ओडिशा-बंगाल बॉर्डर पर हाथी दांत की तस्करी, क्या हाथियों की लगातार मौत का यही है कारण?
ओडिशा के क्योंझर जिले में 3.28 किलोग्राम हाथी दांत के साथ दो तस्करों की गिरफ्तारी हुई है। यह घटना कोल्हान क्षेत्र में हाथियों की बढ़ती मौत और तस्करी के बीच संबंध पर सवाल खड़े करती है। 2025 में झारखंड में हाथियों की मौत के मामले भी चिंता का विषय बने हुए हैं जिसके पीछे बिजली के तार रेल दुर्घटनाएं और मानव-हाथी संघर्ष जैसे कारण प्रमुख हैं।

डिजिटल डेस्क, रांची। पश्चिम सिंहभूम से सटे ओडिशा के क्योंझर जिले में 3.28 किलोग्राम हाथी दांत के साथ दो तस्करों की गिरफ्तारी ने ओडिशा और बंगाल सीमा पर वन्यजीव अपराधों के एक नए और चिंताजनक पहलू को उजागर किया है। यह गिरफ्तारी महज एक घटना नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़े करती है कि क्या कोल्हान क्षेत्र में हाथियों की लगातार हो रही मौतें और हाथी दांत की बरामदगी आपस में जुड़ी हुई हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सक्रिय गिरोहों से जुड़ रहे तार
पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम ने पटना रेंज के मालीपोशी क्षेत्र से मदन मोहन तामुडिया और रथ सोरेन नामक दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है। उनके पास से 3.28 किलोग्राम हाथी दांत बरामद हुए हैं।
पूछताछ में यह सामने आया है कि ये तस्कर ओडिशा के क्योंझर और मयूरभंज जैसे जिलों से हाथी दांत इकट्ठा कर इसे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में बेचने की कोशिश कर रहे थे। तस्करों ने खुलासा किया है कि वे इन हाथी दांतों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने वाले बड़े गिरोहों से संपर्क में थे।
कोल्हान में हाथियों की मौत और तस्करी का कनेक्शन
हाल के वर्षों में कोल्हान क्षेत्र (ओडिशा और झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्र) में कई हाथियों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई है। वन अधिकारियों ने इन मौतों के कारणों का पता लगाने की कोशिश ही कर रही है। कई मामलों में मौत की सही वजह सामने नहीं आ पाई है।
इस बीच हाथी दांत की तस्करी का यह नया मामला एक गंभीर संकेत देता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि हाथियों की मौत के पीछे सिर्फ दुर्घटनाएं या बीमारी ही नहीं, बल्कि शिकारी भी हो सकते हैं। जो हाथी दांत के लिए उनका शिकार कर रहे हैं।
ओडिशा-बंगाल बॉर्डर बना तस्करों का नया ठिकाना
ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच का घना जंगल और सीमावर्ती क्षेत्र तस्करों के लिए एक सुरक्षित मार्ग बन गया है। यह क्षेत्र वन विभाग की कमजोर निगरानी और अंतर-राज्यीय समन्वय की कमी का फायदा उठाते हुए तस्करों को अवैध व्यापार के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करता है।
तस्कर इस मार्ग का उपयोग न केवल हाथी दांत, बल्कि अन्य वन्यजीव उत्पादों की तस्करी के लिए भी करते हैं। इसमें वन विभाग के कर्मियों और स्थानीय जनों की मिलीभगत होती है।
वन्यजीव संरक्षण के लिए जन जागरूकता जरूरी
यह घटना दर्शाती है कि ओडिशा और बंगाल के वन विभाग को वन्यजीव अपराधों से निपटने के लिए अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। सीमाओं पर कड़ी निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाना और दोनों राज्यों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना महत्वपूर्ण हो गया है।
साथ ही स्थानीय समुदायों को जागरूक करना और उन्हें इन अपराधों की जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है। यह गिरफ्तारी वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह केवल शुरुआत है। इस पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करने और हाथियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
झारखंड में हाथियों की मौतें, एक चिंताजनक सिलसिला
वर्ष 2025 में झारखंड में हाथियों की मौत की घटनाओं ने वन्यजीव प्रेमियों और वन विभाग को समान रूप से चिंतित कर दिया है। ये मौतें दर्शाती हैं कि मानव-हाथी संघर्ष और प्राकृतिक आवास का नुकसान इस क्षेत्र में एक गंभीर समस्या बन चुका है। कोल्हान एरिया में ही पिछले 35 दिनों में चार हाथियों की मौत ने खतरे की घंटी बजा दी है। यह क्षेत्र अब हाथियों के लिए एक मौत के जाल में तब्दील होता जा रहा है।
कई मामलों में हाथियों की मौत का कारण अवैध रूप से लगाए गए बिजली के तार पाए गए हैं। सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल वन क्षेत्र के हेवन गांव में एक 26 वर्षीय मादा हाथी की मौत बिजली के करंट से हुई। वह फसल की सुरक्षा के लिए लगाए गए एक अवैध बाड़ के संपर्क में आ गई थी।
सारंडा जंगल में एक छह वर्षीय हाथी की मौत माओवादियों द्वारा लगाए गए एक आईईडी (IED) विस्फोट के कारण हुई थी। वन्यजीवों के लिए यह भी एक नया खतरा पैदा हो गया है।
सरकारी प्रयास नाकाफी, सख्ती बरतने की जरूरत
वन विभाग ने इन घटनाओं की जांच शुरू कर दी है और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। इन मौतों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। अवैध बिजली के बाड़ों पर सख्त निगरानी, रेलवे पटरियों पर सुरक्षा उपाय बढ़ाना और माओवादी क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा रणनीति अपनाना शामिल है।
झारखंड-बंगाल हाथी गलियारा (Jharkhand-Bengal Elephant Corridor) भी हाथियों के लिए एक खतरनाक मार्ग साबित हुआ है। इस गलियारे में कई हाथियों की मौत ट्रेन दुर्घटनाओं में हुई है, जिससे रेलवे और वन विभाग के बीच समन्वय की कमी उजागर हुई है। इन घटनाओं का मूल कारण हाथियों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण और उनके गलियारों में बढ़ती मानवीय गतिविधियां हैं।
यह हाथियों को भोजन और पानी की तलाश में गांवों और खेतों में प्रवेश करने के लिए मजबूर करता है, जिससे संघर्ष और मौतें बढ़ रही हैं। इसी का लाभ हाथी दांत के तस्कर उठाते हैं।

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