डॉक्टरी से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई तक... कहानी स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम हीरोज की
भारत इस साल अपनी 79वीं स्वतंत्रता दिवस (Independence Day 2025) मना रहा है जो हमें 1947 में ब्रिटिश शासन से मिली आजादी की याद दिलाता है। स्वतंत्रता दिवस का मेडिकल क्षेत्र में भी गहरा महत्व है क्योंकि आजादी से पहले स्वास्थ्य सेवाएं पिछड़ी हुई थीं। कुछ डॉक्टर्स ऐसे हैं जिन्हाेंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। इस साल भारत 79वीं स्वतंत्रता दिवस की सालगिरह मना रहा है। ये दिन हमें उस दिन की याद दिलाता है जब 1947 में 200 से ज्यादा सालों की ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी। ये सिर्फ राजनीतिक आजादी का प्रतीक नहीं है, बल्कि देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विकास का भी एक अहम मोड़ है।
आपको बता दें कि स्वतंत्रता दिवस का महत्व मेडिकल लाइन में भी गहराई से जुड़ा है। बताया जाता है कि जब हमारा भारत आजाद नहीं हुआ था तो यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था काफी पिछड़ी हुई थी। स्वास्थ्य सुविधाएं ज्यादातर शहरों तक ही सीमित थी और गांवों में रहने वाली बड़ी आबादी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। अंग्रेजी शासन में बनाए गए स्वास्थ्य नियम और सुविधाएं ज्यादा ब्रिटिश ऑफिसर्स और सैनिकों के लिए ही थीं।
आजादी की लड़ाई के दौरान, डॉक्टर सिर्फ इलाज करने वाले नहीं थे, बल्कि बदलाव और विरोध के अहम वाहक भी थे। कई डॉक्टरों ने अपने चिकित्सा ज्ञान का इस्तेमाल किया और घायल प्रदर्शनकारियों का इलाज करने, चोरी छिपे क्रांतिकारियों की मदद करने और गांवों में फ्री में इलाज किया। उन्होंने अपनी पूरी सेवाएं पूरी तरह से राष्ट्रीय आंदोलन को समर्पित कर दीं। आइए उन महान डॉक्टरों के बारे में जानते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया।
डॉ. बिधान चंद्र रॉय
भारत के फेमस डॉक्टर और पश्चिम बंगाल यानी कि वेस्ट बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय महात्मा गांधी के बहुत करीबी थे। इन्होंने खुद गांधीजी का भी इलाज किया था। डॉक्टर ने बंगाल के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें अंग्रेजाें ने जेल में डाल दिया था। बाद में डॉक्टर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल
मालाबार में जन्मीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलने के बाद इनकी जिंदगी बदल गई। नेताजी ने उन्हें आजाद हिंद फौज के महिला विंग की जिम्मेदारी दे दी। तभी उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ बर्मा में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला। आजादी के बाद वो कानपुर आ गईं और गाइनोकॉलजिस्ट बन गईं।
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डॉ. भोगराजु पट्टाभि सीतरमैया
मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश में सफल मेडिकल प्रेक्टिस शुरू की, लेकिन देश की सेवा के लिए उसे छोड़ दिया। वो आंध्र कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने और बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में भी काम किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में इन्होंनं हिस्सा लयिा जिस कारण इन्हें तीन साल की जेल हुई।
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डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी
मद्रास मेडिकल कॉलेज की मेधावी छात्रा डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने हेल्थ करियर को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। आजादी के बाद उन्होंने अडयार कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो आज देश के फेमस कैंसर अस्पतालों में गिना जाता है।
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डॉ. जादुगोपाल मुखर्जी
क्रांतिकारी बाघा जतिन के साथी और बंगाल के जुगांतर आंदोलन के नेता डॉ. जादुगोपाल मुखर्जी ने 1908 में मेडिकल पढ़ाई शुरू की, लेकिन आंदोलन में जुड़ने के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। बाद में 1922 में मेडिकल परीक्षा पास कर उन्होंने टीबी के मरीजों का इलाज किया और पॉलिटिक्स से भी जुड़े रहे।
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डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक हैं डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी। इन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की और बाद में इंग्लैंड में एमडी और एमएस की डिग्री हासिल की और लंदन में यूरोलॉजिस्ट बन गए। उन्होंने अपनी किताब Regeneration of Man से चिकित्सा क्षेत्र में योगदान दिया और स्वतंत्रता संग्राम में भी जुडे रहे।
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