एसआइ ने पहचानने से किया इन्कार, पुलिस पर हमले के मामले में पूर्व माओवादी कुंदन पाहन बरी
अदालत ने पूर्व माओवादी कुंदन पाहन को पुलिस पर हमले के एक पुराने मामले में साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया है। वर्ष 2009 में इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से मात्र दो गवाह पेश किए गए थे लेकिन आरोपों को साबित नहीं किया जा सका।

राज्य ब्यूरो, रांची। अपर न्यायायुक्त संजीव झा की अदालत ने पूर्व माओवादी कुंदन पाहन को पुलिस पर हमले के एक पुराने मामले में साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।
इस मामले में अनगड़ा के तत्कालीन एसआइ कृष्ण कुमार ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी। लेकिन कोर्ट में उन्होंने माओवादी कुंदन पाहन को पहचानने से इन्कार किया गया।
कहा गया कि जब माओवादी दस्ते से पुलिस की मुठभेड़ हुई थी, तो शाम का समय था। गोलीबारी होने के दौरान माओवादी अंधेरे का फायदा उठाकर भाग गए।
इसलिए वह किसी माओवादी को पहचान नहीं पाए। इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ था। अभियोजन पक्ष की ओर से मात्र दो गवाही दर्ज कराई गई थी। लेकिन माओवादी कुंदन पाहन पर आरोप साबित नहीं किया जा सका।
बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता ईश्वर दयाल ने पक्ष रखा। घटना 24 अक्टूबर 2009 की है। पुलिस को सूचना मिली थी कि जोन्हा फाल के पास माओवादी दस्ता किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा है।
सूचना पर मूरी ओपी और अनगड़ा थाना प्रभारी पुलिस बल के साथ छापेमारी करने के लिए निकले थे। इसी दौरान पुलिस और नक्सली दस्ते का आमना-सामना हो गया। दोनों ओर से गोलीबारी हुई थी। फिर नक्सली फरार हो गए।
घटना के बाद पुलिस ने मौके से हथियार और विस्फोटक बरामद किए थे। मामले में पहले भी कई आरोपित बरी हो चुके हैं। कुंदन पाहन 14 मई 2017 से जेल में बंद हैं। उन्होंने झारखंड पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।
झारखंड पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थे कुंदन पाहन
कुंदन पाहन झारखंड के एक कुख्यात नक्सली रहे हैं, जो लंबे समय तक भाकपा (माओवादी) संगठन से जुड़े रहे। कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया था। झारखंड पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बने हुए थे।
लेकिन बाद में उन्होंने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में आने का निर्णय लिया। वह झारखंड के खूंटी जिले के रहने वाले हैं। भाकपा (माओवादी) के रीजनल कमांडर रहे। उन पर झारखंड सरकार और केंद्र सरकार ने 15 लाख रुपये से अधिक का इनाम घोषित किया था।
रांची के पूर्व इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार की हत्या, सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के जवानों पर हमले, लोहरगा विस्फोट और कई जिलों में हिंसा समेत कई घटनाओं में शामिल होने का आरोप था।
उन्होंने मई 2017 में रांची में आत्मसमर्पण किया था। उसके बाद: उन्होंने जेल में रहते हुए कई सामाजिक बदलावों की बात की और समाज की मुख्यधारा में लौटने की इच्छा जताई। उन्हें झारखंड सरकार की पुनर्वास नीति के तहत लाभ भी मिला।
2019 में कुंदन पाहन ने राजनीति में आने की इच्छा जताई। उन्होंने खूंटी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। हालांकि उन्हें पार्टी का टिकट नहीं मिला और वे चुनाव नहीं लड़ सके। उन्होंने कहा था कि वे अब बंदूक नहीं, लोकतंत्र के जरिए समाज में बदलाव लाना चाहते हैं।
कुंदन ने कई बार मीडिया के सामने आकर युवाओं को माओवाद से दूर रहने का संदेश दिया। उन्होंने यह स्वीकार किया कि नक्सलवाद के रास्ते पर चलकर समाज का भला नहीं हो सकता।

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