'भगवान बिरसा मुंडा के विचार अपनाएं': दत्तात्रेय होसबाले ने 150वीं जयंती पर कहा- 'विभाजनकारी विचारधारा के लोग फैला रहे हैं गलत भ्रांतियां'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा की गाथाएं समाज में आत्मविश्वास बढ़ाएंगी। उन्होंने उनकी 150वीं जयंती पर उनके जीवन और विचारों को अपनाने का आह्वान किया। बिरसा मुंडा ने धार्मिक अस्मिता के लिए संघर्ष किया और 'अबुआ दिशुम-अबुआ राज' का नारा दिया। जनजातियों के अधिकारों के लिए उनका बलिदान प्रेरणादायक है। उन्होंने गुरु तेगबहादुर से प्रेरणा लेने की बात भी कही।

जनजाति समाज को लेकर गलत विमर्श खड़ा करने का जारी है प्रयास: सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले। (बिरसा मुंडा- सांकेतिक तस्वीर)
संजय कुमार, रांची: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि विभाजनकारी विचारधारा के लोगों द्वारा भारत के संदर्भ में जनजाति समुदाय को लेकर भ्रांति और गलत विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है।
ऐसे समय में भगवान बिरसा मुंडा की धार्मिक और साहसिक पराक्रम की गाथाएं भ्रांतियों को दूर करते हुए समाज में स्वबोध, आत्मविश्वास और एकात्मता को दृढ़ करने में सदैव सहायक सिद्ध होगी।
वह जबलपुर में आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के दूसरे दिन शुक्रवार को भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर अपनी बात रख रहे थे।
उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर संघ स्वयंसेवकों सहित संपूर्ण समाज से आह्वान करता है कि भगवान बिरसा मुंडा के जीवनकृत्व और विचारों को अपनाते हुए "स्व बोध" से युक्त संगठित और स्वाभिमानी समाज के निर्माण में अपनी भूमिकाओं का निर्वहन करें।

उन्होंने कहा कि भारत के गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों व योद्धाओं का योगदान अविस्मरणीय रहा है। बिरसा मुंडा का इस स्वतंत्रता संग्राम के श्रेष्ठतम नायकों, योद्धाओं में विशेष स्थान है।
15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलीहातु में जन्मे भगवान बिरसा को लगभग 10 वर्ष की आयु में चाईबासा मिशनरी स्कूल में प्रवेश मिला। मिशनरी स्कूलों में जनजाति छात्रों को उनकी धार्मिक परंपराओं से दूर कर ईसाई मत में मतांतरित करने के षड़यंत्र का उन्हें अनुभव हुआ।
इस बीच केवल 15 वर्ष की आयु में ईसाई मिशनरियों के षडयंत्रों को समझते हुए उन्होंने अपनी धार्मिक अस्मिता और परंपराओं की रक्षा के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया। मात्र 25 वर्ष की आयु में भगवान बिरसा ने सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा कर दी। उनके आंदोलन का नारा "अबुआ दिशुम-अबुआ राज" (हमारा देश-हमारा राज) युवाओं के लिए एक प्रेरणा मंत्र बन गया, जिससे हजारों युवा "स्वधर्म" और "अस्मिता" के लिए बलिदान देने हेतु प्रेरित हुए।
जनजातियों के अधिकारों, आस्थाओं, परंपराओं और स्वधर्म की रक्षा के लिए भगवान बिरसा ने अनेक आंदोलन व सशस्त्र संघर्ष किए। इसी बीच वह पकड़ लिए गए और मात्र 25 वर्ष की अल्पायु में कारागार में दुर्भाग्यपूर्ण और संदेहास्पद परिस्थिति में उनकी मौत हो गई। उनका बलिदान स्वाधीनता संघर्ष में जनजातियों के योगदान का उदाहरण बनते हुए संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है। उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है।
गुरु तेगबहादुर के जीवन से प्रेरणा लेने की है जरूरत
सिख परंपरा के नवम गुरु, गुरुतेगबहादुर के बलिदान को याद करते हुए सरकार्यवाह ने अपने वक्तव्य में कहा कि बलिदान के उनके 350वें वर्ष पर विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं सहित भारत के संपूर्ण समाज द्वारा श्रद्धा एवं सम्मान के साथ अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है।
भारतीय परंपरा के इस दैदीप्यमान नक्षत्र की शिक्षाएं और उनके आत्मोत्सर्ग का महत्व जन-जन तक पहुंचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित संपूर्ण समाज से आह्वान करता है कि उनके जीवन के आदर्शों और मार्गदर्शन का स्मरण करते हुए अपने-जीवन का निर्माण करें एवं इस वर्ष आयोजित होने वाले सभी कार्यक्रमों में श्रद्धापूर्वक भागीदारी करें।

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