डिप्रेशन और ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों के लिए 'देवदूत' बना यह शख्स, Dogs को बनाया थेरेपी का जरिया
क्या आप सोच सकते हैं कि एक कुत्ता किसी बच्चे को बोलना सिखा सकता है, या किसी बुजुर्ग को उनकी खोई हुई यादें लौटा सकता है? दरअसल, चीन के वू क्यूई की कहानी कुछ ऐसी ही है। कभी गेमिंग इंडस्ट्री में अच्छा-खासा पैसा कमाने वाले वू क्यूई ने सब कुछ छोड़कर, थेरेपी डॉग्स (Therapy Dogs) की अद्भुत दुनिया को अपना लिया और आज वह चीन में इस क्षेत्र के सबसे बड़े समर्थकों में से एक हैं।

थेरेपी डॉग्स को ट्रेनिंग देने के लिए छोड़ी करोड़ों की गेमिंग इंडस्ट्री (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। एक जमाना था जब वू क्यूई चीन की गेमिंग इंडस्ट्री में लाखों कमाते थे, जहां उनका दिमाग कंप्यूटर कोड्स में उलझा रहता था, लेकिन आज, उन्होंने वह सब कुछ छोड़ दिया है और खुद को एक बेहद खास मिशन के लिए समर्पित कर दिया है- जी हां, थेरेपी डॉग्स को ट्रेनिंग देना। बता दें, उनकी यह कहानी बताती है कि कैसे एक साधारण पालतू जानवर इमोशनल हेल्थ के लिए किसी दवा से भी ज्यादा असरदार हो सकता है। आइए, जानते हैं कि वू क्यूई ने यह सब कैसे कर दिखाया...

गेमिंग से जानवरों के व्यवहार तक का सफर
कंप्यूटर साइंस में पढ़ाई करने और चीन की गेमिंग इंडस्ट्री में काम करने के बाद, वू क्यूई ने एक शानदार करियर को अलविदा कह दिया। उन्होंने जानवरों के व्यवहार का गहराई से अध्ययन किया और थेरेपी एनिमल्स की सामाजिक अहमियत को लोगों तक पहुंचाने का फैसला किया। बता दें, उनका यह कदम उनके पिता को शुरुआत में पसंद नहीं आया था।
हाल ही में, उन्होंने पालतू जानवरों की वैज्ञानिक ट्रेनिंग और भावनात्मक सेहत (Emotional Well-being) में थेरेपी डॉग्स की बढ़ती भूमिका पर एक भाषण दिया, जो चीनी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। इससे एनिमल-असिस्टेड थेरेपी में लोगों की दिलचस्पी फिर से जाग उठी है।
कुत्ते ने सिखाई जीवन की सबसे पहली बात
वू क्यूई ने बताया कि बचपन में उन्हें माइल्ड ऑटिज्म (Mild Autism) था। जब वह सिर्फ नौ साल के थे, उन्हें कूड़ेदान में एक कुत्ता मिला। वह उनका पहला पालतू दोस्त बना और इसी कुत्ते ने उन्हें सिखाया कि लोगों के साथ बातचीत कैसे की जाती है।
एक बार उन्होंने एक हस्की को पाला, जिसने घर का सोफा फाड़ दिया। वू क्यूई ने उसे एक ट्रेनिंग सेंटर भेजा, लेकिन वापस आने पर कुत्ते का स्वभाव डरपोक और संवेदनशील हो गया। इस घटना ने उन्हें अंदर तक प्रेरित किया, और उन्होंने तय किया कि वह पालतू जानवरों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक तरीके से सीखेंगे।
एक हस्की और एक ऑटिस्टिक बच्चे की मुलाकात
साल 2012 में, वू क्यूई को उनके हस्की के साथ एक टीवी कार्यक्रम में बुलाया गया। शो के बाद एक मां उनसे मिलीं, जिनका बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित था। हैरान कर देने वाली बात यह थी कि उस बच्चे ने वू क्यूई से सीधे बात तो नहीं की, लेकिन वह उस तरह से वू क्यूई के कामों की नकल कर रहा था, जिस तरह वू क्यूई कुत्ते के साथ पेश आ रहे थे। मां ने बताया कि उनके बच्चे ने किसी अजनबी की नकल पहली बार की थी। इस अनुभव ने वू क्यूई को झकझोर दिया और उन्होंने चीन में वैज्ञानिक थेरेपी डॉग ट्रेनिंग और वॉलंटियर कार्यक्रम शुरू कर दिए।

थेरेपी डॉग्स का कमाल
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, वू क्यूई के शंघाई स्थित संगठन का नाम ‘पॉ फॉर हील’ (Paw for Heal) है। इस संस्था ने अब तक 5,000 से ज्यादा पालतू जानवरों को प्रशिक्षित किया है, जिनमें से 400 से अधिक ने थेरेपी डॉग के रूप में पेशेवर परीक्षा पास की है। इस परीक्षा में कुत्तों के व्यवहार के कई पहलुओं की जांच की जाती है।
यह संगठन डिप्रेशन और ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों, दोषी नाबालिगों, डिमेंशिया वाले बुज़ुर्गों, गंभीर बीमारियों के मरीजों और काम के तनाव से जूझ रहे लोगों की मदद करता है।
वू क्यूई बताते हैं कि एक बार उन्होंने देखा कि अल्जाइमर से पीड़ित एक बुजुर्ग को उन कुत्तों के नाम तो याद थे जिनसे वह बहुत पहले मिले थे, पर वह अपने खुद के बच्चों के नाम भूल चुके थे। इस तरह अब तक यह संस्था 1,50,000 से ज्यादा लोगों को अपनी सेवाएं दे चुकी है।
चुनौती बन रही चीन में थेरेपी डॉग्स की कमी
वू क्यूई का कहना है कि समाज में थेरेपी डॉग्स का विचार पहले नया था और कई लोग उनसे डरते भी थे, लेकिन अब यह विचार स्वीकार्य होता जा रहा है। अब चुनौती यह है कि चीन में थेरेपी डॉग्स की संख्या बहुत कम है, जबकि अमेरिका में यह संख्या करीब 3 लाख है।
'पॉ फॉर हील' मुफ्त सेवाएं भी देती है, लेकिन इसकी ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की फीस से जो आय होती है, उसी से मुफ्त सेवाओं को चलाया जाता है। वू क्यूई का सपना है कि चीन में भी थेरेपी डॉग्स की संख्या बढ़े, ताकि ये खुशी के दूत और भी ज्यादा लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकें।

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