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    बच्चों की परवरिश के लिए सिर्फ नियम नहीं हैं काफी; एक्सपर्ट से जानें पेरेंटिंग का नया तरीका

    पेरेंटिंग के जो तरीके एक पीढ़ी पहले अपनाए गए वे तो बदल ही रहे हैं साथ ही हर बार पेरेंटिंग का एक नया तरीका सामने आ जाता है। आइए यूट्यूब इन्फ्लुएंसर व सर्टिफाइड पैरेंटिंग कोच रिद्धि देवराह से जानते हैं कि समय की बदलती रफ्तार के साथ पैरेंटिंग का संतुलन कैसे बनाएं।

    By aarti tiwari Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 18 Aug 2025 01:14 PM (IST)
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    पेरेंटिंग का नया मंत्र (Picture Courtesy: Freepik)

    आरती तिवारी, नई दिल्ली। आज की दुनिया में बच्चों की परवरिश करना माता-पिता के लिए चुनौती बन गया है। जिस तरह से दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहे हैं, पुराने जमाने की परवरिश के तरीके अब उतने काम नहीं आ रहे हैं। एक जमाना था जब माता-पिता की बात को बिना सवाल किए मान लिया जाता था, लेकिन आज के बच्चे हर बात पर ‘क्यों’ पूछते हैं और इसका सही उत्तर चाहते हैं।

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    बच्चे स्मार्टफोन, इंटरनेट और लगातार मिलने वाली जानकारियों के बीच बड़े हो रहे हैं। ऐसे में, चुपचाप आज्ञा मानने या डर पर आधारित अनुशासन के तरीके अब काम नहीं आते। माता-पिता समझ ही नहीं पाते कि बच्चों में आने वाली नकारात्मक आदतों का स्रोत क्या है? क्योंकि बदल चुका है बच्चों का वातावरण।

    परिवार, स्वजन, दोस्त और स्कूल से आगे बढ़कर उनके जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है स्मार्टफोन और इंटरनेट मीडिया। इस वातावरण में मिल रही शिक्षा के बीच माता-पिता भी संशय में पड़ चुके हैं कि जेन अल्फा की पेरेंटिंग में कैसे बनाया जाए संतुलन।

    जैसी संगत वैसी रंगत

    पहले बच्चे माता-पिता, परिवार और स्कूल के बीच ही पनपते थे। संस्कार और बुरी आदतों का बस इतना ही दायरा था। किसी नटखट बच्चे ने शरारत सिखाई तो तुरंत माता-पिता कहते कि ‘उस बच्चे से दूर रहना।’ मगर आज कहानी कुछ और है। आज इंटरनेट मीडिया की संगत से बच्चों के मन में हर तरह के विचार उमड़-घुमड़ रहे होते हैं। माता-पिता समझ ही नहीं पाते कि बच्चों के स्वभाव में हो रहा परिवर्तन किस ओर से आ रहा है। सुधार की पहल कहां से की जाए?

    वैश्विक बदलाव से प्रभावित बचपन

    तीन बड़े बदलावों ने माता-पिता बनने के अनुभव को बहुत प्रभावित किया है। आज बच्चे डिजिटल दुनिया में ज्यादा समय दे रहे हैं। आज के बच्चे एक सप्ताह में उतनी सामग्री देख लेते हैं, जितना पिछली पीढ़ियां एक साल में देखती थीं। उनका दिमाग ज्यादा उत्तेजित रहता है, जिससे उन्हें ध्यान केंद्रित करने और आराम करने में मुश्किल होती है। इसके अलावा समुदाय का अभाव भी इसमें अहम कारक है।

    कई माता-पिता अपने बच्चों को परिवार और दोस्तों के बिना अकेले ही पाल रहे हैं। बच्चे भी भावनात्मक रूप से अकेलापन महसूस करते हैं। पहले अगर माता-पिता व्यस्त होते थे, तो दादा-दादी या पड़ोसी बच्चों का ध्यान रख लेते थे। आज बच्चा अक्सर डिवाइस के साथ अकेला होता है। इस सब में आधुनिक जीवन की तेज रफ्तार ने और परेशानी बढ़ाई है।

