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    Jharkhand news: आदिवासियों को सुनाई जा रही पूर्वजों के बाघ और हाथियों से जुड़ाव की कहानियां, वन व वन्यजीवों के संरक्षण का प्रयास

    By Dibyanshu Kumar Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Sat, 08 Nov 2025 03:19 PM (IST)

    झारखंड में आदिवासियों को उनके पूर्वजों की बाघों और हाथियों से जुड़ी कहानियां सुनाई जा रही हैं। इसका उद्देश्य वन और वन्यजीवों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। इन कहानियों से आदिवासियों को प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की प्रेरणा मिलती है, जिससे वे सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वनों और वन्यजीवों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

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    वन क्षेत्र में पशुओं की सुरक्षा और मानव के साथ टकराव टालने के लिए वन विभाग आदिवासी समाज के पारंपरिक ज्ञान का सहारा ले रहा है।

    राज्य ब्यूरो, रांची। वन क्षेत्र में पशुओं की सुरक्षा और मानव के साथ उनका टकराव टालने के लिए वन विभाग आदिवासी समाज के पारंपरिक ज्ञान का सहारा ले रहा है। धर्मगुरुओं का सम्मान, बुजुर्ग नागरिकों के साथ संवाद कर हाथियों, बाघ समेत दूसरे जानवरों के साथ सह अस्तित्व की कहानियों से लोगों को अवगत कराया जा रहा है।

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    सामाजिक वानिकी अधिकारी रणविजय सिंह ने बताया कि जंगलों में सदियों से रह रहे आदिवासी समाज के पास पेड़-पौधों के संरक्षण के साथ पशुओं से अच्छे संबंध रखने का अनुभव है। इसी पारंपरिक ज्ञान को सम्मान देकर लोगों से उनके अनुभव जाने जा रहे हैं।

    पलामू टाइगर रिजर्व, दलमा समेत अन्य वन्यक्षेत्रों में दुर्गापूजा और दीपावली के त्योहार के दौरान पाहन, पुरोहित और दूसरे सांस्कृतिक लोगों का सम्मान किया गया। आदिवासी त्योहारों के दौरान भी यह परंपरा जारी रहेगी।

    लातेहार के रहने वाले आदिवासी बुजुर्ग सकांत बेदिया इस सम्मान से रोमांचित होकर पुराने दौर की कहानियों से लोगों को अवगत करा रहे हैं।

    हाथियों के कारिडोर को बचाना सबसे जरूरी

    सकांत बेदिया ने वन अधिकारियों से कहा कि हाथियों के कारिडोर में नए निर्माण हो रहे हैं। वन क्षेत्र की सड़कों पर रात में गाड़ियां चलती हैं तो पशुओं को परेशानी होती है। कारिडोर में छेड़छाड़ से हाथी दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं और उनका मानव के साथ संघर्ष होता है।

    इसे रोकने के लिए विभाग को सक्रिय होना पड़ेगा। रणविजय सिंह ने बताया कि ऐसे ही सुझाव के लिए इस तरह के कार्यक्रम उपयोगी हो रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में हिरण, चीतल जैसे जीवों की हत्या पर रोक लगी है।

    इटकी में 59 एकड़ में फैले वन को सुरक्षित रखने के लिए एक 16-सूत्री नियमावली

    इटकी प्रखंड की कुंदी पंचायत के विंधानी गांव की ग्राम सभा ने अजीम प्रेम जी फाउंडेशन के अधीन कार्यरत आशा संस्था के तकनीकी सहयोग से आयोजित वन महोत्सव में ऐतिहासिक निर्णय लिया है।

    सैकड़ों ग्रामीणों ने वन सुरक्षा की शपथ ली। वन महोत्सव का आयोजन वनों के संरक्षण, संवर्धन, और प्रबंधन को लेकर किया गया। ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी ने यह संदेश दिया कि वे अपने वन को बचाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।

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    ग्राम सभा द्वारा तैयार की गई 16-सूत्री नियमावली वनों के अवैध कटाई, अतिक्रमण, और शिकार को रोकने के लिए एक मज़बूत ढांचा प्रदान करेगी। समारोह की शुरुआत में गांव के पाहान मनबोध मुंडा, वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष माया कुजूर, और ग्राम प्रधान संजय उरांव द्वारा विधिवत जंगल राजा की पूजा-अर्चना की गई।

    इसके बाद, ग्रामीणों ने सखुवा के पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधकर उनकी सुरक्षा का संकल्प लिया। लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्राथमिक विद्यालय विंधानी के बच्चों, ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों ने हाथों में तख्तियां लेकर वन सुरक्षा के नारे लगाए।

    इस दौरान 'न लोक सभा, न विधान सभा, सबसे बड़ी ग्राम सभा' का नारा भी जोर-शोर से गूंजा, जो ग्राम सभा की सशक्तता को दर्शाता है। वन महोत्सव समारोह को संबोधित करते हुए अजीम प्रेम जी फाउंडेशन के कोर्डिनेटर साकेत कुमार सिंह, राजस्थान के देव कुमार, आशा संस्था के संस्थापक अजय कुमार जायसवाल, अध्यक्ष पूनम टोप्पो, और ललन साहू ने ग्राम सभा के इस अनुकरणीय पहल की जमकर सराहना की।

    वक्ताओं ने कहा कि यह सामुदायिक प्रयास देश के अन्य गांवों के लिए एक आदर्श स्थापित करेगा। मौके पर सामाजिक सहयोग का भी प्रदर्शन किया गया। आशा संस्था की ओर से 40 किसानों के बीच सरसों का बीज और वृद्ध-वृद्धाओं के बीच कंबल का वितरण किया गया। कुंदी पंचायत की मुखिया फ्रांसिस्का करकेट्टा ने भी 30 अतिरिक्त कंबलों का वितरण किया।