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    शादी से पहले का प्यार अगर शर्मनाक है, तो वहीं शादी के बाद क्यों बन जाता है सम्मानजनक?

    क्या आपने कभी सोचा है कि शादी के पहले के प्यार को समाज गलत मानता है तो शादी के बाद वहीं प्यार सही कैसे हो जाता है? क्या सचमुच कोई बदलाव आ जाता है या यह सिर्फ समाज की दोहरी मानसिकता है। आइए इस बारे में जानने की कोशिश करते हैं।

    By Swati Sharma Edited By: Swati Sharma Updated: Mon, 11 Aug 2025 10:38 AM (IST)
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    शादी से पहले 'गलत' तो शादी के बाद 'सही' क्यों है प्यार?

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहां कई दोहरे मापदंड हैं। इन्हीं में एक है शादी से पहले का प्यार शर्मनाक, तो वहीं प्यार शादी के बाद सम्मानजनक बन जाता है। अगर कोई जोड़ा शादी से पहले हाथ पकड़ ले, तो उन्हें बेशर्मी का ठप्पा मिलता है, लेकिन शादी के बाद वही जोड़ा "परफेक्ट कपल" बन जाता है।

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    क्या वाकई शादी के बाद प्यार में इतना बदलाव आ जाता है? या फिर यह सिर्फ समाज की झूठी मान्यताओं का खेल है? आइए इस बारे में समझने की कोशिश करते हैं कि क्यों समाज शादी से पहले के प्यार को शर्मनाक और बाद के प्यार को सम्मान की निगाहों से देखता है।

    बिना इजाजत के प्यार करना गलत!

    असल में, समाज को प्यार से कोई दिक्कत नहीं है, उसे दिक्कत इस बात से है कि वह प्यार "किसकी इजाजत" से हो रहा है। शादी से पहले का प्यार इसलिए गलत माना जाता है क्योंकि उसमें माता-पिता, रिश्तेदारों और जाति-समुदाय की मंजूरी नहीं होती। लेकिन जैसे ही एक धार्मिक रस्म के मुताबिक शादी हो जाती है, वही रिश्ता स्वीकार कर लिया जाता है। यहां प्यार की गहराई नहीं, बल्कि सामाजिक अनुमति मायने रखती है।

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    इज्जत खुशी से ज्यादा अहम है!

    हमारे समाज में "लोग क्या कहेंगे?" का डर इतना गहरा है कि व्यक्ति की खुशी मायने ही नहीं रखती है। अगर कोई लड़का-लड़की अपनी मर्जी से प्यार करते हैं, तो उन्हें परिवार की इज्जत से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन अगर वही रिश्ता शादी के बाद आता है, तो वह परिवार की मर्यादा का प्रतीक बन जाता है। इससे साबित होता है कि समाज को प्यार से नहीं, बल्कि कंट्रोल से मतलब है।

    शादी ही प्यार को पवित्र बनाती है!

    क्या सच में शादी प्यार के मायने बदल देती है? जो प्यार कल तक गंदा था, वह आज पवित्र कैसे हो गया? दरअसल, शादी सिर्फ एक बंधन है, जो रिश्ते को कानूनी और धार्मिक मान्यता देता है। प्यार वही रहता है, बस समाज की नजर में उसकी मानयता बदल जाती है।

    भेदभाव इसकी बड़ी वजह है

    यह दोहरा मापदंड लड़कियों के लिए ज्यादा कठोर है। एक लड़की अगर शादी से पहले प्यार करे, तो उसे "चरित्रहीन" कहा जाता है, लेकिन लड़के के लिए वह भूल मान ली जाती है। शादी के बाद भी लड़की से उम्मीद की जाती है कि वह "सीता-सावित्री" बने, जबकि लड़के के लिए ढील होती है। यह पितृसत्ता समाज की सोच दिखाती है कि समाज लड़कियों के प्यार को संदेह की नजर से देखता है।

    माता-पिता की पसंद ज्यादा अच्छी है!

    हमारा समाज मानता है कि अगर माता-पिता ने रिश्ता तय किया है, तो वह ज्यादा बेहतर है। लेकिन अगर दो लोग खुद एक-दूसरे को चुनें, तो ऐसा नहीं माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि उम्र और तजुरबा कम होने की वजह से युवा अपने लिए सही जीवनसाथी नहीं चुन पाते। इसलिए माता-पिता की पसंद को ज्यादा सुरक्षित माना जाता है।

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