कहानी गहनों की: कश्मीरी पंडित दुल्हनों की पहचान है 'देझूर', शिव-शक्ति के मिलन का माना जाता है प्रतीक
गहनें सदियों से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। उस पर खास बात यह है कि यहां हर क्षेत्र में खास डिजाइन के आभूषण मिल जाएंगे, जो वहां की कला को दर्शात ...और पढ़ें

क्या आप जानते हैं देझूर का महत्व?
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में गहनें शादी-ब्याह के मौकों पर जरूर पहनी जाती हैं। ऐसा आज से नहीं, बल्कि सदियों से होता आ रहा है। अलग-अलग क्षेत्रों की दुल्हनें अलग-अलग खास डिजाइन की जूलरी पहनती हैं, जो उनकी संस्कृति और विरासत को दर्शाती हैं। ऐसा ही है कश्मीर का देझूर (Dejhoor)।
देझूर कश्मीरी पंडित दुल्हनों के शृंगार का अहम हिस्सा है, जो हाल के समय में और भी ज्यादा चर्चा में है। सोशल मीडिया पर देझूर से इंस्पायर्ड ईयर रिंग्स खूब पसंद किए जा रहे हैं। लेकिन पारंपरिक देझूर का महत्व और भी खास है। कहानी गहनों की सीरिज में आइए जानें देझूर का इतिहास क्या है, इसका महत्व और आज के समय में यह क्या मायने रखता है।
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(Picture Courtesy: Instagram)
देझूर का इतिहास क्या है?
कश्मीर पंडित दुल्हनों के श्रृंगार में देझूर का स्थान सदियों से बहुत अहम रहा है। यह केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि पवित्रता, शालीनता और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यह कश्मीरी पंडितों की सांस्कृतिक पहचान का एक अटूट हिस्सा है, जिसे आज भी उचने ही प्रेम और सम्मान के साथ पहना जाता है।
देझूर का इतिहास
देझूर के इतिहास को लेकर एक खूबसूरत किंवदंती जुड़ी हुई है। माना जाता है कि इन खास सुनहरे झुमकों की प्रेरणा हंसों की चाल से ली गई थी, जो इसे पहनने वाली दुल्हन की अलौकिक सुंदरता को दर्शाती है। इस गहने के बारे में यह भी माना जाता है कि यह नवविवाहित जोड़े के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाता है।
यही कारण है कि देझूर को एक अनमोल पारिवारिक विरासत के तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता है। मां अपनी बेटी की शादी पर उसे देझूर देती है, जिसे वह आगे अपनी बेटी की शादी पर देती है। इस तरह यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है।
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(Picture Courtesy: Instagram)
देझूर का महत्व क्या है?
देझूर का स्वरूप अपने आप में बेहद खास है। यह एक छोटा, षटकोणीय सोने का लटकन होता है। यह एक 'यंत्र' है, जो हिंदू धर्म में सर्वोच्च माने जाने वाले शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है। शुरुआत में, इसे कान के ऊपरी हिस्से में एक लाल रेशमी धागा, जिसे नैरवन कहा जाता है, से बांधा जाता है।
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इसका सामाजिक महत्व विवाह की एक महत्वपूर्ण रस्म से जुड़ा हुआ है। जब दुल्हन पहली बार अपने नए घर में प्रवेश करती है, तो नैरवन धागे को ससुराल वाले एक सोने की चेन, जिसे 'अथ' (ath) कहते हैं, से बदल दिया जाता है। एक छोटा-सा लटकता हुआ टुकड़ा, जिसे 'अथाहुर' (atahur) कहते हैं, इसको पूरा करता है।
धागे से सोने की चेन तक का यह बदलाव, लड़की से पत्नी बनने का परिवर्तन, महिला के मां के घर से पति के घर में प्रवेश को दर्शाता करता है। सदियों से, इसे पहनने वाली महिला को देखकर ही उसके शादी शुदा होने का पता चल जाता है।

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बेमिसाल शिल्प और कारीगरी
देझूर को असाधारण कारीगरी और बारीकी से बनाया जाता है, जो कश्मीरी कारीगरों की कला का बेजोड़ नमूना है। यह आमतौर पर सोने से बनाया जाता है। इसके डिजाइन में कश्मीर के जीवन से प्रेरित बारीक मोटिफ शामिल होते हैं। ये डिजाइन इस क्षेत्र की शिल्प कौशल और सांस्कृतिक विरासत को दिखाते हैं।
आधुनिक समय में देझूर का महत्व
हालांकि, देझूर पारंपरिक रूप से केवल कश्मीरी पंडित दुल्हनों द्वारा ही पहना जाता रहा है, लेकिन इसकी सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व के कारण, आज के समय में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की दुल्हनें भी इसे अपना रही हैं। इसके डिजाइन में और कई तरह के मोटिफ और एलिमेंट जोड़कर सुंदर ईयर रिंग्स बनाए जा रहे हैं, जिन्हें महिलाएं खूब पसंद कर रही हैं।

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