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    कश्मीर घाटी में सड़े गले मांस के खिलाफ अभियान जारी, सब्जियों के आसमान छूते दामों से जनता परेशान

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 05:40 PM (IST)

    श्रीनगर में सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं जिससे आम लोग परेशान हैं। कश्मीरी हाक से लेकर फलियों तक सभी सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं। गृहिणियां खरीदारी कम करने को मजबूर हैं और दिहाड़ी मजदूरों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है। छात्रों को भी परेशानी हो रही है। व्यापारियों का कहना है कि वे थोक मंडी से ही महंगी सब्जियां खरीदते हैं।

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    अधिकारियों का कहना है कि उत्पादन बढ़ा है, पर लोगों को सस्ती सब्जियां चाहिए।

    जागरण संवाददाता, श्रीनगर। कश्मीर घाटी में खराब मटन के डर के बाद अपनी थालियों में मांस व चिकिन की बोटी की जगह सब्जी तरकारी से सजाने का प्रयास कर रहे घाटी के लोग अब नई परेशानी से जूझने लगे हैं। सब्जियों की आसमान छूती कीमतें उनके स्वाद को फीका कर रहे हैं। जिससे लोग निराश हैं और उनका गड़बड़ाता रसोई बजट उनकी जेबें हलकी कर रहा है। हालांकि डेढ़-दो वर्षों के भीतक घाटी में सब्जियों की उपज में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली।

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    श्रीनगर समेत घाटी के अधिकांश बाजारों में आम सब्जियों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। कोलार्ड ग्रीन(कश्मीरी हाक) जो अौसतन 40-50 रुपये एक किलोग्राम मिलता था, अब 80-100 रुपये प्रति किलोग्राम, फराशबीन 160 रुपये, करेला और लौकी 100 रुपये प्रति किलोग्राम और बैंगन 90 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है।

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    आम लोगों के पसीने छूटे

    सब्जियों की कीमतों में एक दम से भारी उछाल से आम लोगों के पसीने छूट रहे हैं। रिहाना नामक एक गृहिणी ने कहा, यह पिछले कई सालों में मैंने देखा सबसे बुरा हाल है। सब्जियां अब हम जैसे एक औसत परिवार के लिए सस्ती नहीं रहीं। रिहाना ने कहा,आसमान छूती सब्जियों की कीमतें देख मैंने अपनी खरीदारी आधी कर दी थी। मैं 300 रुपये लेकर आई थी, उम्मीद थी कि दो दिन के लिए काफ़ी खरीद लूंगी। मैं बस एक छोटा सा थैला लेकर लौटी और वह भी बिना फलियों या लौकी के।”

    मौसमी सब्जियां खाकर कर रहे गुजारा

    लाल चौक की चहल-पहल वाली सब्ज़ी मंडी में माहौल तनावपूर्ण था। ग्राहकों ने विक्रेताओं से मोलभाव किया, लेकिन कई खाली हाथ लौट गए। सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी कयूम शाह ने कहा, पिछले हफ़्ते मैंने 120 रुपये में फलियाँ खरीदी थीं। आज, वही फलियाँ 160 रुपये में मिल रही हैं। पेंशन मिलने पर, हर रुपया मायने रखता है। अब हम मौसमी सब्ज़ियां खाते हैं और महंगी चीज़ें खाने से परहेज़ करते हैं। यह वर्षों में मैंने देखा सबसे बुरा समय है। दिहाड़ी मजदूरों का कहना है कि बढ़ोतरी ने उन्हें कष्टदायक विकल्प चुनने के लिए मजबूर किया है। बटमालू के हफीजुल्लाह ने कहा, मैं प्रतिदिन 500-600 रुपये कमाता हूं। घर में एक दिन की सब्जी अब 300 रुपये से कम में नही आती। अब आप बताओ,मैं घर के बाकी खर्चों को कैसे पूरा करूं।

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    किराए के मकानों में रहने वाले छात्र भी परेशान

    किराए के मकानों में रहने वाले छात्र भी इस परेशानी से जूझ रहे हैं। हज़रतबल के विश्वविद्यालय के छात्र वक्कास ने कहा, हम साथ मिलकर खाना बनाते थे और खर्चा बाँट लेते थे। अब, पैसे मिलाकर भी ठीक से खाना नहीं बन पा रहा है।" यहां तक कि विक्रेता भी मानते हैं कि व्यापार मुश्किल हो गया है।

    परिमपोरा फल और सब्ज़ी मंडी के एक व्यापारी मोहम्मद इब्राहीम ने कहा, हमें ऊंची कीमतों के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन हम थोक मंडी से बढ़ी हुई कीमतों पर खरीदते हैं। उसके बाद ट्रांस्पोर्ट व ढुलाई का खर्चा, लदान शुल्क और गर्मी के कारण होने वाली बर्बादी, ये सब मिलकर बढ़ जाते हैं। एेसे में हमें अपना मुनाफा भी देखना है। इब्राहीम ने कहा,हम मानते हैं कि खरीददार सब्जी की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं। लेकिन हम भी क्या करें। हम भी बेबस हैं।

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    भीषण गर्मी के कारण खराब हुई अधिकांश फसल

    अखिल कश्मीर फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने मांस कांड को सब्जियों की कीमतों में अचानक वृद्धि होने का कारण न ठहराते हुए खराब मौसम और आयात पर निर्भरता की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, इस भीषण गर्मी के कारण हमारी अधिकांश फसल बर्बाद हो गई है। इस मौसम में हम कश्मीर के बाहर से आपूर्ति पर बहुत अधिक निर्भर हैं, और इससे कीमतें बढ़ गई हैं।

    घाटी में सब्जी उत्पादन में हुई वृद्धि

    घाटी के सब्जी क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज किए जाने के बावजूद कीमतों में उछाल आया है। आधिकारिक आंकड़े 2024-25 में उत्पादन मूल्य 1,239 करोड़ रुपये बताते हैं, जो 2023-24 में 1,049 करोड़ रुपये और 2022-23 में 541 करोड़ रुपये से अधिक है। 10.52 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता के मुकाबले 16.69 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के साथ, घाटी अकेले इस वर्ष 6.17 लाख मीट्रिक टन अधिशेष में है। कृषि अधिकारी इस वृद्धि का श्रेय नीतिगत उपायों, उच्च उपज वाले बीजों की किस्मों, पॉलीहाउस खेती और बेहतर सिंचाई को देते हैं।

    सरकारी आंकड़ों से नहीं भरता पेट

    एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हम आत्मनिर्भर हैं और दूसरे राज्यों को निर्यात कर रहे हैं। सब्ज़ियाँ हमारी कृषि अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार बन रही हैं।" हालाँकि, उपभोक्ताओं के लिए ये आंकड़े कोई राहत देने वाले नहीं हैं। बेमिना के एक दुकानदार फ़ारूक़ अहमद ने कहा, "वे अधिशेष और निर्यात की बात करते हैं। यह ठीक है। लेकिन हम बस ऐसी कीमतें चाहते हैं जो हमारी जेबें खाली न करें।

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    फारूक ने कहा, आंकड़े मेरे परिवार का पेट नहीं भरते सस्ती सब्ज़ियां भरती हैं। यहां पर यह बताना असंगत नही होगा कि घाटी में अधिकांश लोग मांसाहारी हैं और देश में मांस खाने वाले क्षेत्रों में घाटी पहले नम्बर पर है। यहां प्रति वर्ष औसतन 600 लाख किलोग्राम मांस की खपत होती है जिसमें से आधे से अधिक बाहरी राज्यों से सप्लाई होता है।