90 की उम्र में अलगाववादी नेता प्रो. अब्दुल गनी बट का निधन, महबूबा मुफ्ती के पिता से था ये खास रिश्ता
प्रो. अब्दुल गनी बट पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के सहपाठी ने 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कश्मीर पर पाकिस्तानी एजेंडे को मजबूत करने के लिए मुस्लिम कॉन्फ्रेंस को पुनर्जीवित किया। गिलानी की कश्मीर नीतियों के आलोचक बट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष भी रहे।

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में भूचाल लाने वाले ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व चेयरमैन प्रो. अब्दुल गनी बट का निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और 90 वर्ष के थे। उन्होंने उत्तरी कश्मीर के सोपोर स्थित अपने पैतृक निवास में अंतिम सांस ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षित बट कट्टर अलगाववादी नेता थे और कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना करते थे।
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद के सहपाठी रहे प्रो अब्दुल गनी ने वर्ष 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। इसी फ्रंट में गिलानी, अब्दुल गनी लोन, मीरवाइज मौलवी निसार, शब्बीर शाह सरीखे अलगाववादी शामिल थे। यासीन मलिक और सल्लाहुदीन भी इस फ्रंट की पैदायश हैं। फ्रंट ने 1987के चुनाव में भाग लिया और हार के बाद इसने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर चुनावी धांधली का आरोप लगाया था।
प्रो अब्दुल गनी बट ने कश्मीर पर पाकिस्तानी एजेंडे को मजबूत बनाने के लिए मुसलिम कॉन्फ्रेंस को नए सिरे से खड़ा किया था। कहा जाता है कि उन्हें इसके लिए गुलाम जम्मू कश्मीरके तत्कालीन प्रधानमंत्री स अब्दुल क्यूम खान ने अपने संसाधनों से पूरी मदद की थी।
कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की कश्मीर नीतियों के कटु आलोचक रहे प्रो अब्दुल गनी बट ने 1993 में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के गठन में सक्रिय भूमिका निभाईद्ध वह इसके अध्यक्ष भी रहे और वर्ष 2003 में हुर्रियत कान्फ्रेसं में विभाजन के बाद वह मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के गुट का हिस्सा बन गए।
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वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान की मौत के बाद कश्मीर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के खिलाफ उन्होंने खुद को अलगाववादियो के हड़ताली कैलेंडर से पूरी तरह अलग करते हुए कहा कि यह कश्मीर की तबाही से ज्यादरा कुछ नहीं है। इनसे कश्मीर का भला नहीं होगा और न कश्मीर में कभी जनमत संग्रह या आजादी की बात बनेगी,इसके लिए कोई प्रभावी तरीका अपनाया जाना चहिए।
उन्होंने एक बार नहीं कई बार कहा कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कश्मीरियों की उम्मीदों को पूरा करने में, कश्मीर में आजादी के एजेंडे के लिए , कश्मीर समस्या के समाधान के लिए कोई प्रभावी रोडमैप देने में विफल रही है। वर्ष 2017 में उन्होंने भारत सरकार के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा से भी मुलाकात की थी,जिसके आधार पर मुस्लिम कान्फ्रेंस के नेताओंने उन्हें संगठरन से निष्कासित कर दिया, लेकिन वह हुर्रियत में बने रहे।
चार जनवरी 2011 को उन्होंने श्रीनगर में एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारे अपने ही कुछ लोगों को,हमारे अपनों ने ही कत्ल किया और कत्ल कराया है। उनके इस बयान के बाद पूरे कश्मीर में खलबली मचल गई थी। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया था,लेकिन उन्होंने यह बात मीरवाइज फारूक अहमद और अब्दुल गनी लोन की हत्या के संदर्भ में कह थी।
खुद उनके भाई की हत्या भी आतंकियों ने की थी। उन्होंने कहा था कि मझे पता है कि सच कड़वा है और इसे कहने का खतरा है,लेकिन मुझे कोई चुप नहीं करा सकता। उनहोंने कभी सार्वजनिक तौर पर कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी का नाम लेकर उन्हें इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया, लेकिन वह दबे मुंह कहते थे गिलानी जैसे नेताओं ने कश्मीर को नुक्सान पहुंचाया है।
कश्मीर मुद्दे पर नई दिल्ली से बातचीत को लेकर उन्होंने सीधे सैयद अली शाह गिलानी पर निशाना साधते हुए कहा था कि हम लोग जब बातचीत की वकालत करें तो काफिर हो जाते हैं,लेकिन खुद संसदीय प्रतिनिधिमंडलों से मिलने में काेई हिचक नहीं है,यह कैसा दोगलापन है।
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