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    गले की खराश या आवाज बैठना भी हो सकता है सिर और गर्दन के Cancer का संकेत, डॉक्‍टर ने बताया कारण

    Updated: Sun, 27 Jul 2025 08:56 AM (IST)

    हर साल 27 जुलाई को वर्ल्ड हेड एंड नेक कैंसर डे मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों को सिर और गर्दन के कैंसर के लक्षणों और कारणों के बारे में जागरूक करना है। डॉक्‍टरों के अनुसार शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने और जागरूकता की कमी के कारण इस कैंसर की पहचान अक्सर देर से होती है।

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    क्‍यों देर से पहचान में आते हैं इसके लक्षण (Image Credit- Freepik)

     लाइफस्‍टाइल डेस्‍क, नई द‍िल्‍ली। हर साल 27 जुलाई को वर्ल्ड हेड एंड नेक कैंसर डे (World Head And Neck Cancer Day 2025) मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को इस खतरनाक बीमारी के लक्षण, कारण और समय पर इलाज के बारे में जागरूक करना है। ये कैंसर मुंह, गले, जीभ, टॉन्सिल, वॉइस बॉक्स, नाक और Salivary Glands जैसे हिस्सों पर बुरा असर डालता है।

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    लेक‍िन आपको बता दें क‍ि इसके शुरुआती लक्षण अक्सर मामूली सर्दी, खांसी, घाव या गले में खराश जैसे लगते हैं, जिस वजह से लोग इनको नजरअंदाज कर देते हैं। जब तक सही जांच होती है, तब तक कैंसर बढ़ चुका होता है। इस खास मौके पर हमने दो डॉक्टरों डॉ. सुमंथ बोल्लू और डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा से बात की। उन्‍होंने बताया कि आखिर क्यों सिर और गर्दन के कैंसर की पहचान जल्दी नहीं हो पाती है। इसके पीछे क्‍या कारण हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से -

    लास्‍ट स्‍टेज में होती है बीमारी की पहचान

    डॉ. सुमंथ बोल्लू (कंसल्टेंट, हेड एंड नेक सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, यशोदा मेडिसिटी) ने बताया क‍ि सिर और गर्दन के कैंसर में मुंह, गला, वॉइस बॉक्स, नाक की अंदरूनी जगहें और Salivary Glands शामिल होती हैं। ये कैंसर अक्सर तब तक पहचाने नहीं जाते जब तक वे लास्‍ट स्टेज में न पहुंच जाएं। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि शुरुआती लक्षण जैसे गले में लगातार खराश, आवाज बैठना या मुंह में न भरने वाला घाव, आम बीमारियों जैसे सामान्य इन्‍फेक्शन समझकर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं।

    सामान्य लक्षणों को कर द‍िया जाता इग्‍नोर

    इसके अलावा उन्‍होंने बताया क‍ि बाकी कैंसर जैसे ब्रेस्ट या लंग कैंसर की तुलना में लोगों में सिर और गर्दन के कैंसर के बारे में जागरूकता नहीं है। Tobacco, शराब और HPV जैसी चीजों से जुड़े रिस्क फैक्टर्स के बारे में बहुत कम लोग ही जान पाते हैं। उन्‍होंने कहा क‍ि कई बार लोग इलाज इसलिए भी टाल देते हैं क्योंकि उन्हें खर्चे, आने-जाने की परेशानी या एक्‍सपर्ट डॉक्टर की कमी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। जब मरीज डॉक्टर के पास पहुंचते भी हैं, तो बीमारी बढ़ चुकी होती है।

    हर जगह नहीं होती है Biopsy

    इसके जांच के लिए स्कैन या Biopsy की जरूरत पड़ती है। ये टेस्ट हर जगह नहीं होते हैं, जिससे सही पहचान में दिक्कत आती है। कुछ मामलों में तो लोग लक्षणों से डर या शर्म की वजह से भी उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। जैसे बोलने या निगलने में तकलीफ या चेहरे में बदलाव। इससे वे डॉक्टर के पास देर से पहुंचते हैं।

