Jharkhand Politics: झारखंड में अटका पड़ा है वादा, बिहार में बता रहे पक्का इरादा
झारखंड में कुछ राजनीतिक वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं, जिससे लोगों में निराशा है। वहीं दूसरी ओर, बिहार के नेता अपने इरादों को लेकर काफी मजबूत दिख रहे हैं। झारखंड में अटके वादों को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

झारखंड में बाजार समितियां खास्ताहाल हो चुकी हैं।
राज्य ब्यूरो, रांची।Jharkhand Politics में बाजार समितियों के संचालन को लेकर तैयार नियमावली को अंतिम रूप देने के बावजूद इसके अनुरूप संचालन नहीं होने से बाजार समितियां खास्ताहाल हो चुकी हैं।
झारखंड में नोटिफिकेशन के अभाव में बाजार समितियों की आमदनी बंद है और बिचौलिए मस्ती कर रहे हैं। बाजार समितियों के संचालन के लिए विगत दस अक्टूबर को कृषि मंत्री ने बैठक भी की थी।
इस दौरान राज्य के 15 बाजार समितियों की बदहाली की जानकारी मिली लेकिन इसके निदान को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई।स्थिति यह है कि अभी तक झारखंड में हाट-बाजार का नोटिफिकेशन नहीं हुआ है।
पूर्व में झारखंड में 605 हाट-बाजार थे और इनसे सरकार को राजस्व भी प्राप्त होता था। वर्तमान में अधिसूचित नहीं होने के कारण बाजार समितियों का कल्याण नहीं हो पा रहा है।
झारखंड की बाजार समितियों से दो प्रतिशत शुल्क लेने का लिया था निर्णय
राज्य कैबिनेट ने 2022-23 में झारखंड के बाजार समितियों से दो प्रतिशत शुल्क लेने का निर्णय लिया था। व्यापारिक समितियों के विरोध के बाद इसे स्थगित कर दिया गया। अब इन बाजार समितियों को सुविधाओं का अभाव है।
सरकार ने फंड आवंटित नहीं किया है और अभी संकट बढ़ता जा रहा है। झारखंड में इस बदहाली के बावजूद बिहार में कृषि बाजार समिति को लेकर कांग्रेस कई वादे कर चुकी है।
झारखंड में अभी तक माडल बाजार समिति रूल लागू नहीं हुआ है। इसके लिए कुछ हद तक विभाग भी जिम्मेदार है। सूत्रों के अनुसार बाजार समितियों के संचालन को लेकर नियमावली को कैबिनेट के पास भेजा नहीं जा रहा है।
बाजार समितियों में किसानों और व्यवसायियों को कोई सुविधा नहीं
इसके अलावा हाट बाजारों की अधिसूचना और बाजार समिति के अंतर्गत आइटम के निर्धारण को लेकर विभाग की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया है। पहले हाट-बाजारों की संख्या की अधिसूचना होनी है जिसके बाद उत्पादों का विवरण होगा।
तीसरा बाजार शुल्क का मामला है। अगर बाजार शुल्क नहीं भी लगाना है तो सरकार बाजारों की संख्या आदि की अधिसूचना कर सकती है। इन बाजार समितियों में किसानों और व्यवसायियों को कोई सुविधा नहीं मिल रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि झारखंड में जहां कर्मियों के भुगतान तक पर आफत है वहीं बिहार में व्यवस्था सुधारने का दावा किस आधार पर किया जा रहा है।

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