बेजुबानों से बेदर्द सरकार: झारखंड में 12 साल बाद भी डॉक्टर और दवा के बिना चल रहे सरकारी पेट क्लिनिक
झारखंड के सात जिलों में 2013 से चल रहे सरकारी पेट क्लिनिक में डॉक्टर और कर्मचारियों की कमी है। दवा उपकरण और बजट के अभाव में बेजुबानों का इलाज प्रभावित हो रहा है। अलग-अलग जगहों के पशु चिकित्सकों को प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है जिससे क्लिनिकों की हालत खराब है और पालतू पशुओं के मालिकों को इलाज के लिए निजी क्लिनिकों पर निर्भर होना पड़ रहा है।

रविशंकर सिंह, जागरण, धनबाद। पशुपालन विभाग ने धनबाद समेत झारखंड के सात जिलों में बेजुबानों के इलाज के लिए पेट क्लिनिक खोले। ये क्लिनिक अगस्त 2013 में खोले गए, लेकिन 12 वर्ष बाद भी इन क्लिनिकों में न तो डाक्टर के पद स्वीकृत किए जा सके हैं न ही कंपाउंडर, ड्रेसर, रेडियोलाजिस्ट, क्लर्क, रात्रि प्रहरी या चपरासी के।
इन क्लिनिकों में सरकार की ओर से जरूरी संसाधन तक उपलब्ध नहीं कराए गए। नतीजा है कि ये क्लिनिक संसाधनों और डाक्टरों तथा कर्मियों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। धनबाद, पलामू, जमशेदपुर, रांची, हजारीबाग, बोकारो और देवघर में खोले गए सरकारी पेट क्लिनिक में सरकार ने न तो डाक्टरों की नियुक्ति की है, न ही ड्रेसर, कंपाउंडर, रेडियोलाजिस्ट, क्लर्क या नाइट गार्ड तैनात किए गए हैं।
इन क्लिनिक में अलग अलग जगहों पर तैनात पशु चिकित्सकों को प्रभार में रखकर बेजुबानों का इलाज कराया जा रहा है। दैनिक जागरण ने पेट क्लिनिक की पड़ताल की तो पता चला कि बेजुबानों के दर्द से सरकार व विभाग का सिस्टम पूरी तरह बेदर्द है।
हद तो यहां बेजुबानों के इलाज के लिए दवा के मद में एक पाई की भी स्वीकृति सरकार के स्तर पर नहीं दी जा रही है। ऐसे में इसका खामियाजा पालतू पशुओं व उनके मालिकों को उठाना पड़ रहा है।
पेट क्लिनिक धनबाद:
धनबाद के सरकारी पेट क्लिनिक में रोजाना औसतन 20 से 30 लोग अपने पालतू पशुओं का इलाज कराने पहुंचते हैं। पूरे क्लिनिक का भार एकमात्र डाक्टर भीम प्रसाद पर है, जो कि प्रभार में हैं। वही डाक्टर जांच, दवा, कागजी काम और यहां तक कि कंपाउंडर व सफाईकर्मी का काम कर रहे हैं।
दवा के लिए अलग से कोई बजट नहीं है। ऐसे में पालतू पशुओं के मालिकों को बाहर से सीरिंज से लेकर दवा तक खरीदनी पड़ती है। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, अल्ट्रासोनोग्राफी, डायलिसिस यूनिट, ब्लड एनालाइजर की सुविधा भी नहीं है। आइसोलेशन वार्ड तक नहीं होने से कई बार गंभीर रूप से बीमार जानवरों का इलाज करना मुश्किल हो जाता है।
पेट क्लिनिक, बोकारो:
बोकारो पेट क्लिनिक की हालत भी खराब है। बोकारो पेट क्लिनिक के प्रभारी डा. अशोक कुमार ने कहा कि दवा की भारी कमी और डाक्टर के पद स्वीकृत न होने से हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
फिलहाल तीन डाक्टर अलग-अलग पारी में यहां ड्यूटी कर रहे हैं, लेकिन स्थायी व्यवस्था न होने से मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। यहां चास के पिंडराजोरा में तैनात डा अनिल, चास प्रखंड के प्रखंड पशु चिकित्सा पदाधिकारी डा अशोक कुमार व पेटरवार के भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी डा कुमार आनंद सागर प्रभार में पेट क्लिनिक चला रहे हैं।
यहां दवा की कमी के अलावा जरूरी उपकरणों व आइसोलेशन वार्ड की सुविधा नहीं है। हालांकि, बोकारो की पूर्व डीसी की ओर से डीएमएफटी फंड देकर क्लिनिक के लिए भवन निर्माण कराया जा रहा है। यहां जिला पशुपालन विभाग ने दैनिक मजदूरी पर दो कर्मियों को रखा है।
बेजुबानों की कब सुनेगी सरकार
धनबाद और बोकारो समेत बाकी जिलों में भी पेट क्लिनिक बदहाल हैं। सातों जिलों के पेट क्लिनिक में न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही प्रशिक्षित कर्मी। इन क्लिनिकों में रोजाना सैकड़ों बेजुबान इलाज के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन उनका दर्द कम नहीं हो रहा।
डाक्टर अपने स्तर से इलाज कर रहे हैं, लेकिन जरूरी संसाधनों की कमी आड़े आ रही है। दूसरी ओर, धनबाद समेत अन्य शहरों में निजी पेट क्लिनिक में लोग मजबूरी के चलते रूख कर रहे हैं जहां इलाज के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
हीरापुर, झरिया, कतरास, धैया व बिग बाजार के आसपास ऐसे कई क्लिनिक चल रहे हैं। धनबाद के जिला पशुपालन अधिकारी डा ब्रजेश कहते हैं कि डाक्टर कि दवा के लिए अलग से कोई फंड नहीं होने से परेशानी है जबकि डाक्टर के पद ही स्वीकृत नहीं हैं।
उनका कहना है कि महज एक डाक्टर होने से क्लिनिक सुबह नौ से तीन बजे तक ही खुलता है। यानी दोपहर तीन बजे से सुबह नौ बजे तक सरकारी पेट क्लिनिक में इलाज की व्यवस्था ही नहीं है। जबकि यहां झरिया, कतरास, सिंदरी, निरसा व मैथन से भी लोग पशुओं का इलाज कराने आते हैं। पेट क्लिनिक में इन पशुओं का इलाज- कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, चूहे व चिड़ियां।
जल्द ही पेट क्लिनिक में दवा, उपकरण और स्टाफ की व्यवस्था नहीं की गई तो ये क्लिनिक नाममात्र के लिए रह जाएंगे। सरकार से हमारी गुजारिश है कि बेजुबानों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी व्यवस्था की जाए।
आर्यन, पेट लवर्स
यहां कुत्ते, बिल्ली, खरगोश व चूहे अधिक संख्या में इलाज को पहुंचते हैं। दवा, एक्स रे, अल्ट्रासाउंड समेत अन्य उपकरणों व संसाधनों का घोर अभाव है। हमें डाक्टर, कंपाउडर, क्लर्क से लेकर चपरासी का काम खुद करना पड़ रहा है।
-डा भीम प्रसाद, प्रभारी, पेट क्लिनिक, धनबाद
धनबाद समेत सभी पेट क्लिनिक की जल्द रिपोर्ट मंगाएंगे। अगर वहां डाक्टर व स्टाफ के अलावा दवा नहीं है तो यह गंभीर बात है। रिपोर्ट आने के बाद सरकार के स्तर पर सभी सात जिलों के पेट क्लिनिक के सुधार की पहल की जाएगी।
-अबूबकर सिद्दिकी पी, सचिव, कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग
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