    जागरुकता फैलाने की जरूरत

    डॉक्‍टर ने कहा क‍ि जरूरी है कि लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता फैलाई जाए। नियमित रूप से चेकअप और ओरल स्क्रीनिंग को बढ़ावा दिया जाए। इसके अलावा उन्‍होंने कहा क‍ि हेल्थ प्रोफेशनल्स को इसके शुरुआती लक्षणों की सही पहचान की ट्रेनिंग दी जाए।

    कम उम्र वालों में भी बढ़ रहा कैंसर

    इसके अलावा डॉ. मनदीप सिंह मल्होत्रा (डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, सीके बिड़ला हॉस्पिटल (आर), दिल्ली) ने बताया क‍ि भारत में पहले गले का कैंसर स्मोकिंग की वजह से होता है, ऐसा माना जाता था। लेकिन अब 60 साल से कम उम्र के पुरुषों (खासकर 50 की उम्र के आसपास) में, जो स्मोकिंग नहीं करते हैं, उनमें भी गले के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ये कैंसर टॉन्सिल, जीभ के पीछे के हिस्सा, गले की पिछली दीवार और वॉइस बॉक्स के ऊपर के टिशूज पर बुरा असर डाल रहे हैं।

    बदलती लाइफस्‍टाइल से बढ़ रहा कैंसर

    उन्‍होंने इसका कारण HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) के संक्रमण काे बताया है। ये बदलती लाइफस्‍टाइल से जुड़ा है। इस कैंसर की एक बड़ी समस्या ये है कि इसका पता बहुत देर से चलता है। इसके पीछे मरीज और डॉक्टर, दोनों की लापरवाही हो सकती है। कई बार लक्षणों काे सामान्‍य समझकर इग्‍नोर कर द‍िश्या जाता है। या फ‍िर एंटीबायोटिक, स्टेरॉइड देकर इलाज किया जाता है। इससे कैंसर चुपचाप बढ़ता चला जाता है।

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    इन म‍िथकों को तोड़ना जरूरी

    डेंटल डॉक्टर भी बार-बार दवा देकर इलाज करते रहते हैं और तभी बायोप्सी की सोचते हैं जब घाव ठीक नहीं होता। आपको बता दें क‍ि अगर कोई छाला, सफेद या लाल निशान दवा से ठीक नहीं हो रहा है तो तुरंत कैंसर स्‍पेशल‍िस्‍ट से जांच और बायोप्सी करवानी चाहिए। कई लोग ये भी मानते हैं कि बायोप्सी कराने से कैंसर फैल सकता है। डॉक्‍टर ने कहा क‍ि ये एक मिथक है और इसे तोड़ने की जरूरत है।

    इन्फ्रास्ट्रक्चर और सिस्टम की दिक्कतें

    आपको बता दें क‍ि गले, टॉन्सिल, वॉइस बॉक्स के कैंसर के लिए खास जांच जैसे एंडोस्कोपी या laryngoscopy की जरूरत होती है। ये सिर्फ बड़े अस्पतालों या शहरों में ही होती हैं। छोटे शहरों में इसकी सुव‍िधा नहीं है। इसके अलावा डॉक्‍टर ने बताया क‍ि बायोप्सी रिपोर्ट आने में भी देरी होती है। छोटे शहरों में सैंपल पहले लोकल लैब में जाता है, फिर किसी बड़े शहर की लैब में भेजा जाता है। इससे रिपोर्ट आने में हफ्तों लग जाते हैं।

    ये हैं नई तकनीकें

    लिक्विड बायोप्सी

    ये एक नाॅर्मल ब्लड टेस्ट होता है जिससे शुरुआती कैंसर के संकेत मिल सकते हैं। इससे डॉक्टर तय कर सकते हैं कि दवाओं से इलाज जारी रखें या और जांच की जरूरत है।

    रोबोटिक सर्जरी

    जीभ की जड़ें, टॉन्सिल और वॉइस बॉक्स जैसे मुश्किल जगहों के कैंसर अब बिना बड़ी सर्जरी के हटाए जा सकते हैं। इससे चेहरे पर निशान नहीं आते हैं और जबड़े को भी नहीं काटना पड़ता है। इस तकनीक में रियल टाइम फ्रोजन सेक्शन रिपोर्ट भी मिलती है। इसमें ऑपरेशन के दौरान ही बायोप्सी की र‍िपोर्ट 20 मिनट में मिल जाता है। इससे तुरंत इलाज शुरू हो सकता है।

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