सबकुछ होते हुए भी बेचैन हैं मिलेनियल्स! डॉक्टर से जानें उनके अंदर ही अंदर घुटने की असली वजह
शहरी मिलेनियल्स तनाव और चिंता (millennial anxiety reasons) का शिकार हो रहे हैं। काम का बोझ सोशल मीडिया का दबाव पैसों की टेंशन और अकेलापन उन्हें परेशान कर रहा है। डॉक्टर ने मिलेनियल्स में बढ़ते तनाव का कारण बताया है। उन्होंने कहा कि मिलेनियल्स को अपने मेंटल हेल्थ को समझना होगा।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Millennial Anxiety Reasons: शहरों में आजकल आपको हर एक सुविधाएं मिल जाएंगी। यहां आधे से ज्यादा लोग Financially Stable होते हैं। इन्हें जो चाहिए होता है, तुरंत मिल जाता है। इसके बावजूद शहरों में रहने वाले मिलेनियल्स यानी कि वो युवा जो 1981 से 1996 के बीच जन्में हैं, अंदर ही अंदर तनाव और चिंता का शिकार होते जा रहे हैं। उन पर काम का बोझ, सोशल मीडिया का दबाव, पैसों की टेंशन और अकेलापन, ये सब मिलकर उनके दिमाग पर असर डालते हैं।
कई बार ये समझ ही नहीं पाते हैं कि उनके साथ ये क्या हो रहा है। वो अक्सर गुमसुम हो जाते हैं। फैमिली से दूर हो जाते हैं। ये कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक संकेत होता है कि अब उन्हें थोड़ा ब्रेक लेकर खुद का ख्याल रखना चाहिए। मिलेनियल्स में बढ़ती इस चिंता (why millennials feel empty) के बारे में जानने के लिए हमने डॉ. नीतू तिवारी (MBBS, MD (मानसिक रोग), सीनियर रेजिडेंट, NIIMS मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल) से बात की। उन्होंने उन कारणों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जो शहरी मिलेनियल्स में चिंता (silent anxiety signs in youth) को बढ़ा रहे हैं। आइए जानते हैं-
मोबाइल और सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल
डॉक्टर ने बताया कि मोबाइल और सोशल मीडिया ने हमारी जिंदगी को आसान तो बना दिया है, लेकिन हर समय ऑनलाइन रहने की आदत दिमाग को थका देती लगी है। इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर दूसरों की अच्छी जिंदगी देखकर लोग खुद को कम समझने लगते हैं। बार-बार आने वाले नोटिफिकेशन और कुछ छूट जाने का डर चिंता को बढ़ा देते हैं।
नौकरी और करियर का प्रेशर
आज की नौकरी आसान नहीं रही है। किसी भी कंपनी में काम करने पर आपके सामने कई चुनौतियां आ सकती हैं। ऐसे में युवा हर समय कुछ नया सीखने की कोशिश में लगे रहते हैं। काम का ज्यादा बोझ, नौकरी जाने का डर और हर समय काम में लगे रहने की आदत से मन थक जाता है। कई लोग अपने ही काम पर भरोसा नहीं कर पाते और खुद पर शक करने लगते हैं। इसे इम्पोस्टर सिंड्रोम कहा जाता है।
जिंदगी के जरूरी फैसलों में देरी
शादी, घर खरीदना या परिवार बनाना, आज के युवा ये फैसले देर से करते हैं। इसके पीछे Financial वजहें भी होती हैं। लेकिन समाज और खुद से जुड़ी उम्मीदें उन्हें अंदर से कमजोर महसूस कराती हैं।
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पैसों की चिंता और शो ऑफ
महंगाई, लोन और दिखावे की जिंदगी आज लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। ब्रांडेड चीजें खरीदना, बाहर खाना, घूमना, इन सब वजहों से सेविंग्स मुश्किल से ही हो पाता है। इससे पैसे न होने की चिंता हमेशा बनी रहती है।
दिल की बात न कह पाना
भले ही हम सोशल मीडिया पर बहुत लोगों से जुड़े हों, लेकिन असल जिंदगी में हम अकेले ही हैं। छोटी फैमिली, बिजी शेड्यूल और अच्छे दोस्तों की कमी की वजह से हम अपनी फीलिंग्स किसी से शेयर नहीं कर पाते हैं। बहुत से लोग चुपचाप परेशानी झेलते हैं, लेकिन बोलने से डरते हैं।
मेंटल हेल्थ को समझना जरूरी
डॉक्टर ने कहा कि चिंता कोई कमजोरी नहीं है। बल्कि ये एक संकेत है कि अब हमें रुककर अपना ख्याल रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेंटल हेल्थ को समझना जरूरी है। तनाव को कम करने के लिए मेडिटेशन करना, अपनों से बात करना और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।
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