Jharkhand News: रेम्स में अब मरीज रेफर करने से पहले देना होगा जवाब, निजी अस्पतालों पर प्रशासन की सख्ती
रांची के रिम्स अस्पताल में निजी अस्पतालों से रेफर किए जाने वाले मरीजों की भर्ती को लेकर नए नियम लागू किए जाएंगे। निदेशक डॉ. राजकुमार ने बताया कि निजी अस्पतालों को अब मरीज रेफर करने से पहले तीन सवालों के जवाब लिखित में देने होंगे। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कई निजी अस्पताल गंभीर मरीजों को रिम्स भेज देते हैं, जिससे अस्पताल पर अनावश्यक दबाव बढ़ जाता है। इस कदम से मरीजों को बेहतर इलाज मिलने की उम्मीद है।

झारखंड का रिम्स अस्पताल
अनुज तिवारी, रांची। राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स (राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान) में अब निजी अस्पतालों से आने वाले रेफर मरीजों की भर्ती मनमाने तरीके से नहीं हो सकेगी। रिम्स प्रबंधन ने अब ऐसे मामलों पर सख्त रुख अपनाने की तैयारी शुरू कर दी है।
निदेशक डॉ. राजकुमार ने कहा है कि वे एक नई नीति लागू करने जा रहे हैं जिसके तहत निजी अस्पतालों को मरीज रेफर करने से पहले तीन अहम सवालों का जवाब लिखित रूप में देना होगा। इस व्यवस्था के बाद अब निजी अस्पतालों द्वारा मरने की स्थिति में मरीज को रिम्स भेज देने की प्रवृत्ति पर लगाम लगने की उम्मीद है।
उन्होंने बताया कि अभी रिम्स में ऐसे-ऐसे रेफर केस आ रहे हैं जो बुरी स्थिति रिम्स भेजी जा रही है, इससे बेवजह भीड़ भी बढ़ रही है और मरीजों की मृत्यु से भी इलाज पर सवाल उठ रहा है। इस समस्या को लेकर स्वास्थ्य मंत्री से बात हो चुकी है।
अब तीन सवालों के जवाब के बिना नहीं होगी भर्ती
नए प्रस्तावित नियमों के अनुसार, जो भी निजी अस्पताल रिम्स को मरीज रेफर करेगा, उसे तीन मुख्य बिंदुओं पर लिखित जवाब देना अनिवार्य होगा। पहला, मरीज किस स्थिति में आया था और उसके इलाज में क्या-क्या चिकित्सीय कदम उठाए गए।
दूसरा, वर्तमान में मरीज की हालत क्या है और आखिर उसे रेफर करने की जरूरत क्यों पड़ी। तीसरा, मरीज की सर्जरी या गंभीर स्थिति के दौरान क्या उपचार हुआ और अब उसे क्यों स्थानांतरित किया जा रहा है। उन्हें रेफर करने से पहले निदेशक से मिलना ही होगा।
डॉ. राजकुमार ने स्पष्ट कहा कि यदि निजी अस्पताल इन बिंदुओं पर जवाब नहीं देते हैं या मरीज को गंभीर अवस्था में बिना समन्वय के भेजते हैं, तो ऐसे मरीजों की भर्ती रिम्स में नहीं की जाएगी।
उन्होंने कहा कि अब यह सिलसिला खत्म होगा कि निजी अस्पताल लाखों रुपये इलाज में ले लें और जब मरीज की स्थिति बिगड़ जाए तो रिम्स को ‘डेथ ट्रांसफर स्टेशन’ बना दें।
ब्रेन डेथ मरीज कर दिया गया रिम्स रेफर
रिम्स निदेशक ने कहा कि कई निजी अस्पतालों द्वारा लापरवाही और लालच के चलते मरीजों के साथ अन्याय हो रहा है। कई मामलों में देखा गया है कि मरीज पर 10 से 30 लाख रुपये तक खर्च करवा देने के बाद, जब इलाज की कोई गुंजाइश नहीं बचती, तो उसे बिना समुचित रेफरल प्रोटोकाल के रिम्स भेज दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में बोकारो से आए एक मरीज पर निजी अस्पताल ने 30 लाख रुपये तक का खर्च लिया, लेकिन जब हालत गंभीर हुई तो उसे रिम्स भेज दिया गया। इसी तरह एक अन्य मामले में रांची के एक निजी अस्पताल ने चार-पांच लाख रुपये वसूलने के बाद मरीज को अधमरी हालत में रेफर कर दिया।
