Deoghar News: बैद्यनाथ मंदिर में चढ़ाए गए बिल्वपत्र से बनेगी जैविक खाद, खेत में करेगा संजीवनी का काम
देवघर के बैद्यनाथ मंदिर में भक्तों द्वारा चढ़ाए गए बिल्वपत्र से जैविक खाद बनाने की पहल की जा रही है। मंदिर प्रबंधन ने बिल्वपत्र को बर्बाद होने से बचाने के लिए यह योजना बनाई है। बिल्वपत्र की कुटाई और ग्रेडिंग शुरू हो गई है और केंचुओं से प्रोसेसिंग कर वर्मी कंपोस्ट भी तैयार किया जाएगा।

आरसी सिन्हा, देवघर। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के स्पर्श मात्र से ही व्यक्ति निरोगी हो जाता है। बाबा वैद्यों के वैद्य हैं। उन पर चढ़ाए गए जल का सेवन करने से रोग दूर हो जाते हैं। वह निरोगी हो जाता है। उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यह कोई पौराणिक कथा नहीं है। दरबार में करोड़ों लोगों की आस्था इसे सिद्ध करती है।
इसलिए उन्हें चढ़ाए गए बिल्वपत्र से बनी जैविक खाद खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाकर उसे बंजर होने से बचाएगी। उसके लिए संजीवनी का काम करेगी। आस्था का यह बिल्वपत्र इधर-उधर बर्बाद न हो, इसे ध्यान में रखते हुए बाबा बैद्यनाथ मंदिर प्रबंधन ने इस दिशा में पहल की है।
बिल्वपत्र बाबा को अत्यंत प्रिय है। लाखों भक्त गंगाजल के साथ बिल्वपत्र चढ़ाते हैं। बिल्वपत्र आस्था का प्रतीक है। यह बर्बाद न हो, इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने बिल्वपत्र से जैविक खाद बनाने की योजना बनाई है।
इसके प्रसंस्करण के लिए मंदिर के पास एक छोटा सा प्लांट है। यहां बिल्वपत्र की कुटाई और ग्रेडिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। सावन के पवित्र महीने में यह काम शुरू हो गया है। योजना के मुताबिक केंचुओं से प्रोसेसिंग कर वर्मी कंपोस्ट भी तैयार किया जाना है। बाबा को चढ़ाया जाने वाला बिल्वपत्र खास होता है, प्रोसेसिंग में किसी लिक्विड की जरूरत नहीं होती।
सावन के बाद इस प्रोजेक्ट में और तेजी आएगी। अभी श्रावणी मेला चल रहा है। नगर विकास विभाग भी इस प्रोजेक्ट को करने में रुचि ले रहा है। मंदिर में चढ़ाए जाने वाले बिल्वपत्र की खासियत यह है कि इससे खाद तैयार करने के लिए प्रोसेसिंग के लिए अलग से लिक्विड मिलाने की जरूरत नहीं होती।
जानकार बताते हैं कि मंदिर में चढ़ाए जाने वाले बिल्वपत्र पर शहद, दूध, घी, गन्ने के रस का लेप होता है। इसलिए 24 घंटे बाद इसमें बैक्टीरिया बन जाता है। और अगर इसे एक महीने तक ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो भी यह अपने आप तैयार हो जाता है। लेकिन इसे और प्रभावी बनाने के लिए केंचुओं से प्रोसेसिंग की जाएगी।
नाइट्रोजन की मात्रा अधिक कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक सह प्रभारी सुजानी रंजन ओझा बताते हैं कि इसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है केवीके में चार साल पहले इसका ट्रायल रन हो चुका है। वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की गई थी।
बता दें कि बाबा मंदिर से प्रतिदिन एक से डेढ़ टन बिल्वपत्र एकत्रित हो रहा है। अब सावन शुरू होते ही इसके उठाव व डंपिंग का काम शुरू हो गया है। बाबा मंदिर से इसे मानसिंघी स्थित ग्रेडिंग मशीन व थ्रेसिंग मशीन प्लांट तक पहुंचाया जा रहा है। इसे अलग करने के बाद इसकी प्रोसेसिंग की जा रही है।
बिल्वपत्र से तैयार खाद से जैविक खाद बनाई जाएगी। और धूप भी बनाई जाएगी। प्रोसेसिंग प्लांट शुरू कर दिया गया है। एक माह बाद यह तैयार होने लगेगा। इसमें केवीके से भी सहयोग लिया जाएगा। -रवि कुमार, एसडीओ सह बाबा मंदिर प्रभारी।
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