निजी स्कूल मान्यता के लिए कर सकते हैं ऑनलाइन आवेदन, मानने होंगे शिक्षा विभाग के ये नियम
झारखंड में अब बिना मान्यता वाले स्कूलों पर सख्ती होगी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने शिक्षा नियमावली में बदलाव किया है जिसके तहत सभी स्कूलों को मान्यता लेना अनिवार्य है। शिक्षा विभाग सितंबर तक पोर्टल में बदलाव करके अक्टूबर से ऑनलाइन आवेदन शुरू करेगा। राज्य में लगभग 45000 गैर मान्यता प्राप्त स्कूल चल रहे हैं जिनमें गरीब बच्चे पढ़ते हैं।

कुमार गौरव, रांची। झारखंड में बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों पर अब सख्ती बरती जाएगी। झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने झारखंड निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियमावली में संशोधन कर दिया है। इसके तहत अब सभी स्कूलों के लिए मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है।
बता दें कि झारखंड राज्य में लगभग 45,000 निजी गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हैं। जहां गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। इन विद्यालयों में वैसे बच्चे जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय रहती है, पढ़ाई करते हैं।
केंद्र सरकार के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार द्वारा जारी पत्र में बताया गया कि झारखंड में यू-डायस कोड प्राप्त कुल 5,879 स्कूल हैं, जिसमें कुल छात्रों की संख्या 8,37,897 है और शिक्षकों की संख्या 46,421 है।
झारखंड प्राइवेट स्कूल एंड वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद कुमार ने कहा विभाग का कहना है कि जल्द से जल्द मान्यता के लिए ऑनलाइन आवेदन करके दें।
राज्य सरकार द्वारा 2019 में संशोधन किए गए, जिसमें कई कठिन नियम बनाए गए, जो छोटे-छोटे निजी विद्यालयों को मान्यता लेने में कई तरह की कठिनाइयां आ रही हैं।
झारखंड सरकार द्वारा इन विद्यालयों को यू-डाइस कोड प्रदान किया गया है। अप्रशिक्षित शिक्षकों को केंद्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से डीएलएड का प्रशिक्षण देकर उन्हें प्रशिक्षित किया गया।
इस अधिनियम में जमीन की बाध्यता को क्षेत्रफल के द्वारा नहीं दर्शाया गया है, उसमें विद्यालय भवन का कुल रकबा और निर्मित भवन का कुल रकबा का क्षेत्रफल पूछा गया है, जबकि झारखंड सरकार द्वारा 2019 में पारित संशोधन नियमावली में मध्य विद्यालय वर्ग 1 से 8 तक के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 1 एकड़ और शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल जबकि प्राथमिक विद्यालय वर्ग 1 से 5 तक के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 60 डिसमिल एवं शहरी क्षेत्रों के लिए 40 डिसमिल जमीन की मांग की गई है।
यह जमीन कम से कम 30 वर्षों के लिए रजिस्टर्ड या संस्था के नाम से लीज करने का नियम है जबकि बहुत ऐसे विद्यालय हैं जिनका संचालन आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है और झारखंड राज्य में सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट लागू है।
इस एक्ट के अंतर्गत आदिवासी एवं संस्था को जमीन मात्र 5 वर्षों तक लीज दिया जाता है। यह नियम देश की आजादी के पहले से लागू है ऐसे भूमि पर 30 वर्षों का लीज उपायुक्त के माध्यम से दिया जा सकता है।
ये हैं मांग
- जमीन संबंधी बाध्यता समाप्त कर विद्यालय की संरचना, कमरे की साइज और छात्र संख्या के आधार पर मान्यता दी जाए
- सीएनटी और एसपीटी एक्ट लागू जमीन को भी 30 वर्षों का लीज उपायुक्त के माध्यम से कराया जाए
- कमरे की साइज को विद्यालय और छात्र के अनुपात में रखा जाए
- जिन विद्यालयों के पास यू-डायस कोड नहीं मिला है उसे यू-डायस कोड दिया जाए।
शिक्षा विभाग का एक बड़ा दायित्व है कि वे नियमों को शिथिल कर सभी को मान्यता दे या फिर बंद करने का नोटिस देकर बच्चों के नामांकन की जिम्मेदारी ले। साथ ही 46 हजार शिक्षकों के प्रति शिक्षक चार सदस्यों की जिम्मेदारी देखे तो लगभग 2 लाख परिवार का पालन पोषण और 6 हजार विद्यालय के परिवार का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े 10 लाख से अधिक परिवारों का भरण पोषण की जिम्मेदारी ले। - अरविंद कुमार, अध्यक्ष, झारखंड प्राइवेट स्कूल एंड वेलफेयर एसोसिएशन।
निजी विद्यालयों से प्रतिवर्ष यू-डाइस फार्म और विद्यालय की पूरी तालिका भरवाई जाती है। 2015 से सभी विद्यालयों से प्रतिवर्ष कक्षावार छात्र छात्राओं का आंकड़ा एवं शिक्षकों का पूर्ण विवरण मांगा जाता है, जिसे सभी विद्यालय प्रतिवर्ष शिक्षा विभाग को जमा कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा 2009 में एवं राज्य सरकार द्वारा 2011 में इस अधिनियम को लागू किया गया। - मोजाहिदुल इस्लाम, महासचिव, झारखंड प्राइवेट स्कूल एंड वेलफेयर एसोसिएशन।
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