डॉ. राजकुमार ने बताया कि यहां तक कि ब्रेन-डेथ मरीजों को भी रेफर किया गया है, जिन्हें रिम्स में भर्ती कर वेंटिलेटर पर रखा गया है। यह प्रवृत्ति अत्यंत अमानवीय है और इसे अब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
मरीज हित में होगा निर्णय
निदेशक ने कहा कि यह निर्णय मरीजों के हित में है। उन्होंने कहा कि रिम्स में भर्ती तभी होगी जब यह स्पष्ट होगा कि मरीज के इलाज का अब भी व्यावहारिक अवसर मौजूद है और निजी अस्पताल ने अपने स्तर पर सभी चिकित्सीय प्रयास किए हैं।
इससे न केवल अस्पताल पर अनावश्यक भार कम होगा, बल्कि मरीजों के परिजनों को पारदर्शिता भी मिलेगी। उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों की जिम्मेदारी है कि वे मरीज का पूरा इलाज करें। अधूरे इलाज या असफल आपरेशन के बाद मरीज को रिम्स भेज देना डॉक्टरों की जिम्मेदारी से भागने जैसा है।
अगली गवर्निंग बाडी बैठक में होगा प्रस्ताव
रिम्स प्रबंधन इस नए नियम को औपचारिक रूप देने की तैयारी कर रहा है। अगली गवर्निंग बाडी (जीबी) बैठक में इसे एजेंडा के रूप में रखा जाएगा। इस पर स्वास्थ्य सचिव और राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।
निदेशक के अनुसार, इस नीति से न केवल रेफर सिस्टम में जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि रिम्स की इमरजेंसी सेवाओं पर अत्यधिक बोझ भी कम होगा। मालूम हो कि अगली बैठक 12 नवंबर तय की गई है।
रिम्स में बढ़ रही रेफर मरीजों की संख्या
पिछले कुछ महीनों में रिम्स में रेफर मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन 50 से अधिक गंभीर मरीज विभिन्न निजी अस्पतालों से रेफर होकर पहुंचते हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत मरीजों की स्थिति अत्यंत गंभीर होती है।
इनमें कई मरीज ऐसे भी होते हैं जो या तो वेंटिलेटर पर होते हैं या जिनका इलाज अधूरा छोड़ दिया गया होता है। इस वजह से न केवल रिम्स के डाक्टरों पर अतिरिक्त दबाव बनता है, बल्कि पहले से भर्ती गंभीर मरीजों के उपचार पर भी असर पड़ता है।
रिम्स में इलाज की स्थिति
रिम्स में इस समय औसतन 3500 से अधिक आउटडोर मरीज रोजाना इलाज के लिए आते हैं, जबकि करीब 2400 से अधिक इनडोर बेड लगभग हमेशा भरे रहते हैं। सीमित संसाधनों और डाक्टरों की कमी के बीच भी यहां आपातकालीन सेवाएं 24 घंटे जारी रहती हैं।
हाल ही में रिम्स प्रबंधन ने मरीजों की बेहतर देखरेख के लिए कई नई पहलें शुरू की हैं। लेकिन अत्यधिक भीड़ की वजह से समस्या बढ़ी है।
रिम्स किसी का बैकअप सेंटर नहीं होगा
डॉ. राजकुमार ने साफ कहा कि रिम्स किसी निजी अस्पताल का बैकअप सेंटर नहीं है। यह राज्य का सबसे बड़ा और अंतिम चिकित्सा संस्थान है, जहां गंभीर मरीजों का इलाज किया जाता है। उन्होंने कहा कि जो निजी अस्पताल लाखों रुपये लेकर मरीज का इलाज अधूरा छोड़ देते हैं, उन्हें समझना होगा कि रिम्स कोई रेस्क्यू हास्पिटल नहीं है।

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