15 अगस्त को आजाद हुए भारत का हिस्सा नहीं थे ये 5 शहर, कुछ का तो पाकिस्तान में मिलने का था प्लान
15 अगस्त 1947 का दिन हर एक भारतीय के लिए बेहद खास है। इस दिन आजाद भारत (India Partition Facts) का जन्म हुआ था। हालांकि कम लोग भी यह जानते हैं कि इस दिन पूरे भारत को आजादी नहीं मिली थी। कुछ ऐसे शहर भी थे जो इस दिन भी आजाद नहीं हो पाए थे। आइए जानते हैं इन शहरों और इनके आजाद न होने की कहानी के बारे में।
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। पूरा देश आज आजादी का जश्न मना रहा है। 15 अगस्त (Independence Day 2025) की तारीख भारतीय इतिहास में बेहद खास जगह रखनी है। यह वह दिन है, जब सालों से गुलामी की बेड़ियो में बंधे भारत ने आजादी की सुबह देखी थी। इस दिन एक नए भारत का जन्म हुआ था और इसी के साथ हर एक भारतीय ने आजादी की हवा में सांस ली थी।
इसी ऐतिहासिक दिन का जश्न मनाने के लिए हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। यह दिन कई महीनो में बेहद खास है। खासकर एक भारतीय होने के नाते यह हमारे लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि यह दिन आजादी की लड़ाई में अपनी जान गंवाने वाले भारत माता के वीर सपूतों के प्रति आभार और उन्हें याद करने का मौका देता है।
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भारत के संघर्ष की लंबी है कहानी
भारत की आजादी और इसके संघर्ष के बारे में हम सभी ने बचपन से ही पढ़ा-सुना और देखा होगा। हम सभी यह जानते हैं कि 15 अगस्त के दिन भारत आजाद हुआ था, लेकिन क्या आपको यह पता है कि कुछ ऐसे शहर भी हैं, जो इस दिन आजाद नहीं हो पाए थे। दरअसल, यह वह शहर है, जिन्होंने आजाद भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था, लेकिन आज के दौर में यह भारत का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। आइए आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपको बताते हैं इन्हीं शहरों के बारे में-
भोपाल
मध्य प्रदेश का शहर भोपाल वर्तमान में राज्य की राजधानी है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब यह रियासत भारत से अलग स्वतंत्र रहना चाहती थी। यहां के मुस्लिम शासक नवाब हमीदुल्लाह खान बहुसंख्यक हिंदू आबादी पर शासन कर रहे थे, जो कांग्रेस शासन के कट्टर विरोधी थे और इसलिए उन्होंने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था। हालांकि, जुलाई 1947 में जब उन्हें यह पता चला कि बड़ी संख्या में रियासतें भारत में शामिल हो रही है, तो उन्होंने भी ऐसा ही करने का फैसला कर लिया।
हैदराबाद
अपने खान-पान खासकर बिरयानी के लिए मशहूर हैदराबाद भी एक समय भारत से अलग अपनी स्वतंत्र रियासत चाहता था। यह उस दौर की रियासतों के सभी मामलों के सबसे जरूरी और कठिन चुनौती में से एक था। दक्कन के पठार में मौजूद यह राज्य भारत के मध्य भाग के एक बड़े हिस्से को कवर करता था। भारत की स्वतंत्रता के समय निजाम मीर उस्मान अली हिंदू आबादी पर शासन कर रहे थे। जब अंग्रेजों ने भारत से जाने का फैसला किया, तो उन्होंने एक स्वतंत्र राज्य की अपनी मांग को लेकर आवाज उठाई। समय के साथ हैदराबाद को लेकर टकराव बढ़ता गया और निजाम को भी जिन्ना का समर्थन मिला, जिससे हालात और मुश्किल हो गए।
आखिरकार जून 1948 में लॉर्ड माउंटबेटन (Viceroy Mountbatten decision changes) के स्थिति के बाद कांग्रेस सरकार ने निर्णायक कदम उठाते हुए 13 सितंबर को भारतीय सैनिकों को राज्य भेजा, जिसे ऑपरेशन पोलो कहा गया। इस ऑपरेशन के तहत चार दिनों तक चली मुठभेड़ में भारतीय सैनिकों ने राज्य पर अपना पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया और बाद में निजाम को हैदराबाद राज्य का राज्यपाल बनाया गया।
