में आना पड़ा।

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    चार साल बाद नजरबंदी से आजाद हुए मीरवाइज मौलवी उमर फारूक

    नवीन नवाज, जम्मू। Mirwaiz Maulvi Umar Farooq: कश्मीर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में शुक्रवार को चार साल बाद ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक नमाज-ए-जुम्मा अदा करने के लिए आए। वह अगस्त 2019 से अपने घर में नजरबंद (House Arrest) थे। कश्मीर की अलगाववादी सियासत (Separatist Politics) में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले मीरवाइज मौलवी उमर फारूक 23 मार्च 1973 को तत्कालीन मीरवाइज मौलवी फारूक अहमद के घर पैदा हुए थे।

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    उमर फारूक के पिता को आतंकियों ने उतारा मौत के घाट

    श्रीनगर के एक मिशनरी स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने वाले उमर फारूक ने इस्लामिक स्टडीज में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। उनके पिता मीरवाइज मौलवी फारूक को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने 21 मई 1990 को उनके घर में ही मौत के घाट उतार दिया था। पिता के देहांत के बाद उमर फारूक को कश्मीर का मीरवाइज नियुक्त किया गया और वह जामिया मस्जिद के प्रमुख इमाम बने। 

    सर्वसम्मति से चैयरमैन बने फारूक

    साल 1993 में कश्मीर में विभिन्न अलगाववादी संगठनों ने मिलकर जब हुर्रियत कॉन्फ्रेन्स का गठन किया तो उसे मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की अहम भूमिका रही। उस समय हुर्रियत में लगभग 30 छोटे बड़े अलगाववादी दल शामिल थे और मीरवाइज मौलवी उमर फारूक को सर्वसम्मति से उसका चेयरमैन बनाया गया।

    विश्व के 10 प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की लिस्ट में शामिल हैं उमर

    मौलवी उमर फारूक को विश्व के 10 प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सूची में भी शामिल किया गया है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक की पत्नी शीबा मसूदी मूलत: कश्मीरी हैं, लेकिन उनका परिवार अमेरिका जाकर बस गया है। वह अमेरिकी नागरिक हैं और साल 2002 में मीरवाइज के साथ शादी के लगभग सात साल बाद 2009 में नियमों की अनदेखी कर उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।

    उमर फारूक पर करोड़ों की संपत्ति रखने का आरोप

    मीरवाइज मौलवी उमर फारूक से आतंकी फंडिंग और हवाला मामले में भी कई बार पूछताछ हो चुकी है। उन पर न सिर्फ कश्मीर घाटी में बल्कि दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों और दुबई में भी करोड़ों रूपये मूल्य की संपत्ति रखने का आरोप है। साल 2019 में जब मीरवाइज मौलवी उमर फारूक को उनके घर में नजरबंद किया गया था तो उस समय उनके घर से एक 40 फुट ऊंचा एंटिना जो इंटरनेट की निर्बाध सेवा प्रदान करता था और एक हॉटलाइन जिससे वह कथित तौर पर पाकिस्तान में सीधा संवाद करते थे, बरामद किए जाने का दावा किया गया था।

    कभी भी सियासत में नहीं आना चाहते थे मीरवाइज मौलवी उमर फारूक

    बचपन में क्रिकेट के शौकीन रहे मीरवाइज मौलवी उमर फारूक को कभी भी सियासत पंसद नहीं थी। उन्होंने खुद एक बार कहा था कि मुझे मीरवाइज नहीं बनना था, मैं राजनीति में नहीं आना चाहता था। मैं तो इंजीनियर बनना चाहता था। लेकिन, पिता की हत्या के बाद मुझे यह जिम्मेदारी संभालनी पड़ी और मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक हमेशा कश्मीर मसले के समाधान के लिए त्रिपक्षीय बातचीत पर जोर देते रहे हैं।

    'बंदूक कश्मीर मसले का हल नहीं'

