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    रांची के काली मंदिर में 100 सालों से अखंड रूप से जल रहा दीया, भारत ही नहीं विदेशों से भी आते हैं श्रद्धालु

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Kumar
    Updated: Thu, 20 Oct 2022 09:02 AM (IST)

    Kali Puja 2022 झारखंड की राजधानी रांची के मेनरोड हनुमान मंदिर के सामने गली में स्थित प्रसिद्ध दक्षिणा काली मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पूर्व हुआ था। यहां सौ सालों से अखंड दीया जलता है। भारत ही नहीं विदेशों से भी दर्शन के लिए श्रद्धालु आते हैं।

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    Kali Puja 2022: रांची के काली मंदिर में 100 सालों से अखंड रूप से जल रहा दीया।

    रांची, जासं। Kali Puja 2022 कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली के साथ मां काली पूजा होती है। मां दुर्गा के विकराल रूप ही मां काली है जिन्हें दुष्टों का संहार करने वाला माना जाता है। दीपावली की मध्य रात से आरंभ होकर अगले तीन दिनों तक मां काली की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है। इस बार कार्तिक अमावस्या 24 अक्टूबर को है। मान्यता है कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात सबसे काली होती है जो कि तंत्र साधना के सबसे उत्तम माना जाता है।

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    पंडित बिपिन पांडेय के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की रात मां लक्ष्मी के साथ मां काली और सरस्वती की आराधना शुभ फलदायी होती है। संध्या में मां लक्ष्मी की पूजा तो मध्य रात मां काली की पूजा अर्चना आरंभ होती है। राजधानी रांची में काली पूजा भी भव्य रूप से होती है। करीब 50 स्थानों पर पंडाल लगाकर मां काली की पूजा अर्चना तो होती ही है राजधानी में कई ऐसे प्रसिद्ध काली मंदिर हैं जहां काली पूजा पूरा विधि-विधान से होती है।

    शहर के चार प्रसिद्ध मंदिर जहां काली पूजा में उमड़ती है भीड़

    • रांची के काली मंदिर में 100 सालों से अखंड रूप से जल रहा दीया

    रांची के मेनरोड हनुमान मंदिर के सामने गली में स्थित प्रसिद्ध दक्षिणा काली मंदिर का निर्माण करीब दो सौ साल पूर्व हुआ था। मां काली का यहां दक्षिणमुखी रूप है। तंत्र साधना के लिए मंदिर विख्यात है। झारखंड ही नहीं देख विदेशों से श्रद्धालु मंदिर पहुंचकर माता का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी माता की आराधना करता है माता उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती है।

    पुजारी ब्रजेश मिश्र छठी पीढ़ी हैं जो मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे हैं। ब्रजेश मिश्र के अनुसार 1850 के आसपास उनके पूर्वज रांची आये थे। उन्हीं ने मां काली की पत्थर की प्रतिमा स्थापित की। शुरुआत में खपैरल के मंदिर में माता की पूजा अर्चना होती थी। 1919 में पक्का का मंदिर बना।

    ब्रजेश मिश्र के अनुसार यहां सौ सालों से अखंड दीया जलता है। शुरूआत में करंज तेल का दीया जलता था अब शुद्ध घी का दीया जलता है। प्रत्येक माह दीये जलाने में 15 किलोग्राम घी खर्च होता है जो कि श्रद्धालुओं के दान से प्राप्त होता है। कृष्ण पक्ष अमावस्या की मध्य रात पूरे विधि-विधान से पूजा आरंभ होती है जो देर रात तक चलती है। मंदिर में जगह कम है इस कारण श्रद्धालुओं के लिए सड़क पर ही दरी बिछायी जाती है।

    • डोरंडा के मणिटोला में मां काली की प्रसिद्ध मंदिर

    डोरंडा के मणिटोला में मां काली की प्रसिद्ध मंदिर है। मैया को मन्नत पूरा करने वाली माना जाता है। रांची ही नहीं आसपास के राज्यों में भी माता के लाखों भक्त है। इसके बाद भी माता एसबेस्टस के मंदिर में ही विराजमान हैं। ज्येष्ठ अमावस्या और काली पूजा में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। दूर दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं।

    मंदिर के पुजारी रामेश्वर पासवान के अनुसार 70 साल उनकी मां सोना देवी को माता ने पूजा अर्चना करने का स्वप्न दिया। स्वप्न की बात उन्होंने अपने स्वजनों को बतायी। इसके बाद से माता की सेवा में जुट गई। मान्यता है कि कुछ दिनों के बाद माता ने फिर स्वप्न में दर्शन दिया और मंदिर बनवाने को कहा। माता ने ही बिना तामझाम पूजा का आदेश दिया। माता के आदेश से वहां पहले खपरैल की मंदिर बनी बाद में खपैरल हटा कर एसबेस्टस डाला गया है।

