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    J&K News: स्थानीय घरों में नहीं, घने जंगलों के बंकरों में ठिकाने बना रहे आतंकी; सुरक्षाबलों के सामने आई नई चुनौती

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 05:23 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठन अब स्थानीय घरों की बजाय जंगलों में भूमिगत बंकर बना रहे हैं। कुलगाम में एक मुठभेड़ के दौरान इसका खुलासा हुआ। सुरक्षा अधिकारी चिंतित हैं क्योंकि आतंकियों को ऊंची पहाड़ियों में रहने के निर्देश मिले हैं। सेना नई रणनीति बना रही है। स्थानीय समर्थन की कमी के कारण आतंकी बंकरों का सहारा ले रहे हैं।

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    घने जंगलों में भूमिगत बंकरों में बना रहे आतंकी ठिकाने। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, जम्मू। आतंकी संगठनों ने अब जम्मू-कश्मीर में अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए स्थानीय घरों में शरण लेने के बजाय घने जंगलों और ऊंची चोटियों के अंदर डिजाइन किए गए भूमिगत बंकर बना रहे हैं। स्थानीय समर्थन में कमी के कारण यह रणनीतिक बदलाव सेना और अन्य सुरक्षा बलों के लिए एक नई चुनौती पेश कर रहा है।

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    बीते सप्ताह कुलगाम ज़िले के ऊंचाई वाले इलाकों में एक मुठभेड़ के दौरान यह सामने आया जहां दो आतंकी मारे गए। जैसे-जैसे अभियान आगे बढ़ा, सुरक्षाबलों को राशन, छोटे गैस स्टोव और प्रेशर कुकर के साथ-साथ हथियार और गोला-बारूद से भरी एक गुप्त गुफा मिली।

    एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुलगाम और शोपियां जिलों के साथ-साथ जम्मू क्षेत्र में पीर पंजाल के दक्षिण में भी यह चलन व्यापक हो गया है जहां घने जंगल आतंकियों के लिए छिपने की सही जगह बन रहे हैं।

    हालांकि सुरक्षाकर्मी इन नए ठिकानों में से कुछ का पता लगाने में कामयाब रहे हैं लेकिन अधिकारी उन खुफिया सूचनाओं के बाद कि आतंकवादियों को ऊंची और मध्य पहाड़ियों में रहने और सीमा पार से निर्देश मिलने पर हमले करने के लिए कहा गया है, इसे लेकर चिंतित भी हैं और इससे निपटने की नई रणनीति भी बना रहे हैं।

    एक अधिकारी ने कहा यह एक परेशान करने वाल है कि आतंकवादी अब इन भूमिगत बंकरों के अंदर अच्छी तरह से स्थापित हो गए हैं। 2016 की सफल सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व करने वाले सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा के अनुसार ये ऊंचाई पर स्थित खाइयां और बंकर 1990 और 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की गई रणनीतियों की याद दिलाते हैं।

    रणनीतिक उत्तरी कमान की कमान संभालने वाले लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने वर्तमान में मानवीय खुफिया जानकारी के अभाव के एक बड़े मुद्दे की ओर भी इशारा किया जो पिछले आतंकवाद रोधी अभियानों में एक प्रमुख संसाधन था। उन्हें विश्वास है कि सेना इस नई चुनौती से निपटने के लिए अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करेगी।

    पुडुचेरी पुलिस के सेवानिवृत्त महानिदेशक बी श्रीनिवास जिन्होंने जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ तीन दशक बिताए, ने भी इसी आकलन को दोहराया और कहा कि आतंकवादियों को ये बंकर बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है क्योंकि वे अब कस्बों और गांवों में आश्रयों पर निर्भर नहीं रह सकते।

    लोगों द्वारा अलगाववादी विचारधारा से मुंह मोड़ने के साथ, घुसपैठ करने वाले आतंकवादी अब स्थानीय लोगों की नज़रों से बचने के लिए इन गुप्त गुफाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।स्थानीय लोगों को अब वे मुखबिर मानते हैं।

    यह 2003 में आपरेशन सर्प विनाश में देखी गई घटना की पुनरावृत्ति होगी जब सुरक्षाबल पुंछ क्षेत्र में छिपे हुए आतंकी शिविरों को निशाना बनाने में सफल रहे थे।

    इस नई चुनौती का मुकाबला करने के लिएए सुरक्षा एजेंसियां खतरे का मुकाबला करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करने की योजना बना रही हैं और आतंकवाद रोधी अभियानों के दौरान ज़मीनी रडार से लैस ड्रोन और भूकंपीय सेंसर तैनात करने की योजना बना रही हैं।

    सुरक्षा ग्रिड का तात्कालिक उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है जो इन वन क्षेत्रों में खुफिया जानकारी में सुधार करना और शेष आतंकवादियों को बेअसर करने के लिए इन नए उपकरणों का उपयोग करना है।

    अतीत में सेना को भूमिगत बंकरों और मानव निर्मित गुफाओं के खतरे का सामना करना पड़ा था लेकिन यह 2020-22 में मुख्य रूप से पुलवामा, कुलगाम और शोपियां में आवासीय क्षेत्रों में था।