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    दक्षिण का ये 'काला ताज' क्यों है सबसे अनोखा? जानें इब्राहिम रौजा मकबरे की अनसुनी बातें

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 05:29 PM (IST)

    इब्राहिम रौजा परिसर को ’काला ताजमहल’ या ’दक्षिण का ताज’ के रूप में जाना जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में शामिल इस राष्ट्रीय महत्व के स्मारक की अ ...और पढ़ें

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    इब्राहिम रौजा: दक्षिण का अनूठा 'काला ताज', जानिए रहस्य (Picture Credit- Map Academy)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। आदिलशाही वंशावली के इब्राहिम आदिल शाह (1580-1627) सल्तनत के छठे सुल्तान थे। उनके मकबरे, जहां उनके स्वजनों के अवशेष भी हैं, को इब्राहिम रौजा नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब है इब्राहिम का बगीचानुमा मकबरा। यह आदिलशाही वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।  कर्नाटक राज्य के बीजापुर (वर्तमान विजयपुरा) में स्थित इस परिसर में विशेषकर घनी अलंकृत सतहें, बल्बनुमा गुंबद, पतली मीनारें और कोष्ठकों का व्यापक उपयोग किया गया हैं। इसका निर्माण इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय की दूसरी रानी ताज सुल्तान ने करवाया था। यह परियोजना एक प्रसिद्ध फारसी वास्तुकार मलिक संदल के दिशानिर्देशों से पूर्ण की गई व इसका निर्माण कार्य  ताज सुल्तान की मृत्यु के बाद पूर्ण हुआ ।

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    वास्तुकला की विशेषताएं

    आदिलशाहियों ने 1489 से 1686 ईस्वी तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया और वे कला एवं वास्तुकला के प्रमुख संरक्षक थे। इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय के शासनकाल में सर्वाधिक मस्जिदों का निर्माण हुआ। आदिलशाही वास्तुकला दक्कनी शैली की झलक देती है, जिसमें बड़े, पंखुड़ीदार गुंबद, लटकती छतें, प्रचुर मीनारें, सजावटी छज्जे और गारे का इस्तेमाल है तो वहीं सूक्ष्म-वास्तुकला, पुष्प पदक (फ्लोरल मेडेलियन) और स्क्रालवर्क भी देखने को मिलते हैं। यह परिसर आदिलशाही कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसका निर्माण अरबी, फारसी और हिंदू तत्वों के मिश्रण से किया गया है। 

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    चौकोर दीवार वाले परिसर में एक मकबरा और एक मस्जिद है, जो एक ऊंचे चबूतरे पर एक-दूसरे के आमने-सामने स्थित हैं। दोनों इमारतों के बीच एक आयताकार तालाब और फव्वारा है। परिसर की उत्तरी दीवार पर एक बड़ा आयताकार प्रवेश द्वार है, जिसके प्रवेश द्वार को कमल के पदकों से युक्त एक कोष्ठक युक्त कंगनी ढकती है। इसमें  मध्य में एक मेहराब और चार मीनारें हैं, जिनमें पंखुड़ीदार, गोलाकार गुंबद और ऊपर कलश हैं। द्वार के अंदर एक गलियारा है जिसके दोनों ओर चबूतरे और एक सादी, गुंबददार छत है, जिसके केंद्र में सिर्फ एक पुष्प पदक है। 

    आकर्षक है सजावटी संरचना 

    परिसर के उत्तर में एक द्वार है, जिसके प्रवेश पर दो छोटी, गुंबददार मीनारों से घिरी हुई सीढ़ी चबूतरे तक ले जाती है। दक्षिणी ओर भी ऐसी ही सीढ़ियां हैं। चबूतरे के केंद्र में एक कुंड (तालाब) है, जिसमें पूर्व और पश्चिम की ओर उतरती हुई सीढ़ियां हैं। कुंड के केंद्र में एक उठा हुआ मंच है, जहां से फव्वारा निकलता है। चबूतरा तीन ओर से बगीचे से घिरा है। चबूतरे के पूर्वी तरफ मकबरा बना है, जिसकी छत के केंद्र में द्वितलीय घनाकार संरचना के ऊपर एक बड़ा पंखुड़ीदार गुंबद है। इसकी संरचना में सजावटी धनुषाकार आले, एक कंगनी, और हर कोने पर लघु मकबरे बने हैं। मेहराबों के ऊपर एक छज्जा है, जो अलंकृत कमल कोष्ठकों की शृंखला पर टिका है। 

