हो जनजातीय जीवन दर्शन संग्रहालय बना शोधकर्ताओं का आकर्षण, स्थापना दिवस पर जुटीं हस्तियां
चाईबासा के मझगांव प्रखंड में मध्य विद्यालय देवधर स्थित हो जनजातीय जीवन दर्शन संग्रहालय का आठवां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन अरविंद विजय बिलुंग ने किया। वक्ताओं ने मातृभाषा आदिवासी अस्मिता और स्वरोजगार के महत्व पर प्रकाश डाला। बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। साहित्यकार जवाहरलाल बांकिरा ने अपनी कविता संकलन भेंट की।

जागरण संवाददाता, चाईबासा। मझगांव प्रखंड अंतर्गत मध्य विद्यालय देवधर में स्थित हो जनजातीय जीवन दर्शन पर आधारित संग्रहालय का आठवां स्थापना दिवस परंपरागत रीति-रिवाज और उत्साह के साथ मनाया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन संग्रहालय निर्माण के प्रेरक एवं कोल्हान प्रमंडल के पूर्व शिक्षा उपनिदेशक अरविंद विजय बिलुंग ने किया। आगंतुक अतिथियों का स्वागत पारंपरिक तरीके से उनके हाथ-पैर धोकर, पत्ते की टोपी और बैज पहनाकर तथा हो जनजातीय नृत्य की अगुवाई के साथ किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि
बिलुंग ने अपने उद्बोधन में कहा, “जीवन में किसी भी कार्य की शुरुआत के साथ उसकी निरंतरता और समय-समय पर अपडेशन आवश्यक है। देवधर संग्रहालय का रख-रखाव इस तरह किया जा रहा है कि आज यह न केवल देश के कोने-कोने से बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।”
समाजसेवी नरेश देवगम ने मातृभाषा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि अपनी भाषा के साथ राजकीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान भी जरूरी है, ताकि हम अपनी पहचान बचाए रखते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकें।
हो साहित्यकार जवाहरलाल बांकिरा ने आदिवासी अस्मिता पर गर्व करने की बात कही और कहा कि विश्व संकट की घड़ी में आदिवासियों की जीवनशैली ही मानवता के लिए आदर्श बनती है।
सिकंदर बुड़ीउली (रविन्द्र बाल संस्कार केंद्र, निदेशक) ने स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने को विकास का मार्ग बताया। सेलाय पुर्ति (ओड़िशा) ने अपनी परंपराओं और रीति-रिवाज को न भूलने का आह्वान किया।
प्रभारी प्रधानाध्यापक जगदीश सावैयां ने क्षेत्र में उच्च विद्यालय की कमी पर चिंता जताते हुए जनप्रतिनिधियों से पहल की मांग की।
संग्रहालय के शैक्षणिक महत्व पर प्रकाश
हो भाषा के राज्य साधनसेवी शिक्षक कृष्णा देवगम ने कहा कि संग्रहालय की वस्तुएं बच्चों के लिए जीवंत शिक्षण सामग्री हैं। मातृभाषा के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सरल और स्पष्ट होती है, जिससे बच्चे अपने परिवेश से जुड़कर ज्ञान अर्जित कर पाते हैं।
सांस्कृतिक समारोह ने बांधा समा
स्थानीय विद्यालयों के बच्चों ने पारंपरिक हो लोकनृत्य, “सुंदर झारखंड”, “जोहार आदिवासी”, “स्वर्ग लेकन दिसुम” जैसे गीतों और आधुनिक प्रस्तुतियों से उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मनोज हेम्ब्रम ने नशा के दुष्परिणाम पर कविता प्रस्तुत की। आसमान हांसदा ने पारंपरिक हेरो लोकगीत गाकर वातावरण को भावविभोर कर दिया।
इस अवसर पर साहित्यकार जवाहरलाल बांकिरा ने मुख्य अतिथि बिलुंग को अपनी कविता संकलन “देशाउलि और इमली का पेड़” भेंट की।
कार्यक्रम के संचालन में मोहन तिरिया, देवानंद तिरिया, प्रभात तिरिया, मेनंती पिंगुवा, सुभाष हेम्ब्रम, महाती पिंगुवा, कविता महतो, चंद्रशेखर तामसोय, जनक किशोर गोप, मार्शल पुरती समेत बड़ी संख्या में शिक्षकों, साहित्यकारों, अभिभावकों और ग्रामीणों की उपस्थिति रहीं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।