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    कहानी गहनों की: 'मांग टीके' के बिना अधूरा है दुल्हन का सोलह शृंगार, दिलचस्प है इस राजसी आभूषण का सफर

    Updated: Mon, 08 Dec 2025 12:07 PM (IST)

    भारतीय आभूषणों को कभी भी केवल सजावट की वस्तु के रूप में नहीं देखा जा सकता। भारत में हर एक गहने का महत्व फैशन से कहीं बढ़कर है और इसकी जड़ें अध्यात्म में ...और पढ़ें

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    दुल्हन की खूबसूरती में चार चांद लगाता है 'मांग टीका' (Image Source: Jagran)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय आभूषणों की खूबसूरती सिर्फ उनके रूप में नहीं, बल्कि उनकी गहराई में छिपे अर्थों में भी बसती है। इन्हीं में से एक है मांग टीका, जिसे सदियों से भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान हासिल है। माथे के बीचों-बीच टिके इसके पेंडेंट में सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि आध्यात्मिक महत्व, सांस्कृतिक पहचान और स्त्री-शक्ति का संदेश भी छिपा होता है। 'कहानी गहनों की' सीरीज में आइए जानते हैं, मांग टीका का इतिहास, महत्व और आधुनिक दौर में इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बारे में।

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    kahani gehno ki Maang Tikka

    (Image Source: AI-Generated)

    मांग टीका क्या है और क्यों है खास?

    मांग टीका एक पतली चेन होती है जिसके पीछे की ओर एक हुक और सामने एक खूबसूरत पेंडेंट लगा होता है। चेन बालों की मांग में फंसाई जाती है और पेंडेंट ठीक माथे के केंद्र में टिकता है। परंपरागत रूप से भारतीय महिलाएं इसे पहली बार अपनी शादी के दिन पहनती थीं, क्योंकि यह सोलह श्रृंगार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज, समय बदल चुका है। मांग टीका अब सिर्फ दुल्हनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दुनिया भर की महिलाएं इसे फैशन स्टेटमेंट के तौर पर पहनती हैं- यहां तक कि वेस्टर्न आउटफिट्स के साथ भी।

    significance of Maang Tikka

    (Image Source: AI-Generated)

    मांग टीका का आध्यात्मिक महत्व

    भारतीय मान्यताओं के अनुसार, मांग टीका का पेंडेंट जहां टिकता है, वही स्थान आज्ञा चक्र माना जाता है- ज्ञान, अंतर्दृष्टि और आत्म-शक्ति का केंद्र। इस स्थान को तीसरा नेत्र भी कहा जाता है। माना जाता है कि यह दुल्हन को नई जिंदगी की शुरुआत के लिए साहस, ज्ञान और इच्छाशक्ति प्रदान करता है, उसे बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। इसके अलावा, यह दूल्हा और दुल्हन के बीच आध्यात्मिक और भावनात्मक मिलन का प्रतीक भी है।

    maang tikka

    (Image Source: Freepik)

    मांग टीका और सिंदूर का गहरा नाता

    मांग टीका की ऐतिहासिक यात्रा बेहद रोचक है। इसे सिर्फ दुल्हनें ही नहीं बल्कि राजा-महाराजा, रानियां और राजकुमारियां भी पहनती थीं। इनके टीके अक्सर सोने से बने होते थे और उनमें पन्ना, रूबी, पोल्की और अनकट डायमंड जड़े रहते थे। इसका नाम 'मांग टीका' इसलिए पड़ा क्योंकि इसे बालों की मांग के बीच में पहना जाता था।

    कुछ प्राचीन कथाओं के अनुसार, युद्ध से लौटे राजा अपने शत्रु के रक्त से रानी की मांग भरते थे। यही रस्म आगे चलकर सिंदूर की परंपरा में बदल गई। आज भी विवाह में दूल्हा दुल्हन के मांग टीका को थोड़ा उठाकर उसमें सिंदूर भरता है और इसे फिर से सही जगह लगा देता है। यह दुल्हन की रक्षा और वैवाहिक बंधन का प्रतीक माना जाता है।

    राजसी शान का प्रतीक रहा है मांग टीका

    इतिहासकारों का मानना है कि मांग टीका की शुरुआत फूलों से हुई होगी, जिन्हें प्रतीकात्मक रूप से माथे पर पहना जाता था। समय के साथ, इन फूलों की जगह सोने और रत्नों ने ले ली, जो अक्सर फूलों के आकार में ही बनाए जाते थे।

    शाही दरबारों में रानियां और राजकुमारियां अपनी शान और प्रतिष्ठा दिखाने के लिए कीमती पत्थरों, पन्ना, माणिक और बिना तराशे हीरों से जड़े हुए सोने के मांग टीके पहनती थीं। यह 'दिव्य नारीत्व' के सशक्तिकरण और राजसी धन का प्रतीक था।

    maang tika

    (Image Source: Freepik)

    हर क्षेत्र का अपना अंदाज

    भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मांग टीका के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं:

    • राजस्थान: यहां के राजपूत 'बोरला' पहनते हैं, जो सोने और पोल्की से बना एक बूंद के आकार का टीका होता है।
    • मुस्लिम दुल्हनें: ये अक्सर 'झूमर' या 'पासा' पहनती हैं, जो कुंदन, मोतियों और रत्नों से बना होता है और सिर के एक तरफ पहना जाता है।
    • पंजाब: यहां की दुल्हनें चांद के आकार वाले टीके पसंद करती हैं।

    भारतीय नृत्य शैलियों में भी मांग टीका का विशेष महत्व है। नर्तक इसे नेथि चुट्टी के रूप में पहनते हैं, जिसमें सिर पर सूर्य और चंद्रमा जैसे दो आभूषण भी लगाए जाते हैं। यह स्वर्ग का प्रतीक माने जाने वाले सिर को सजाने की प्राचीन परंपरा है।

    आज के दौर में मांग टीका सिर्फ दुल्हनों तक सीमित नहीं है। यह आधुनिक फैशन का एक हिस्सा बन गया है। अब महिलाएं इसे न केवल साड़ी और लहंगे के साथ, बल्कि आधुनिक गाउन और पश्चिमी परिधानों के साथ भी एक 'फैशन स्टेटमेंट' के रूप में पहनती हैं। यह आभूषण आज परंपरा और आधुनिकता के संगम का एक बेहतरीन उदाहरण है।

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