लाखों में एक समरेश, फिर भी लोकसभा पहुंचते-पहुंचते रह गए... कभी पार्टी ने तो कभी किस्मत ने दिया दगा
संयुक्त बिहार एवं झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री समरेश सिंह के दिवंगत होने के साथ ही उनके सांसद बनने की तमन्ना भी अधूरी रह गई। विधानसभ ...और पढ़ें

धनबाद [दिलीप सिन्हा]: संयुक्त बिहार एवं झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री समरेश सिंह के दिवंगत होने के साथ ही उनके सांसद बनने की तमन्ना भी अधूरी रह गई। विधानसभा चुनाव में पांच बार बोकारो विधानसभा क्षेत्र में जीत का परचम लहराने वाले समरेश सिंह को लोकसभा चुनाव में कभी भी सफलता नहीं मिल सकी। धनबाद एवं गिरिडीह दोनों लोकसभा क्षेत्र से उन्होंने चुनाव लड़ा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। जब चुनाव जीतने की बारी आई तो पार्टी ने उन्हें बेटिकट कर दिया। फिर चाहे वह भाजपा हो या लालू प्रसाद यादव का जनता दल। इसका नतीजा हुआ कि वह दो-दो बार मामूली वोटों से लोकसभा चुनाव हार गए। इसका मलाल समरेश सिंह को जीवन भर रहा। उनके समर्थकों को भी मलाल रहा कि दादा यदि सांसद चुन लिये जाते तो विधानसभा की तरह ही वह लोकसभा में भी जनता के सवालों पर दहाड़ते।
धनबाद-बोकारो में आज यदि भाजपा का परचम लहरा रहा है तो यह समरेश सिंह की ही देन है। धनबाद-बोकारो में भाजपा की जमीन समरेश सिंह ने ही तैयार की थी। 80 के दशक में इस पूरे इलाके में कांग्रेस एवं मार्क्सवादी समन्वय समिति का बोलबाला था। तीसरे केंद्र बिंदु भाजपा एवं जनता पार्टी के नेता व झरिया के विधायक सूर्यदेव सिंह थे। धनबाद लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति काफी कमजोर थी। उस दौर में समरेश सिंह के साथ सत्येंद्र कुमार ने भी भाजपा के लिए काफी काम किया था। सत्येंद्र कुमार फिलहाल भाजपा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य, दुमका के संगठन प्रभारी तथा साहिबगंज लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी हैं। उन्होंने बताया कि समरेश सिंह ने पहली बार 1984 में धनबाद से भाजपा प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इस चुनाव में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी। इस लहर के बावजूद समरेश सिंह ने 75 हजार से अधिक वोट लाकर भाजपा के लिए भविष्य के दरवाजे खोल दिए थे। हालांकि उस बार चुनाव कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह ने जीता था। दूसरे नंबर पर मासस के निवर्तमान सांसद एके राय थे। तीसरे नंबर पर समरेश सिंह एवं चौथे नंबर पर जनता पार्टी के सूर्यदेव सिंह थे।
जिसका नामो-निशान नहीं था, उसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी बना दिया
इसके बाद 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में समरेश सिंह ने धनबाद सीट पर भाजपा को मुख्य मुकाबला में ला दिया। भाजपा प्रत्याशी समरेश सिंह ने इस चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन किया। वह ना सिर्फ दूसरे नंबर पर रहे, बल्कि मासस के एके राय से मात्र 13 हजार वोटों से हारे। इसके बाद हुए 1991 के चुनाव में भाजपा ने समरेश सिंह को टिकट नहीं दिया। शहीद रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी प्रो. रीता वर्मा को भाजपा ने प्रत्याशी चुना। उसके बाद रीता वर्मा लगातार चार बार धनबाद की सांसद बनीं।
1991 में ही झामुमो के संस्थापक व गिरिडीह के सांसद बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ। इस उप चुनाव में झामुमो ने बिनोद बिहारी महतो के पुत्र राजकिशोर महतो पर दांव लगाया था। इधर भाजपा ने समरेश सिंह को गिरिडीह में प्रत्याशी बनाया। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में समरेश की सक्रियता अधिक नहीं थी। साथ ही इस चुनाव में राजकिशोर के पक्ष में सहानुभूति की लहर थी। राजकिशोर विजयी हुए। समरेश यहां भी दूसरे नंबर पर रह गए। वैसे समरेश ने यहां भी शानदार प्रदर्शन किया था। उन्हें डेढ़ लाख में महज 158 वोट कम मिले थे।
इसके बावजूद लोकसभा पहुंचने के लिए समरेश सिंह ने अपनी कोशिश नहीं छोड़ी। मतभेद के बाद उन्होंने भाजपा छोड़ दी। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल में शामिल हो गए। जनता दल ने 1996 के लोकसभा चुनाव में उन्हें धनबाद से प्रत्याशी बनाया। भाजपा की सांसद प्रो. रीता वर्मा एवं मासस के एके राय को उन्होंने कांटे की टक्कर दी। इस चुनाव में वह दूसरे नंबर पर रहे। रीता वर्मा से वह 22196 वोट से हारे थे। एके राय तीसरे नंबर पर रहे। शानदार प्रदर्शन के बावजूद 1998 के चुनाव में जनता दल ने उन्हें धनबाद से दोबारा टिकट नहीं दिया। समरेश काफी निराश हुए, लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। अपनी पार्टी झारखंड वनांचल कांग्रेस बनाकर विरोधियों को जवाब देते रहे। झारखंड वनांचल कांग्रेस से वह 2000 में बोकारो के विधायक चुने गए। इसके बाद 2004 में उन्होंने धनबाद लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था और एक लाख छह हजार वोट से अधिक पाकर चौथे नंबर पर रहे। सक्रिय राजनीति के अंतिम दौर में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा से वह 2009 में आखिरी बार बोकारो के विधायक बने।

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