'हो' भाषा की लड़ाई: झारखंड से लेकर दिल्ली तक, जानें क्यों जरूरी है 8वीं अनुसूची में शामिल होना
हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर 1 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर हो समाज आंदोलन करेगा। हो भाषा झारखंड ओडिशा पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में बोली जाती है लेकिन इसे अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है। यह आंदोलन भाषा को उसकी पहचान शिक्षा और रोजगार में उसका उचित स्थान दिलाने के लिए किया जा रहा है।

जागरण संवाददाता, पश्चिमी सिंहभूम (कुमारडुंगी)। ‘हो’ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग को लेकर आदिवासी ‘हो’ समाज ने आंदोलन की कमान संभाल ली है। इस मांग को राष्ट्रीय स्तर पर जोर-शोर से उठाने के लिए आगामी 1 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा। इसके पहले 31 अक्टूबर को दिल्ली में ‘हो भाषा’ पर एक राष्ट्रीय सेमिनार भी होगा। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कुमारडुंगी प्रखंड में सक्रिय रूप से जनसंपर्क अभियान चलाया गया।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लखन सिंकू के नेतृत्व में खंडकोरी गांव, बड़ाजाम्बनी गांव के राजाबासा टोला और प्रखंड मुख्य चौक में जाकर ग्रामीणों से मुलाकात की गई। ग्रामीणों से अपील की गई कि वे दिल्ली जाकर आंदोलन को सफल बनाएं और अपनी भाषा की अस्मिता के लिए आवाज बुलंद करें।
'हो' भाषा को हक दिलाने की तैयारी
इस मौके पर ‘हो’ समाज युवा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव गब्ब रसिंह हेम्ब्रम ने कहा कि ‘हो’ भाषा करोड़ों लोगों की मातृभाषा है, जो झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और दिल्ली समेत कई राज्यों में बोली जाती है। बावजूद इसके, इसे अब तक संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है। यह सरकार की उपेक्षा का प्रमाण है।
उन्होंने बताया कि 'हो' भाषा की मान्यता केवल सांस्कृतिक पहचान नहीं बल्कि शिक्षा, रोजगार और प्रशासनिक भागीदारी से भी जुड़ी हुई है। इसलिए अब समाज के लोगों को संगठित होकर निर्णायक आंदोलन करना होगा।
कुमारडुंगी से शुरू हुआ जनसंपर्क अभियान
जनसंपर्क अभियान के दौरान हर गांव से कम से कम दो प्रतिनिधियों को दिल्ली चलने के लिए प्रेरित किया गया। इस दौरान ग्रामीणों से सामाजिक और आर्थिक सहयोग की भी अपील की गई ताकि आंदोलन में अधिकतम सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।
कुमारडुंगी में इस अभियान में सिकंदर तिरिया, जुरिया बागे, बबलू सिंकू, सावित्री बागे, सोमवारी बागे सहित कई समाजसेवी और ग्रामीण उपस्थित थे। आंदोलन को लेकर लोगों में उत्साह दिखा और समर्थन की व्यापक लहर दिखाई दी।
'हो' पर जो आपको जानना चाहिए
झारखंड में 'हो' भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 9,92,197 है। यह राज्य की कुल आबादी का करीब 3.01% है, और इसे झारखंड की 8वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा माना जाता है।
- मुख्य क्षेत्र: 'हो' भाषा मुख्य रूप से झारखंड के कोल्हान प्रमंडल (पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां) में बोली जाती है। पश्चिमी सिंहभूम जिले में तो यह सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
- अन्य राज्यों में प्रसार: 'हो' भाषा बोलने वाले लोग केवल झारखंड तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है।
- लिपि: 'हो' भाषा की अपनी स्वदेशी लिपि है, जिसे वारंग क्षिति (Warang Chiti) कहा जाता है। इसे 20वीं सदी में लाको बोदरा ने विकसित किया था। हालांकि, इसे लिखने के लिए देवनागरी और लैटिन लिपियों का भी उपयोग किया जाता है।
- संवैधानिक मान्यता की मांग: इसी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए 'हो' समाज लंबे समय से आंदोलन कर रहा है। यह मान्यता मिलने से 'हो' भाषा को शिक्षा, साहित्य और सरकारी कार्यों में बढ़ावा मिलेगा।
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