झारखंड के श्रमिक रामदास व पद्मश्री जमुना टुडू को राष्ट्रपति भवन से आया न्योता, भोज में होंगे शामिल
झारखंड के रामदास बेदिया और जमुना टुडू को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति भवन में भोज का निमंत्रण मिला है। किसान रामदास ने पीएम आवास योजना में जल्दी घर बनाया जबकि जमुना टुडू लेडी टार्जन के रूप में प्रसिद्ध हैं और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही हैं। जमुना राष्ट्रपति मुर्मू से जल जंगल और जमीन के मुद्दों पर बात करती हैं।

संजय कृष्ण, रांची। झारखंड से ऐसे दो भाग्यशाली हैं, जिन्हें स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त की राष्ट्रपति भवन में आयोजित भोज के लिए आमंत्रण मिला है। एक हैं अनगड़ा के किसान रामदास बेदिया और दूसरे पं सिंहभूम की पद्मश्री जमुना टुडू, जो लेडी टार्जन के नाम से ख्यात हैं।
जमुना गुरुवार को रांची बिरसा एयरपोर्ट से रवाना होंगी। पेड़ों की कटाई के खिलाफ वे लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं और लोग उन्हें लेडी टार्जन कहते हैं।
रामदास बुधवार को रांची स्टेशन से राजधानी से रवाना हो गए। अनगड़ा के बीसा गांव के रामदास बेदिया आदिवासी समुदाय से हैं। आजीविका के लिए खेतीबारी करते हैं और इसके बाद मजदूरी। तीन बच्चों के पिता 44 वर्षीय रामदास कहते हैं कि हमने इसकी कल्पना नहीं की थी।
हमने कभी सोचा नहीं था कि राष्ट्रपति भवन में जाएंगे और भोज में शामिल होंगे। यह मेरे लिए गौरव की बात है। रामदास कहते हैं, शनिवार को पत्र मिला। पहले तो सोचा कोई सामान्य पत्र होगा।
पत्र देने क लिए खुद डाक निरीक्षक सिकंदर प्रधान व समीर कुमार साहू आए थे। डाकपाल बैजनाथ महतो ने आमंत्रण पत्र सौंपा। डरते-डरते पत्र खोला तो आमंत्रण था। मेरे जैसे मामूली आदमी को भोज के लिए बुलावा आया था।
रामदास को यह आमंत्रण उनके काम के लिए मिला था। रामदास को प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत आवास का आवंटन हुआ और उन्हें एक लाख बीस हजार की राशि मिली थी। रामदास ने निर्धारित समय से पहले ही महज चार महीने के अंदर ही अपने मकान का निर्माण कार्य पूरा कर लिया।
समय से पहले काम पूरा करने के एवज में यह आमंत्रण मिला। हालांकि इस योजना में एक साल का समय लग जाता है, पर रामदास ने चार महीने में पूरा कर दूसरों के लिए एक नसीहत भी दे दी।
दीदी से जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे
पद्मश्री जमुना टुडू राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दीदी ही कहती हैं। वे कहती हैं कि जब भी दिल्ली जाने का मौका मिलता है तो दीदी से मिलने जरूर जाती हूं और उनसे जल, जंगल, जमीन की बात करती हैं। जमुना कहती हैं कि दीदी से संताली में ही बात करती हूं।
अभी हाल में आदिवासी दिवस पर गई थी और उनसे बात की थी। उनसे अपने क्षेत्र की समस्याओं को रखती हूं। आज पर्यावरण पर संकट है। पर्यावरण का नुकसान हर मनुष्य का नुकसान है। इससे केवल आदिवासी ही प्रभावित नहीं होंगे।
आदिवासी इसे बचाने को लेकर दिन-रात अपनी जान देकर प्रयास करता है। आज हाथियों को देखिए, आए दिन वे रेलवे ट्रैक पर मृत पाए जाते हैं। हाथियों पर भी आज संकट है। माइनिंग से हम सब प्रभावित हो रहे हैं।
जल, जंगल, जमीन से ही आदिवासी का अस्तित्व है और आज इन पर ही खतरा मंडरा रहा है। रोटी, बेटी, माटी खतरे में हैं। हम दीदी के समक्ष इन समस्याओं को रखते हैं। वे हमारे समुदाय की हैं।
हमारी बोली-बात बोलती हैं। हमारे दर्द को वे समझती हैं। हमें गर्व भी है। हमें भोज के लिए आमंत्रण मिला तो बहुत खुशी हुई।
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