बायोमार्कर्स से लगेगा क्रॉनिक किडनी डिजीज का अनुमान, पढ़ें क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
हाल ही में रिसर्च में कुछ ऐसे बायोमार्कर्स को खोजा गया है जो क्रॉनिक किडनी डिजीज (Chronic Kidney Disease) का अनुमान लगाने में काफी मददगार साबित हो सकते हैं। इन बायोमार्कर्स की मदद से किडनी डिजीज के कारणों का भी पता लगाने में मदद मिल सकती है। आइए जानें क्या है ये रिसर्च।

आइएएनएस,नई दिल्ली। एक अध्ययन के अनुसार, एक ब्लड या यूरिन टेस्ट अब क्रानिक किडनी रोग (Chronic Kidney Disease) के बढ़ने की संभावना का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। इस अध्ययन में इस रोग के प्रमुख जैविक संकेतों की पहचान की गई है।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय की टीम ने दिखाया है कि ब्लड और यूरिन में किडनी क्षति का एक विशेष संकेतक किडनी इंजरी मालिक्यूल - 1 (केआइएम - 1) का उच्च स्तर की मृत्यु दर और किडनी के फेल होने के उच्च जोखिम से जुड़ा है।
पिछले महीने टीम ने ब्लड और यूरिन में 21 मार्करों का मापा, जो किडनी रोग, सूजन और हृदय रोग को प्रेरित करने वाली प्रमुख प्रक्रियाओं को दर्शाते हैं। सामान्य किडनी क्लीनिकों में इस्तेमाल किए जाने वाले सामान्य परीक्षणों के विपरीत, ये मार्कर क्रानिक किडनी रोग (सीकेडी) के मूल में मौजूद जैविक परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हैं, जो वास्तव में रोग को प्रेरित करते हैं।
यह खोज रोग की जड़ों पर लक्षित करने के लिए डिजाइन किए गए नए उपचारों के द्वार खोलती है, जो रोग को उसकी जड़ों पर लक्षित करने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
ये मॉडल जैविक परिवर्तनों से जुड़े
विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखक डा. थामस मैकडोनेल ने कहा, लोगों के बीच क्रानिक किडनी रोग की प्रगति परिवर्तनशील है, इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन है कि कौन से रोगियों में किडनी के फेल होने या इससे भी बदतर स्थिति होगी, लेकिन हमारा काम ब्लड या यूरिन टेस्ट के विकास की संभावना को बढ़ाता है, जो खतरे के स्तर की बेहतर भविष्यवाणी कर सकते हैं, यह डाक्टरों व मरीजों के लिए अमूल्य जानकारी है। हम मानते हैं कि ये माडल जो क्रानिक किडनी रोग में हो रहे अंतर्निहित जैविक परिवर्तनों के साथ अधिक निकटता से जुड़े हैं।
क्रॉनिक किडनी डिजीज के लक्षण
क्रॉनिक किडनी डिजीज, एक धीमी गति से बढ़ने वाली बीमारी है, जिसमें किडनी धीरे-धीरे अपना काम करना बंद कर देती हैं। शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण साफ नहीं होते, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, नीचे बताए गए संकेत दिखाई दे सकते हैं-
- थकान और कमजोरी- किडनी के कामकाज में गड़बड़ी होने पर शरीर में टॉक्सिन्स जमा होने लगते हैं, जिससे थकान और एनर्जी की कमी महसूस होती है।
- पेशाब में बदलाव- रात में बार-बार पेशाब आना, पेशाब का रंग गहरा या झागदार होना और पेशाब की मात्रा कम होना जैसे संकेत दिखाई देते हैं।
- सूजन- किडनी शरीर से एक्स्ट्रा फ्लूएड को बाहर नहीं निकाल पाती, जिससे पैरों, टखनों और चेहरे पर सूजन आ जाती है।
- सांस लेने में तकलीफ- फेफड़ों में तरल जमा होने से सांस फूलने की समस्या हो सकती है।
- मतली और भूख न लगना- टॉक्सिन्स के जमा होने से पेट में परेशानी, उल्टी और वजन कम हो सकता है।
- त्वचा में खुजली और रूखापन- किडनी फेलियर की स्थिति में खून में फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे त्वचा में खुजली होती है।
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