Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नींव ही देगी रिश्तों को मजबूती, पैरेंटिंग कोच ने बताया हर उम्र में कैसे दें बच्चों को संस्कार

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 08:42 PM (IST)

    बचपन में जैसे संस्कार और व्यवहार रोपित किए जाते हैं, किशोरावस्था ठीक उसी का प्रतिफल देती है। कैसे माता-पिता बच्चों को दें शानदार बचपन कि टीनएज न बने बच्चों की उलझन। किन बातों और संस्कारों का रखें ध्यान कि बच्चे बनें महान, बता रही हैं साइकोलाजिस्ट व पैरेंटिंग कोच डॉ. मोना गुजराल

    Hero Image

    बच्चों को समझने के लिए पैरेंटिंग टिप्स (Picture Credit- AI Generated)

    डॉ मोना गुजराल, नई दिल्ली। माता-पिता अक्सर यह देखकर हैरान होते हैं कि किशोरावस्था में पहुंची संतान अचानक जिद्दी या विद्रोही क्यों हो रही है, जबकि यह परिवर्तन अचानक नहीं होता। किशोरावस्था में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों के साथ-साथ भावनात्मक उत्परिवर्तन भी होता है। बच्चा जैसे माहौल में पोषित होता है, बड़े होने पर होने वाले हार्मोनल बदलाव उसी माहौल के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    किशोर कभी जिद्दी, गुमसुम या विद्रोही लग सकते हैं। किशोर दुनिया के बारे में कैसा महसूस करते हैं, सोचते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं, इसकी नींव बचपन के अनुभवों व घर के माहौल से ही पड़ जाती है।

    पूरी हों भावनात्मक जरूरतें

    जीवन का पहला दशक भावनात्मक ढांचा निर्धारित करता है। इस दौरान जरूरी है कि बच्चे ऐसे माहौल में बड़े हों, जहां दिनचर्या स्थिर हो और माता-पिता एक जैसी प्रतिक्रिया दें। आपकी एकरूपता बच्चों में विश्वास विकसित करती है, जो भावनात्मक सुरक्षा देती है। यही सुरक्षा बाद में किशोर विद्रोह को कम करने का आधार बनती है।

    बच्चों को महसूस कराने की जरूरत होती है कि उन्हें देखा और सुना जा रहा है। जब माता-पिता भावनाओं को सिरे से नकारे या दबाए बिना जवाब देते हैं, तो बच्चे यह मानते हुए बड़े होते हैं कि उनकी भावनाएं वैध हैं। इस दौरान बच्चों के साथ खूब समय बिताएं, ताकि वे आपको समझ सकें। हालांकि इस उम्र में ही बच्चों पर कुछ सीमाएं लागू करें। ये कोई सजा नहीं बल्कि जीवन जीने की मर्यादा तय करने वाली हों।

    जब आए परीक्षा की घड़ी

    किशोरावस्था एक परीक्षा का समय है। यह हार्मोनल बदलाव और दुनिया के प्रति बदलते नजरिए के कारण बच्चों और माता-पिता दोनों के लिए तनावपूर्ण होती है। माता-पिता को यह जानना जरूरी है कि उनके किशोर को किस तरह की काउंसलिंग की जरूरत है। मूड स्विंग, छोटी बातों पर संवेदनशील होना, नींद और भूख में बदलाव हार्मोनल बदलाव के लक्षण हैं। जबकि परवरिश/माहौल से प्रेरित प्रतिक्रियाएं जैसे आलोचना के डर से शांत हो जाना, विरोध को न समझना, आलोचना के बाद बात करना बंद कर देना, संघर्ष के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रिया या अनादर दिखाना। ये व्यवहार अक्सर भावनात्मक रूप से कमजोर नींव को दर्शाते हैं। यदि किशोर का व्यवहार लगातार अत्यधिक प्रतिक्रियाशील या विरक्त (कटा हुआ) है, तो यह केवल हार्मोनल बदलाव नहीं, बल्कि एक लंबे समय से बढ़ती आ रही भावनात्मक खाई का संकेत है।

    बदलें सीमाओं की परिधि

    परवरिश निरंतर विकास की यात्रा है। जो तरीका टाडलर के साथ खूबसूरती से काम करता है, वह प्री-टीन के लिए घुटन भरा हो सकता है। जब माता-पिता हर विकासात्मक चरण के साथ अपनी शैली को समायोजित करते हैं, तो बच्चे विश्वसनीय महसूस करते हैं। यह भावी संघर्ष की संभावना को कम करता है, माता-पिता-बच्चे के संबंध को मजबूत करता है। पांच साल के बच्चे के लिए सीमाएं दृढ़ और स्पष्ट रखें। उन्हें छोटे वाक्यों (‘नहीं मारना’ या ‘हम बैठकर खाते हैं’) में समझाएं। छह से नौ साल के बच्चे अधिक जिज्ञासु और तर्कसंगत होते हैं। उन्हें अपना दृष्टिकोण साझा करने के लिए कहें।

    इसके साथ ही उन्हें माता-पिता के तौर पर सही फैसला लेने के बारे में विकल्प चुनने को कहें और गलत जाने पर अधिकार से उन्हें सुधारें। 10–18 वर्ष की अवस्था में नियंत्रण को सहयोग में विकसित कर लेना चाहिए। भावनात्मक रूप से जुड़े रहने के लिए किशोरों को सम्मानित महसूस करने की आवश्यकता होती है। याद रखें कि बातचीत का मतलब हार मानना नहीं है, इसका मतलब है उनके तर्क को सुनना और नियमों पर एक साथ चर्चा करना।

    हर आयु वर्ग के लिए संस्कारों का रोडमैप

    • 0–5 वर्ष: भावनात्मक साक्षरता और सुरक्षा

    बुनियादी भावनाओं (‘खुश’, ‘दुखी’, ‘गुस्सा’, ‘हताश’) की शब्दावली सिखाएं। शांत प्रतिक्रिया देने का माडल बनें। उनकी भावनाओं को वैध करें। साझा करने और बारी का इंतजार करने को प्रोत्साहित करें।

    • 6–9 वर्ष: जिम्मेदारी और सहानुभूति

    यह चरण चरित्र निर्माण के बारे में है। इस दौरान परिणामों को स्वीकार करने के बारे में सिखाएं। समस्या-समाधान को प्रोत्साहित करें। उन्हें माफी मांगने और माफ करने की सीख दें। दोस्ती और सामाजिक जागरूकता सिखाएं। उनके प्रयासों को प्रोत्साहित करें।

    • 10–12 वर्ष: लचीलापन और स्वतंत्रता

    इस चरण में पहचान निर्माण करने की क्षमता आती है। निर्णय लेने को प्रोत्साहित करें। आलोचनात्मक सोच और भावनाएं अनुभव करने, समझने व व्यक्त करने के तरीके को नियंत्रित करने की प्रक्रिया सिखाएं। उन्हें छोटे जोखिम लेने दें। आने वाले संघर्ष का समाधान करने के बारे में प्रेरित करें।

    यह भी पढ़ें- बच्चों को बनाना है क्लास में नंबर वन, तो सिखाएं उन्हें ये 5 अच्छी आदतें

    यह भी पढ़ें- बच्चों के मन में पॉजिटिविटी की भावना विकसित करेंगी सुबह की ये आदतें, सेहत के लिए भी हैं फायदेमंद