    रामेश्वर पासवान के अनुसार माता का सख्त आदेश है कि यहां भव्य मंदिर न बने। इसी कारण श्रद्धालुओं की इच्छा के बाद भी यहां बड़ा मंदिर नहीं बनाया गया। मंदिर की प्रसिद्धि तब बढ़ी जब मां काली के आदेश से ज्येष्ठ अमावस्या को बड़ा पूजा का आयोजन होने लगा। पिछले 48 सालों से हर्षोल्लास पूर्वक बड़ा पूजा का आयोजन किया जाता है। तीन दिनी आयोजन में माता के दरबार में शीश झुकाने लाखों श्रद्धालु आते हैं। काली पूजा के दूसरे दिन इस बार भव्य भंडारा का आयोजन होगा जिसमें हजारों लोगों के बीच प्रसाद बांटे जाएंगे।

    • साउथ रेलवे कालाेनी में 54 साल पूर्व बनी थी काली मंदिर

    रांची साउथ रेलवे कालोनी में 54 साल पूर्व मां काली का भव्य मंदिर बना था। मंदिर का निर्माण रेलवे स्टाफ के प्रयास से हुआ। मंदिर निर्माण में कामती राम और जी सी राव व अन्य की प्रमुख भूमिका रही। मंदिर बनना आरंभ हुआ तो सहयोग में आसपास के लोग भी जुट गए। देखते देखते मां काली का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया। बाद में काली मंदिर परिसर में ही शिव मंदिर और हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गई। यहां प्रत्येक साल धूमधाम से काली पूजा होती है। तीन दिनों तक रेलवे कालाेनी एवं आसपास के क्षेत्र में उत्सव का नजारा होता है।

    इस बार 24 अक्टूबर को मध्य रात पूजा आरंभ होगी। देर रात बकरे की बलि दी जाएगी। दूसरे दिन 25 अक्टूबर को भजन संध्या का आयोजन होगा। तीसरे दिन महाभोग वितरण के साथ काली पूजा का समापन होगा। आयोजन की व्यवस्था में श्री श्री महाकाली मंदिर एवं शिव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष राम कुमार सिंह, सचिव भीम प्रसाद शर्मा, राजीव रंजन प्रसाद, अमित कुमार गुप्ता, मंटू सिंह, प्रदीप सहाय, संतोष सिंह, आशुतोष कुमार पांडेय सहित कई अन्य कार्यकर्ता अभी से जुटे हुए हैं।

    • डोरंडा बाजार में बांग्ला विधि-विधान से होती है माता की आराधना

    डोरंडा बाजार में मां काली मंदिर का निर्माण 1850 के आसपास हुआ। यहां सादगी से पूजा अर्चना होती थी। 1982 से भव्य रूप से पंडाल लगाकर भव्य रूप से पूजा-अर्चना आरंभ हुई। जब भीड़ के साथ श्रद्धालुओं की आस्था जगी तो पुराने मंदिर के 100 फीट की दूरी पर मां काली का भव्य मंदिर बनाये गए। दरअसल, मंदिर बनाने के पीछे का मुख्य वजह हादसा है।

    मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी रोहित सारदा ने बताया कि 2004 में पूजा पंडाल में आग लग गई। इसके बाद श्रद्धालुओं ने मंदिर बनाने की ठानी। माता का आशीर्वाद हुआ तो देखते-देखते भव्य मंदिर खड़ा हो गया। खासबात ये है कि यहां बांग्ला विधि-विधान से माता की आराधना होती है। पूजा की व्यवस्था में बांग्ला समाज की महिलाएं बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है। साथ ही, काली पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रतियोगिता भी कराये जाते हैं। इस बार न्यू काली पूजा समिति की ओर से 150 जरूरतमंद बच्चों के बीच पाठ्य सामग्रियों का वितरण होगा। बच्चों के बीच चित्रांकन प्रतियोगिता भी कराया जाएगा।

    आयोजन की व्यवस्था में पूजा समिति के संरक्षक टापू घोष, नवरत्न वाली, संजय घोष ,सुनील महतो, अध्यक्ष शंभू गुप्ता, उपाध्यक्ष: बप्पा घोष ,बबलू दास ,राजू दास ,मिठू घोष ,किशोर दास ,अनिल प्रधान ,रंतु उरांव महामंत्री अजय घोष आदि प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।