Jharkhand High Court: बालू घाटों की नीलामी पर आया बड़ा फैसला, झारखंड हाई कोर्ट ने लगाई रोक, इसके पीछे के कारणों को जानें...
झारखंड में बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया पर झारखंड हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। अदालत ने यह आदेश पेसा (PESA) एक्ट को लागू न किए जाने के संदर्भ में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में बालू घाटों की नीलामी प्रक्रिया पर झारखंड हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
अदालत ने यह आदेश पेसा (PESA) एक्ट को लागू न किए जाने के संदर्भ में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब तलब करते हुए यह स्पष्ट करने को कहा है कि पूर्व में दिए गए कोर्ट के आदेश का अब तक पालन क्यों नहीं किया गया।
स्थानीय स्वशासन के अधिकारों से जुड़ा हुआ है मामला
यह मामला झारखंड के जनजातीय बहुल क्षेत्रों में संसाधनों की नीलामी और स्थानीय स्वशासन के अधिकारों से जुड़ा हुआ है।
संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों में पेसा एक्ट (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act, 1996) लागू किया जाना अनिवार्य है, जो ग्राम सभाओं को खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देता है।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि झारखंड सरकार ने अब तक पूरी तरह से पेसा एक्ट को लागू नहीं किया है और बिना ग्राम सभाओं की सहमति के बालू घाटों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने सुनवाई के दौरान इस पर गंभीर चिंता जताई और स्पष्ट किया कि जब तक राज्य सरकार पेसा कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन नहीं करती, तब तक बालू घाटों की नीलामी नहीं की जा सकती।
अदालत ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि पहले जारी आदेशों को अब तक क्यों नहीं माना गया और किन कारणों से पेसा एक्ट को लागू करने में देरी हो रही है।
राज्य में बालू घाटों की नीलामी को लेकर पहले से ही जनजातीय समुदायों और सामाजिक संगठनों में असंतोष व्याप्त है।
कई जिलों में ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर बालू घाटों की नीलामी का विरोध किया था। स्थानीय संगठनों का कहना है कि यह नीलामी आदिवासी अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख तय करते हुए कोर्ट ने सरकार से ठोस जवाब मांगा है। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार पेसा कानून के क्रियान्वयन को लेकर क्या कदम उठाती है और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा कैसे सुनिश्चित करती है।
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