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    कभी 40 रुपये की दिहाड़ी में किशन करते थे काम, अब अपने स्टार्टअप 'वाव इडली' से सपनों को लगा रहे पंख

    Updated: Mon, 25 Aug 2025 03:33 PM (IST)

    धनबाद के किशन तांती ने साबित कर दिया कि मेहनत से हालात बदले जा सकते हैं। कभी 40 रुपये की दिहाड़ी पर काम करने वाले किशन आज वाव इडली से महीने में 50 हजार रुपये कमा रहे हैं। उन्होंने 3 हजार रुपये से इडली का कारोबार शुरू किया और सोशल मीडिया पर इसे लोकप्रिय बनाया।

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    बाइक पर इडली रखकर बिक्री करते किशन तांती और उनका घर। (जागरण)

    रामजी यादव, मैथन (धनबाद)। कहते हैं कि सपनों की उड़ान छोटी जगहों से ही शुरू होती है। झारखंड के धनबाद जिले के पंचेत क्षेत्र के एक छोटे से गांव में पैदा हुए किशन तांती ने यह साबित कर दिया है कि हौसला और मेहनत किसी भी हालात को बदल सकती है।

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    कभी 40 रुपये की दिहाड़ी कमाने वाले किशन आज अपने स्टार्टअप 'वाव इडली' से महीने में 50 हजार रुपये तक कमा रहे हैं।

    लुचीबाद कॉलोनी में रहने वाले किशन का बचपन बेहद संघर्षों से भरा था। पिता गली-मोहल्ले में गोलगप्पे बेचकर परिवार चलाते थे। मां घर संभालती थीं। आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि किशन को 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

    जीवन की जिम्मेदारियां जल्दी ही उनके कंधों पर आ गईं। कभी कंपाउंडर बनकर 40 रुपये रोजाना की नौकरी की, तो कभी लैब असिस्टेंट बनकर दिन गुजारे। लेकिन जेब में पैसे हमेशा कम ही पड़ते थे।

    कैमरे से किचन तक का सफर 

    जीवन सुधारने के लिए किशन ने कैमरा खरीदा और शादियों में फोटो-वीडियो शूट करने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने यूट्यूब चैनल भी बनाया, लेकिन अचानक वह टर्मिनेट हो गया। स्टेशन पर खाना बेचने की कोशिश की, पर यह काम भी एक महीने से ज्यादा नहीं चला।

    लगातार असफलताओं और आर्थिक संकट ने उन्हें डिप्रेशन तक पहुंचा दिया, लेकिन यही वह दौर था जब परिवार और दोस्तों ने उनका हौसला बढ़ाया। दोस्तों की मदद और घरवालों के विश्वास ने उन्हें फिर से खड़ा किया। और यहीं से जन्म हुआ 'वाव इडली' का।

    इडली से मिली पहचान 

    साल 2025 की शुरुआत में किशन ने सिर्फ तीन हजार रुपये की छोटी सी इन्वेस्टमेंट से इडली का कारोबार शुरू किया। वह मोटरसाइकिल से घूम-घूमकर इडली बेचने लगे। शुरुआती दिनों में कमाई मात्र 2000 रुपये हुई, लेकिन छह महीने के भीतर यही बिजनेस 50 हजार तक पहुंच गया।

    किशन रोज अलग-अलग जगह इडली बेचने जाते हैं। लोग उनके आने का इंतजार करते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक उनकी इडली के दीवाने हो चुके हैं।

    खास बात यह है कि जहां आम रेस्टोरेंट में एक प्लेट इडली 50-60 रुपये में मिलती है, वहीं, वाव इडली पर सिर्फ 20 रुपये में तीन पीस के साथ घर जैसी चटनी और सांभर मिलती है।

    परिवार और दोस्तों का योगदान

    किशन बार-बार कहते हैं कि इस सफर में उनके माता-पिता, भाई-बहन का बड़ा योगदान रहा है। मां गीता देवी और पिता अनिल तांती हमेशा उनके साथ खड़े रहे। इसके अलावा, हर समय और हर मुश्किल में दोस्त रितिक, गुड्डू, संदीप खड़े थे।

    आसिफ अली ने अपनी पूरी टीम के साथ एक वेबसाइट गिफ्ट की, जो कि मुगमा के रहने वाले हैं। वहीं, आयुष राणा और सुमित ने भी उनके सपोर्ट में हर वक्त साथ रहे हैं।

    फेसबुक, यूट्यूब व इंस्टाग्राम के फालोअर्स का भरपूर प्यार मिला है। चटनी-सांभर बनाने में परिवार की मदद ने उनका बोझ हल्का किया।

    सोशल मीडिया का सहारा 

    किशन ने अपने सफर की झलक सोशल मीडिया पर डालनी शुरू की। धीरे-धीरे उनके वीडियो पर लाखों व्यूज आने लगे। आज उनके यूट्यूब और इंस्टा पर 20 हजार से ज्यादा फालोअर्स हैं। अगर फेसबुक को जोड़ दिया जाए तो उनके फालोअर्स की संख्या डेढ़ करोड़ तक पहुंच गई है।

    किशन बताते हैं कि एक महीना पहले उन्होंने होम डिलीवरी का कारोबार शुरू किया था। इस बात की जानकारी अपने सोशल मीडिया पर लोगों को दी थी।

    इसके बाद तो उन्हें एक बार में 3500 प्लेट इडली का ऑर्डर मिल गया। लेकिन अकेला होने के कारण वह इतने बड़े ऑर्डर को पूरा नहीं कर सके और होम डिलीवरी के काम को बंद कर देना पड़ा।

    सपनों की उड़ान 

    अब किशन का सपना है कि 'वाव इडली' एक ब्रांड बने। एक साल के अंदर वे एक करोड़ की कंपनी खड़ा करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। इसके लिए वे इस दुर्गापूजा के पहले कैफे खोलकर फिर से होम डिलीवरी का कारोबार शुरू करना चाहते हैं।

    आसपास के युवाओं को रोजगार देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि आने वाले समय में पूरे भारत में 'वाव इडली' के फ्रेंचाइजी शुरू करें।

    किशन कहते हैं कि गर्मी हो, बरसात हो या ठंड। मैंने हर मौसम में इडली बेची। लोग हंसते थे कि इडली बेचकर क्या मिलेगा। लेकिन आज वही लोग ताली बजाते हैं। वह कहते हैं कि कभी अपने हाथ की बनी हुई यह स्वादिस्ट इडली हमें भी खिलाओ।