कभी सोचा है... जाते समय लंबी, मगर वापस आते वक्त छोटी क्यों लगती है रोड ट्रिप?
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है... कि आप बड़े उत्साह के साथ एक रोड ट्रिप पर निकलते हैं और रास्ता बहुत लंबा और थकाऊ लगता है, लेकिन जब आप वापस घर लौटते हैं, तो वही रास्ता अचानक छोटा और तेज लगने लगता है। कभी सोचा है कि दूरी वही है, असल में समय भी लगभग उतना ही लगा, तो फिर यह फीलिंग क्यों? बता दें, मनोवैज्ञानिक इसे Return Trip Effect कहते हैं।

क्यों वापसी के समय छोटी लगती है ट्रिप? (Image Source: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कभी-कभी लगता है, जैसे सड़कों के साथ कोई मजाकिया खेल हो रहा है। जब हम पूरी एक्साइटमेंट के साथ अपनी रोड ट्रिप पर निकलते हैं, तो हर किलोमीटर एक सदी जैसा लगता है। ऐसा लगता है, जैसे मंजिल जानबूझकर हमसे दूर भाग रही है।
लेकिन... जैसे ही हम अपना बैग पैक करके घर की ओर वापस मुड़ते हैं, तो वही रास्ता, वही दूरी अचानक आधी क्यों हो जाती है? क्या हमने गलती से कोई 'फास्टर लेन' पकड़ ली?
जी नहीं, यह सड़कों का नहीं, बल्कि आपके दिमाग का कमाल है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में 'रिटर्न ट्रिप इफेक्ट' कहते हैं। आइए, जानते हैं कि हमारा दिमाग रास्ते की लंबाई को कैसे घटा-बढ़ा देता है।

नई चीजें देखना
जब आप पहली बार किसी रास्ते पर जाते हैं, तो आपका दिमाग हर चीज को नोटिस करता है। दिमाग को इस ढेर सारी नई जानकारी को प्रोसेस करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इस बढ़ी हुई मेंटल एक्टिविटी के कारण, हमें लगता है कि समय धीरे बीत रहा है और ट्रिप लंबी है।
उम्मीदों का टूटना
हम अक्सर ट्रिप के समय को कम आंकते हैं। जब हम यात्रा शुरू करते हैं, हमारी एक अवचेतन उम्मीद होती है कि यह जल्दी खत्म हो जाएगी, लेकिन जब रास्ते में ट्रैफिक या कोई और रुकावट आती है, तो हमारी यह उम्मीद टूट जाती है। यह 'उम्मीद का टूटना' हमें निराश करता है और हमें लगता है कि यात्रा हमारी सोच से ज्यादा लंबी हो गई है।
परिचित नजारा और सुकून
वापसी के रास्ते पर, आपका दिमाग आराम की मुद्रा में आ जाता है। आप पहले ही इस रास्ते से गुजर चुके हैं, इसलिए नजारे अब अपरिचित नहीं हैं। आप जानते हैं कि अगला मोड़ कहां आएगा, कौन-सी जगह पर ट्रैफिक कम होगा। इस परिचित और आरामदायक स्थिति में, दिमाग को कम काम करना पड़ता है। कम तनाव और घर पहुंचने की खुशी के कारण, समय उड़ता हुआ महसूस होता है, और रास्ता छोटा लगने लगता है।
हमारा ध्यान कहां है
जब हम जा रहे होते हैं, तो हमारा सारा ध्यान डेस्टिनेशन पर होता है। यह बेताबी हमारे ध्यान को रास्ते से हटाकर, बार-बार घड़ी देखने पर मजबूर करती है। जब हम किसी चीज का इंतजार करते हैं, तो समय अपने आप धीमा महसूस होने लगता है।
इसके उलट, जब हम वापस आ रहे होते हैं, तो घर तो हमारा जाना-पहचाना होता है। अब हम अक्सर ट्रिप की पुरानी यादों में खोए रहते हैं, जैसे कि हमने क्या मजे किए, क्या खाया या क्या देखा। जब दिमाग यादों में व्यस्त होता है, तो वह रास्ते की लंबाई को नजरअंदाज कर देता है और यात्रा तेजी से कट जाती है।
ब्रेक की संख्या
जाने के समय, हम अक्सर ज्यादा ब्रेक लेते हैं। नई जगहें देखने के लिए रुकना, खाने के लिए एक नई जगह ढूंढना, या बस रास्ते की थकान मिटाना। हर ब्रेक यात्रा में एक मानसिक 'कट' लगाता है। ये 'कट' हमें महसूस कराते हैं कि यात्रा कई हिस्सों में बंटी हुई है और इसलिए यह बहुत लंबी खिंच गई है।
लेकिन वापसी की यात्रा में, हमारा मुख्य लक्ष्य जल्दी घर पहुंचना होता है। हम ब्रेक कम लेते हैं और ज्यादातर सीधे गाड़ी चलाते हैं। जब यात्रा बिना ज्यादा रुकावट के चलती है, तो हमारा दिमाग इसे एक निरंतर प्रवाह के रूप में देखता है, जिससे यात्रा असल में कम समय लेने लगती है (क्योंकि ब्रेक का समय बच जाता है) और तेज महसूस होती है।

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