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    क्यों कई लोगों में स्थायी हो सकती है गंध न पहचानने की समस्या? रिसर्च में पता चला कोरोना का गंभीर असर

    Updated: Thu, 23 Oct 2025 10:56 AM (IST)

    कोविड-19 के बारे में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है। दरअसल, अमेरिका में हुई एक रिसर्च में पता चला है कि कोविड-19 इन्फेक्शन के दो साल बाद भी कई लोगों की सूंघने की क्षमता वापस नहीं आई है और यह समस्या कुछ लोगों में स्थायी रूप से भी रह सकती है। 

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    कोरोना इन्फेक्शन के बाद जा सकती है सूंघने की क्षमता (Picture Courtesy: Freepik)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कोविड-19 इन्फेक्शन के सबसे कॉमन लक्षणों में सूंखने की क्षमता खत्म होना (Covid-19 Smell Loss) भी शामिल है। हालांकि, शुरुआत में इस एक अस्थायी समस्या माना जा रहा था, यानी इन्फेक्शन ठीक होने के बाद यह परेशानी भी दूर हो जाएगी। लेकिन समय के साथ यह साफ होता जा रहा है कि कई लोगों में यह समस्या स्थायी रूप भी ले सकती है। 

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    जी हां, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक नई रिसर्च में इस बारे में पता चला है कि सूंघने की क्षमता खोने की समस्या कई लोगों में स्थायी रूप से रह सकती है। आइए जानें इस रिसर्च में क्या पता चला है और ऐसा क्यों हो सकता है। 

    रिसर्च के चौंकाने वाले नतीजे

    डॉ. लियोरा हॉर्विट्ज की टीम ने एक अध्ययन में पाया कि कोरोना से संक्रमित होने के दो साल बाद भी, जिन लोगों की सूंघने की क्षमता प्रभावित हुई थी, उनमें से लगभग 80% लोग गंध पहचानने के टेस्ट में फेल हो गए। इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि लगभग हर चार में से एक व्यक्ति ने या तो गंध की क्षमता पूरी तरह से खो दी थी या उसमें गंभीर कमी आ गई थी। यह आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 के बाद गंध की क्षमता खोना केवल एक अस्थायी दुष्प्रभाव नहीं, बल्कि एक लॉन्ग-टर्म हेल्थ कंडीशन बन सकती है।

    Covid 19 JN1 Variant

    (Picture Courtesy: Freepik)

    गंध पहचानने की शक्ति क्यों खत्म होती है?

    इसका कारण शरीर का ओल्फैक्टरी सिस्टम है। कोरोना वायरस सीधे तौर पर इसी सिस्टम पर हमला करता है, जो हमारी स्मेल नर्व को कंट्रोल करता है। वायरस वहां सूजन पैदा कर देता है, जिससे गंध पहचानने वाले न्यूरॉन्स डैमेज हो जाते हैं। यह डैमेज इतना गंभीर हो सकता है कि व्यक्ति रोजमर्रा की सामान्य गंध को भी पहचानने में असमर्थ हो जाता है।

    इसे यूं समझिए कि व्यक्ति धुआं नहीं सूंघ पाएंगा, गैस लीक का पता लगाना मुश्किल हो सकता है और यहां तक कि सड़ा हुआ खाना भी सूंघकर नहीं पहचान पाएगा। यह रोजमर्रा की जिंदगी के लिए एक बड़ा खतरा है। यह समस्या सुरक्षा संबंधी खतरों के अलावा डिप्रेशन जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बन सकती है।

    क्या है इलाज की संभावना?

    वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान पर काम कर रहे हैं। रिसर्च से पता चलता है कि कुछ उपाय मददगार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, विटामिन-ए के सप्लीमेंट्स नर्व्स के रेजुविनेशन में मददगार हो सकते हैं। इसके अलावा, 'स्मेल ट्रेनिंग' एक असरदार तरीका माना जाता है। इसमें दिमाग को दोबारा अलग-अलग गंधों को पहचानने की प्रैक्टिस कराई जाती है, जिससे डैमेज नर्व्स के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।

    क्या नया वेरिएंट है इसके लिए जिम्मेदार?

    यह रिसर्च ऐसे समय में सामने आया है जब कोरोना के नए वेरिएंट (जैसे 'स्ट्राटस' के एक्सईजी और एक्सएफजी) दुनिया के कई हिस्सों में फैल रहे हैं। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अभी तक इन्हें ज्यादा घातक नहीं माना है, लेकिन इस रिसर्च से पता चलता है कि कोरोना का प्रभाव सिर्फ फेफड़ों या रेस्पिरेटरी सिस्टम तक सीमित नहीं है। इसके लॉन्ग-टर्म इफेक्ट व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।