    मकबरे की बाहरी दीवारों पर अरबी की मध्यम उभार वाली लिखाई और पत्तों जैसी रचना की बहुत सुंदर सजावट है।  पोर्टिको आंतरिक बरामदे को घेरे हुए है। पांच नुकीले मेहराब भीतरी बरामदे की ओर जाते हैं। वर्गाकार मकबरा चारों तरफ दरवाजों से घिरा है। हर दरवाजा मेहराब से घिरा है, जिसके चारों ओर अरबी लिपि में आयताकार शिलालेख हैं। भीतर वाले बरामदों में चपटे खंभों के ऊपर बने कोनों के ब्रैकेट आपस में जुड़कर सजावटी मेहराब बनाते हैं, जिनकी किनारों पर नोकदार आकृति होती है। इन मेहराबों के ऊपर और बगल की सतहों पर भी अरबी लिपि में कैलिग्राफी है।

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    लिखाई से सजी जालियां

    प्रवेश द्वार के दोनों ओर मेहराबदार खिड़कियां हैं, जिनमें भी इसी तरह की सजावट है - बस कुछ जगहों पर लिखाई की जगह ज्यामितीय रचनाएं हैं। इन खिड़कियों के नीचे फूलों और ज्यामितीय रचना के चित्रों की एक पट्टी उकेरी गई है। हर खिड़की में तीन संकरे प्रवेश द्वार हैं, जिनके ऊपर एक बड़ी मेहराबदार जाली बनी है। यह जाली भी घनी लिखाई से सजी होती थी, लेकिन अब इनमें से अधिकतर टूट चुकी हैं। इन पर कुरान की सूराओं, अरबी और फारसी कविताओं की कुछ पंक्तियां और भवन निर्माण में शामिल लोगों के नाम और निर्माण की तारीखें भी लिखी गई हैं। यह सुंदर लिखाई नक्काश नकी अल-दीन हुसैनी द्वारा की गई थी।

    गोलाकार आकृति बनी पहचान

    इब्राहिम रौजा दो मुख्य ढांचों से मिलकर बना है: एक मकबरा और एक मस्जिद, जो एक ही चबूतरे पर स्थित हैं। मकबरे के भीतर का कमरा साधारण है, जिसमें दीवारों पर छोटे मेहराबदार गड्ढे बने हैं। इसमें बेसाल्ट पत्थर का प्रयोग हुआ है और छत पर गुंबद नहीं है, बल्कि छत को सहारा देने के लिए मोर्टार का उपयोग किया गया है। छत पर एक बड़ा मंडलाकार पैनल है जिसके केंद्र में एक फूल जैसी रचना है, जो इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय की कब्र के ठीक ऊपर है। कुल छह कब्रें हैं, जिनमें सुल्तान के अलावा ताज सुल्तान और जुहरा सुल्तान की कब्रें भी शामिल हैं। तो वहीं चबूतरे के पश्चिमी हिस्से में मस्जिद स्थित है। 

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    इसकी वास्तुकला मकबरे के ऊपरी हिस्से की विशेषताओं जैसे कार्निस, स्तंभों के शीर्ष, जालीदार किनारे और चार मीनारों से मेल खाती है। मस्जिद के केवल पश्चिमी तरफ का मुख्य हिस्सा सजा हुआ है, जिसमें पांच मेहराबें हैं (बीच वाली मेहराब एक बड़ी गोलाकार आकृति से पहचानी जाती है)। छज्जा मजबूत कोष्ठकों पर टिका है, जिसके नीचे कमल के फूल जैसी आकृतियां उकेरी गई हैं। आंतरिक भाग में ज्यादा सजावट नहीं है, यहां गुंबददार छतों वाले कई मेहराब हैं, जिन पर सुंदर पट्टीदार आकृतियां हैं। पूर्वी दीवार के बीच की मेहराब एक छोटे, 10 किनारों वाले कमरे में खुलती है, जिसमें मेहराबदार आले और ऊंची गुंबददार छत है। इब्राहिम रौजा को वर्तमान में भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा अनुरक्षित किया जाता है और यह एक प्रमुख पर्यटक स्थल है।

    (एमएपी अकादमी से साभार)

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