त्रावणकोर
यह दक्षिण भारतीय समुद्री राज्य उन पहली रियासतों में से एक थी, जिसने भारत में मिलने से इनकार कर दिया था। त्रावणकोर के दीवान और पेशे से एक प्रतिष्ठित वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने 1946 तक त्रावणकोर को एक स्वतंत्र राज्य बनाने की अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब के मुताबिक त्रावणकोर की स्वतंत्रता की यह इच्छा असल में मोहम्मद अली जिन्ना से प्रेरित थी। हालांकि, 1947 में रामास्वामी की हत्या के प्रयास के तुरंत बाद उन्होंने अपना विचार बदलकर 30 जुलाई, 1947 में त्रावणकोर को भारत में शामिल कर लिया।
जोधपुर
जोधपुर जो आज अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, एक समय भारत में शामिल नहीं होना चाहता था। दरअसल, यहां राजपूत रियासत, हिंदू राजा और बड़ी संख्या में हिंदू आबादी होने के बाद भी इसका झुकाव पाकिस्तान की तरफ था। यहां के राजकुमार महाराज हनुमत सिंह को ऐसा लगता था कि पाकिस्तान में शामिल होना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
इसके अलावा जिन्ना ने भी उन्हें सैन्य और कृषि सहायता का लालच दिया था, लेकिन बाद में वल्लभभाई पटेल ने राजकुमार को अपने पक्ष में कर लिया था। इसका जिक्र इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी (India After Gandhi) में भी मिलता है, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे राजकुमार ने नाटकीय ढंग से भारत में शामिल होने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे।
जूनागढ़
इन रियासतों के अलावा एक और ऐसा राज्य था, जो 15 अगस्त, 1947 तक भारत में शामिल नहीं हुआ था। हम बात कर रहे हैं जूनागढ़ की, जो काठियावाड़ रियासतों के समूह में सबसे अहम था। यहां भी नवाब मोहम्मद मोहम्मद खान तृतीय एक बड़ी हिंदू आबादी पर शासन करते थे। हालांकि, 25 जुलाई 1947 को जब लॉर्ड माउंटबेटन ने राजकुमारों से बातचीत की, तो जूनागढ़ ने भारत में शामिल न होने को लेकर अपना पक्ष बिल्कुल साफ कर दिया था। इतना ही नहीं यहां के नवाब पर पाकिस्तान में शामिल होने का दवाब भी डाला गया।
जूनागढ़ में अशांत होते माहौल के कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरीके से चरमरा गई थी, जिसकी वजह से यहां के नवाब कराची भाग गए। इसी बीच सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी सेना वहां भेज कर तीन रियासतों पर कब्जा कर लिया। धन और सेना की भारी कमी के चलते दीवान को भारत सरकार में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा और अंततः 20 फरवरी, 1948 में हुए जनमत के बाद 91% मतदाताओं ने भारत में शामिल होने का फैसला किया।
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Source:
India Since Independence: https://www.google.co.in/books/edition/India_Since_Independence/Ipwpbhd6sQUC?hl=en&gbpv=1&dq=Five+princely+states+that+refused+to+join+India+after+Independence&pg=PA1861&printsec=frontcover
India After Gandhi: https://www.google.co.in/books/edition/India_After_Gandhi/1qynEAAAQBAJ?hl=en&gbpv=1&dq=Five+princely+states+that+refused+to+join+India+after+Independence&pg=PR4-IA11&printsec=frontcover
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