Hazaribagh News: कभी जुआरियों और शराबियों का अड्डा रहा स्कूल, अब बना हुनरमंद छात्रों का गढ़
हजारीबाग का बिहारी बालिका विद्यालय जो कभी जुआरियों का अड्डा था आज कौशल विकास के लिए जाना जाता है। प्राचार्य रूपा वर्मा ने शिक्षा के साथ कौशल विकास को जोड़ा। शिक्षकों ने मोहल्ला टोली बनाकर विद्यालय को असामाजिक तत्वों से मुक्त कराया। अब छात्राओं को मिट्टी के बर्तन सिलाई जूट के झोले बनाना सिखाया जा रहा है। जिला शिक्षा विभाग ने 500 बैग बनाने का आर्डर दिया।

अरविंद राणा, हजारीबाग। कभी जुआरियों और शराबियों का अड्डा रहा हजारीबाग का बिहारी बालिका विद्यालय आज पूरे राज्य में हुनरवाला विद्यालय के नाम से पहचान बना चुका है। शिक्षा के साथ-साथ कौशल विकास को जोड़ने की इस अनूठी पहल ने सैकड़ों छात्राओं की जिंदगी बदल दी है। इसका श्रेय विद्यालय की प्राचार्य रूपा वर्मा को जाता है।
2019 में जब कार्यभार संभाला तो हालात बेहद खराब थे। विद्यालय में शिक्षा का माहौल लगभग खत्म था और परिसर असामाजिक तत्वों का ठिकाना बन चुका था। कोविड काल के दौरान जब अभिभावकों की आर्थिक स्थिति डगमगाई, तब उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया।
मोहल्ला टोली का गठन कर शिक्षकों की जवाबदेही तय की और स्थानीय लोगों की मदद से विद्यालय परिसर को जुआरियों व शराबियों से मुक्त कराया। इसके बाद विद्यालय में नामांकन तेजी से बढ़ने लगा और शिक्षा के साथ-साथ छात्राओं को रोजगारपरक कौशल सिखाने की दिशा में ठोस कदम उठाए गए।
जुट के बोरा से लेकर मेहंदी तक का प्रशिक्षण
विद्यालय में अब छात्राओं को मिट्टी के घड़े, टेराकोटा खिलौने, प्रतिमा निर्माण, सिलाई-कढ़ाई, जूट के झोले, फाइल, कोहबर पेंटिंग और मेहंदी लगाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। शनिवार और रविवार को विशेष कक्षाओं के जरिये छात्राओं को हुनर की बारीकियां समझाई जाती हैं। इन गतिविधियों का खर्च शिक्षक और प्राचार्य स्वयं उठाते हैं। खासकर आर्थिक रूप से कमजोर छात्राएं अतिरिक्त समय में प्रशिक्षण लेकर अपनी आजीविका मजबूत कर रही हैं।
ऑर्डर और उपलब्धियां
विद्यालय की इस पहल को समाज में सराहना भी मिली है। वर्ष 2024 में जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय ने विद्यालय को 500 बैग निर्माण का आर्डर दिया। जूट की फाइलें और कोहबर पेंटिंग को भी विशेष पहचान मिल रही है। कच्चे माल की व्यवस्था शिक्षक स्वयं करते हैं और बिक्री से होने वाले मुनाफे का वितरण छात्राओं में किया जाता है।
सरकार द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय हस्तशिल्प मेलों में विद्यालय के बच्चे और शिक्षक भी स्टॉल लगाते हैं। यहां के बच्चों द्वारा बनाए गए जूट के झोले, मिट्टी के बर्तन व टेराकोटा सामान की खूब मांग है। वहीं, ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण प्राप्त छात्राएं स्थानीय स्तर पर ऑर्डर लेकर घर-घर जाकर महिलाओं को तैयार भी कर रही हैं।
शिक्षकों के सहयोग से हुआ संभव
प्रधानाध्यापक रेखा वर्मा बताती हैं कि विद्यालय के शिक्षक इस अभियान के अभिन्न अंग हैं। सभी प्रशिक्षण कार्य सामूहिक प्रयास और शिक्षकों के वित्तीय सहयोग से संभव हो पाए हैं। मुनाफे में से कच्चे माल की लागत काटकर शेष राशि छात्राओं में बांट दी जाती है। अब तक विद्यालय से चार बैच प्रशिक्षित होकर बाहर जा चुका है और ये छात्राएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं
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