झारखंड हाई कोर्ट का कड़ा रुख: 8-14 सितंबर तक रिम्स की GB मीटिंग, रिटायर्ड जज होंगे ऑब्जर्वर
झारखंड हाई कोर्ट ने रिम्स की बदहाली पर सख्त रुख अपनाते हुए गवर्निंग बॉडी को 8-14 सितंबर के बीच बैठक करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इस बैठक की निगरानी के लिए एक रिटायर्ड जज को ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। यह निर्णय कर्मचारियों की भारी कमी पुराने उपकरणों और प्रशासनिक उदासीनता जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए लिया गया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) की बदहाली को लेकर झारखंड हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रिम्स की गवर्निंग बॉडी (जीबी) को 8 से 14 सितंबर के बीच अनिवार्य रूप से बैठक करने का निर्देश दिया।
इस बैठक की निगरानी के लिए हाई कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त जज को ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जीबी की बैठक में लिए गए निर्णयों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। यह कदम रिम्स की लचर व्यवस्था व प्रशासनिक खामियों को सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
रिम्स की बदहाली: HC की चिंता और प्रमुख समस्याएं
झारखंड का सबसे बड़ा मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल लंबे समय से कर्मचारी कमी, खराब बुनियादी ढांचे और प्रशासनिक लापरवाही की मार झेल रहा है। हाल के वर्षों में, कोर्ट ने कई बार रिम्स की स्थिति पर चिंता जताई है और इसे नीतिगत लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता का परिणाम बताया है।
कोर्ट की यह कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ता ज्योति शर्मा की ओर से दायर एक जनहित याचिका के जवाब में हुई। जिसमें रिम्स में डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ, और ग्रुप-डी कर्मचारियों की भारी कमी, साथ ही आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की अनुपलब्धता को उजागर किया गया था।
क्यों बदहाल है झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल?
रिम्स की मौजूदा स्थिति कई गंभीर समस्याओं का परिणाम है, जो मरीजों की देखभाल और अस्पताल की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही हैं। नीचे कुछ प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है:
- कर्मचारियों की भारी कमी: रिम्स में 596 स्वीकृत ग्रुप-डी पदों में से केवल 94 कर्मचारी ही कार्यरत हैं। डेंटल कॉलेज में 37 प्रोफेसर, 9 अतिरिक्त प्रोफेसर, 56 एसोसिएट प्रोफेसर, और 43 असिस्टेंट प्रोफेसर के पद खाली हैं। नर्सिंग कॉलेज में 144 ग्रुप-सी नर्सिंग स्टाफ और 418 ग्रुप-डी कर्मचारियों की कमी है।
- पुराने उपकरण और संसाधनों की कमी: आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की अनुपलब्धता और पुरानी तकनीक के कारण मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। कोर्ट ने इसे "स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में कमी" का प्रमुख कारण बताया है।
- प्रशासनिक विवाद और नीतिगत लापरवाही: रिम्स के निदेशक और स्वास्थ्य विभाग के बीच तनातनी ने स्थिति को और जटिल किया है। हाल ही में, निदेशक डॉ. राजकुमार को हटाने का सरकारी आदेश हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया, क्योंकि यह प्रक्रिया नियमों के अनुरूप नहीं थी।
- डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस: कई डॉक्टर गैर-प्रैक्टिस भत्ते लेने के बावजूद निजी क्लीनिक चला रहे हैं, जो सेवा नियमों का उल्लंघन है। कोर्ट ने इस पर सख्ती दिखाते हुए बायोमेट्रिक उपस्थिति रिकॉर्ड मांगा है।
- खराब आपातकालीन सेवाएं: आपातकालीन कक्ष में मरीजों को इलाज शुरू होने में 30-40 मिनट की देरी होती है। स्ट्रेचर और पर्ची कटाने की प्रक्रिया में समय बर्बाद होने से गंभीर मरीजों की जान खतरे में पड़ रही है।
- स्वच्छता और बुनियादी ढांचे की कमी: जलजमाव, अवरुद्ध नालियां, और खराब भोजन की गुणवत्ता मरीजों और उनके परिजनों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।
HC का सख्त रुख और भविष्य की उम्मीद
झारखंड हाई कोर्ट ने रिम्स की स्थिति को "शर्मनाक" करार देते हुए कहा कि यदि सरकार इस प्रमुख संस्थान में सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध नहीं करा सकती, तो इसे बंद कर देना चाहिए। कोर्ट ने पहले भी रिम्स को चार सप्ताह के भीतर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती शुरू करने का निर्देश दिया था।
इस बार गवर्निंग बॉडी की बैठक के लिए रिटायर्ड जज को ऑब्जर्वर नियुक्त करना और निर्णयों को कोर्ट में प्रस्तुत करने का आदेश रिम्स के प्रबंधन पर जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
रिम्स की स्थिति में सुधार के लिए स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने रिम्स-2 के निर्माण की घोषणा की है, जो 2600 बेड के साथ एशिया का सबसे बड़ा एकीकृत अस्पताल होगा। हालांकि मौजूदा समस्याओं का तत्काल समाधान और पारदर्शी प्रशासन ही रिम्स को उसकी खोई हुई साख वापस दिला सकता है
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