नींद पूरी नहीं, तो विकास अधूरा; डॉक्टर ने बताया उम्र के हिसाब से बच्चों को कितनी देर सोना चाहिए?
बच्चों के विकास में नींद की अहम भूमिका होती है। इसलिए आपका बच्चा कितनी देर सोता है इस पर ध्यान देना जरूरी है। साथ ही, उनकी नींद की गुणवत्ता भी काफी मायने रखती है। लेकिन यह ध्यान देना जरूरी है कि बच्चे की उम्र के साथ उसकी नींद (Children Sleep Requirement) की जरूरतें भी बदलती रहती हैं। आइए डॉक्टर से जानें बच्चों को कितनी नींद की जरूरत होती है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। बच्चों के विकास में नींद अहम भूमिका निभाती है। जैसे पौधों को फलने-फूलने के लिए सही मात्रा में घूप, पानी और खाद की जरूरत पड़ती है, वैसे ही बच्चों के विकास के लिए भी सही पोषण और पूरी नींद (Kid's Sleep Requirement) काफी जरूरी हैं। पूरी नींद मिलने पर ही बच्चे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से विकसित होते हैं।
ऐसे में अक्सर मन में सवाल उठता है कि बच्चों को कितनी देर की नींद लेनी चाहिए (Kids Sleep Duration by Age) और अगर नींद पूरी न हो, तो इसका उनकी सेहत पर क्या असर हो सकता है। इन्हीं सवालों के जवाब डॉ. आस्तिक जोशी (चाइल्ड एंड एडोल्सेंट फॉरेंसिक साइकेट्री, फॉर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली) ने दिए। आइए जानें इस बारे में।
उम्र के अनुसार नींद की जरूरत
बच्चों की नींद की जरूरत उनकी उम्र के साथ बदलती रहती है। नवजात शिशु आमतौर पर दिन में 14 से 17 घंटे तक सोते हैं, जबकि टॉडलर्स (1-3 वर्ष) को 11 से 14 घंटे नींद की जरूरत होती है। स्कूल जाने वाले बच्चों (6-12 वर्ष) के लिए 9 से 12 घंटे की नींद जरूरी मानी जाती है और किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले बच्चों (13-18 वर्ष) को 8 से 10 घंटे की नींद लेनी चाहिए। यहां केवल नींद की अवधि ही नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी उतनी ही जरूरी है। बिना किसी खलल, गहरी और आरामदायक नींद ही बच्चे को अगले दिन तरोताजा और एनर्जी से भरपूर महसूस कराती है।
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नींद की कमी के शारीरिक दुष्प्रभाव
पूरी नींद न ले पाने का सीधा असर बच्चों की शारीरिक सेहत पर पड़ता है। सबसे पहले, इम्युनिटी कमजोर हो जाती है, जिससे बच्चे बार-बार सर्दी-जुकाम, इन्फेक्शन और थकान का शिकार होते हैं। नींद के दौरान शरीर विकास हार्मोन रिलीज करता है, इसलिए नींद की कमी बच्चों के लंबाई और पूरे शारीरिक विकास को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, हार्मोन इंबैलेंस की वजह से मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय तक नींद की कमी भविष्य में हाई ब्लड प्रेशर और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर जैसी समस्याओं का जोखिम बढ़ा देती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला असर
नींद की कमी का बच्चे के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इससे चिड़चिड़ापन, मनोदशा में उतार-चढ़ाव और भावनाओं को नियंत्रित करने में परेशानी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। एक थका हुआ दिमाग पढ़ाई पर फोकस करने, नई बातें सीखने और याद रखने में असमर्थ होता है, जिसका सीधा असर उनकी पढ़ाई-लिखाई पर पड़ता है। नींद पूरी न होने के कारण नींद बच्चों में एंग्जायटी और स्ट्रेस की संभावना को बढ़ा देती है, जिससे वे छोटी-छोटी समस्याओं से भी आसानी से घबरा जाते हैं।
इससे बचने के लिए क्या कर सकते हैं?
इन समस्याओं से बचाव के लिए जरूरी है कि बच्चों में नींद की अच्छी आदतें विकसित की जाएं। एक नियमित सोने का समय निर्धारित करना, सोने से एक घंटे पहले मोबाइल, टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के इस्तेमाल को बंद करना और एक शांत, अंधेरे और आरामदायक सोने का माहौल बनाना, नींद की गुणवत्ता सुधारने में मददगार साबित हो सकता है।

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