    साल 1995 में उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि कश्मीर में जारी अलगाववाद और आतंकी हिंसा किसी भी तरह से वैश्विक इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों के हिंसक संघर्ष से पूरी तरह अलग है। यह कश्मीर की आजादी और कश्मीरियों के हक-ए खुद इरादियत के लिए है। कश्मीरी हिंदुओं को वापस कश्मीर लौटना चाहिए। बंदूक कश्मीर मसले का हल नहीं है, लेकिन इसने कश्मीर मसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। बंदूक ने जितना काम करना था कर दिया,अब कश्मीर मसले का राजनीतिक हल तलाशना जरूरी है।

    1997 में हुर्रियत के अध्यक्ष पद से उमर फारूक ने दिया इस्तीफा

    पाकिस्तान को कश्मीरियों का हमदर्द मानने वाले मीरवाइज मौलवी उमर फारूक हमेशा कहते रहे कि पाकिस्तान सिर्फ राजनैतिक, कूटनीतिक समर्थन करता है। हुर्रियत के विभिन्न घटकों में बढ़ते मतभेद के बीच वर्ष 1997 में उन्होंने हुर्रियत के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत की कमान संभाली। गिलानी का दो वर्ष पूर्व निधन हो गया है।

    वह कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा देते थे। वर्ष 2002 में विस चुनावों में हुर्रियत के विभिन्न दलों पर अपने छद्म उम्मीदवार मैदान में उतारने और दिल्ली के साथ पर्दे के पीछे बातचीत के मुददे पर हुर्रियत कान्फ्रेंस गिलानी गुट और मीरवाइज गुट मे बंट गई।

    भारतीय सुरक्षाबलों को कातिल व डाकू कहा

    अक्टूबर 2014 में रॉयल स्ट्रेटजिक इस्लामिक स्टडीज सेंटर जार्डन द्वारा दुनिया के 500 प्रमुख और प्रभावशाली इस्लामिक नेताओं की जारी सूची में शामिल मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कभी भी अपने पिता के हत्यारे आतंकियों की खुलकर निंदा नहीं की, लेकिन उन्होंने एक बार आतंकियों व उनके हैंडलरों और समर्थकों को कश्मीर मुद्दे व कश्मीरियों के नाम पर अपनी तिजौरियां भरने वालो को चोर कहा था।

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    पाकिस्तान भी गए थे उमर फारूक

    उन्होंने भारतीय सुरक्षाबलों को एक बार लाइसेंसधारी कातिल व डाकू पुकारा था। उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ बातचीत में हिस्सा भी लिया। वह कश्मीर मुद्दे पर बातचीत लायक माहौल बनाने और आम सहमित तैयार करने के लिए कारवान ए अमन बस सेवा के जरिए उड़ी के रास्ते पाकिस्तान भी गए थे।

    अवामी एक्शन कमेटी है नेशनल कॉन्फ्रेन्स की राजनीतिक विरोधी

    मीरवाइज मौलवी उमर फारूक हर शुक्रवार को ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में नमाज की अगुआइ करने के अलावा नमाजियों को संबोधित करते रहे हैं। उनके मुरीदों में सिर्फ अलगाववादी विचारधारा के लोग नहीं है। कश्मीर के कई मुख्यधारा के राजनीतिक नेता व अन्य लोग उनके अनुयायी हैं। अवामी एक्शन कमेटी को श्रीनगर में परम्परागत रूप से नेशनल कॉन्फ्रेन्स का राजनीतिक विरोधी माना जाता है।

    मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और सैयद अली में था 36 का आंकड़ा

    मीरवाइज के समर्थकों को बकरा कहा जाता रहा है और श्रीनगर में शेर-बकरा की लड़ाई-दुश्मनी जगजाहिर है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करते थे। कश्मीर मसले पर जब केंद्र सरकार के साथ क्वाइट डिप्लोमेसी के तहत बातचीत की प्रक्रिया को लेकर जब गिलानी ने एतराज जताया तो उन्होंने सीधे शब्दों में कहा था हू द हैल इज गिलानी।

    एक मंच पर नजर आए गिलानी और मीरवाइज

    अलबत्ता, वर्ष 2008 में श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान वह गिलानी के साथ एक मंच पर नजर आने लगे, लेकिन हुर्रियत का एकीकरण नहीं हुआ। कहा जाता है कि मीरवाइज को फिर से गिलानी के साथ एक मंच पर आने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों ने मजबूर किया था।

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