    लगातार व्यस्त शेड्यूल की वजह से बच्चों को खामोशी, बोर होने या धीमी गति से बढ़ने का मौक़ा नहीं मिलता। एक बच्चा, जो पांच अलग-अलग कक्षा में जाता था, उसने कहा, ‘मुझे पता ही नहीं कि मुझे क्या पसंद है, मैं हमेशा व्यस्त रहता हूं।’ मतलब जब बच्चे को खुद के साथ समय नहीं मिलता, तो वे अपनी अंदरूनी आवाज से दूर हो जाते हैं।

    कोई नहीं होता परफेक्ट

    सबसे जरूरी सलाह- पेरेंटिंग का कोई लिखित सिद्धांत नहीं। कोई परफेक्ट नहीं होता, ऐसे में न आपको स्वयं परफेक्ट होने की जरूरत है और न ही बच्चों को परफेक्शन के पैमाने पर ढालने की जरूरत है। आपका भावनात्मक रूप से बच्चे के लिए उपलब्ध होना ही सबसे जरूरी है। अगर आप बच्चे पर बेवजह गुस्सा हो जाते हैं, तो माफी मांगते हुए कह सकते हैं, ‘मैं परेशान था मगर मुझे तुम पर चिल्लाना नहीं चाहिए था।’

    ऐसे पल शर्मिंदगी नहीं, बल्कि भरोसा पैदा करते हैं। माता-पिता और बच्चे आपस में बात करने से हिचकने लगे हैं, यह रिश्तों की कितनी बड़ी हार है। एक-दूसरे के साथ लिखकर भावनाएं व्यक्त करें, इससे आपसी विश्वास बढ़ेगा और बच्चे आपकी बात सुनना-समझना शुरू कर देंगे। बच्चों को परफेक्ट माता-पिता नहीं चाहिए, बल्कि ऐसे लोग चाहिएं जो उनके साथ रहें और उन्हें सुरक्षित महसूस कराएं।

    एक पिता काम की वजह से अपनी बेटी के एक प्रोग्राम में नहीं जा पाए, तो उन्होंने एक वीडियो रिकार्ड करके भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी पर गर्व महसूस करने की बात कही। बेटी ने वह वीडियो पांच बार देखा। रिश्ता बनाने के लिए बड़े वादों की नहीं, बल्कि ईमानदारी की जरूरत होती है!

    काम आएंगे भारतीय सिद्धांत

    आज के जमाने के बच्चों की परवरिश के लिए सिर्फ नियम नहीं, बल्कि मजबूत रिश्ते की जरूरत है। तीन वैदिक सिद्धांत इसमें मदद कर सकते हैं-

    • सहृदयता (समानुभूति)- बच्चे के मन की बात को समझना और महसूस करना।
    • स्थितप्रज्ञ (शांति)- बच्चों की भावनात्मक उथल-पुथल के दौरान शांत रहना।
    • सत्संग (जागरूक वातावरण)- घर में सुरक्षा, सच्चाई और सहयोग का माहौल बनाना।

    जानें उसके मन की बात

    • अगर कोई बच्चा स्कूल जाने से मना कर रहा है, तो हो सकता है कि वह धमकाने या डर का सामना कर रहा हो। उसे ‘नाटक मत करो’ कहने के बजाय, आप पूछ सकते हैं, ‘स्कूल में क्या परेशानी आ रही है?’
    • अगर कोई टीनएजर ग़ुस्से में दरवाजा पटककर चला जाता है, तो गुस्से से प्रतिक्रिया देने के बजाय, थोड़ी देर रुककर कहें, ‘लगता है तुम परेशान हो। जब तुम तैयार हो, तो मैं तुम्हारे साथ हूं।’
    • जो परिवार साथ बैठकर बात करते हैं, यहां तक कि सप्ताह में एक बार भी, उनमें ज्यादा गहरे भावनात्मक रिश्ते और बेहतर व्यवहार देखा जाता है।

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