पर्यटन और अध्यात्म का अनूठा संगम है 'नागतीर्थ शिखरधाम', पढ़ें क्या है 800 साल प्राचीन मंदिर की कहानी
बड़वानी जिले में सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित नागलवाड़ी शिखरधाम पर्यटन और अध्यात्म का संगम है। 800 साल पुराने इस नागतीर्थ में भगवान भिलटदेव का मंदिर है जहाँ नागपंचमी पर विशाल मेला लगता है। यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर झरने हर्बल पार्क और ट्रेकिंग स्पॉट हैं। जल्द ही यहां रोप-वे की सुविधा शुरू होगी जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

युवराज गुप्ता, बड़वानी। सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में नैसर्गिक सुंरदता के बीच बसा नागतीर्थ नागलवाड़ी शिखरधाम पर्यटन व अध्यात्म का अनूठा संगम है।
निमाड़-मालवा में ऊंची पहाड़ी पर बसा यह प्राचीन धाम प्रदेश के बड़वानी जिले में एकमात्र ऐसा नागतीर्थ है जहां प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं। हरित पहाड़ियों से आच्छादित इस जगह पर लोग देव दर्शन के साथ ही परिवार सहित प्राकृतिक वातावरण को निहारने आते हैं।
दूरदराज क्षेत्रों से यहां पर्यटक आकर नैसर्गिक सुंदरता के बीच सुकून पाते हैं। यहां देखने के लिए आसपास झरने, हर्बल पार्क, ट्रेकिंग स्पाट एवं अन्य कई रमणीय स्थल हैं। यहां आसपास करीब 100 किमी के दायरे में अन्य दर्शनीय स्थल भी मौजूद है।
शिखरधाम पर नागपंचमी पर विशेष मेला लगता है जिसमें देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। मेले में दर्शन पूजन करते हैं। उक्त शिखरधाम में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की घोषणानुसार भिलटदेव महालोक का कार्य जारी है। उज्जैन के महाकाल महालोक की तर्ज पर यह बनेगा। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
800 साल प्राचीन नागतीर्थ शिखरधाम मंदिर से जुड़ी लाखों भक्तों की आस्था
प्रसिद्ध नागतीर्थ शिखरधाम भिलटदेव मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। सतपुड़ा की ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर करीब 800 वर्ष पुराना है। नागलवाड़ी शिखरधाम भिलटदेव मंदिर समिति के अध्यक्ष दिनेश यादव के अनुसार यह मंदिर 800 वर्ष प्राचीन है। कहा जाता है कि विक्रम संवत 2012 में भिलटदेव का प्राकट्य मप्र के हरदा जिले के ग्राम रोल गांव में हुआ था।
सतपुड़ा पर्वत की चोटी पर करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर विराजमान है भिलटदेव सरकार का यह धाम। नागलवाड़ी शिखरधाम भगवान की तपस्या स्थली है। मंदिर का जीर्णोद्वार राजस्थानी बंशी पहाड़पुर गुलाबी रंग के पत्थरों से वर्ष 2015 में हुआ था।
निमाड़ के प्रसिद्ध संत ब्रह्मलीन श्री सियाराम बाबाजी ने मुआवजे में प्राप्त दो करोड़ 33 लाख रुपये की राशि यहां समर्पित कर शिखरधाम पर चार भव्य छावदार शेड व स्टील की रैलिंग लगवाईं। भव्य भक्त निवास भवन का निर्माण तथा तीन किमी के पहाड़ी रास्ते पर पांच छायादार शेडों का निर्माण कराया।
नागपंचमी पर भव्य मेले में देशभर से आते हैं श्रद्धालु
विविध किवदंतियों के साथ प्रसिद्ध इस चमत्कारी मंदिर में नागपंचमी पर विशेष मेला लगता है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन - पूजन करते हैं। मेले में विविध तैयारियां की जाती है। भिलटदेव का विशेष पूजन व श्रृंगार होता है।
वादियों को निहारते हैं पर्यटक, पाते हैं सुकून
शिखरधाम की पहाड़ी से सतपुड़ा का प्राकृतिक नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। वर्षाकाल में यहां परिवार सहित आने वाले पर्यटक हरियाली से आच्छादित सुंदर पहाड़ियों व झरनों को निहारते हैं। प्रकृति के हरित वातावरण में परिवार के साथ धार्मिक यात्रा कर सुकून पाते हैं।
जल्द शुरू होगी रोप वे की सुविधा, आस्था के केंद्र पर बढ़ेगा पर्यटन
यहां श्रद्धालुओं को जल्द ही रोप वे की सुविधा मिलेगी। इससे भक्तगण दर्शन के साथ प्राकृतिक दृश्यों का भी आनंद ले सकेंगे। निजी कंपनी यहां रोप वे लगाने का काम शुरू करने वाली है। यहां निमाड़ का पहला रोप वे होगा। शिखरधाम नागलवाड़ी में रोप वे शुरू होने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा व रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
ऐसे पहुंच सकते हैं यहां
नागलवाड़ी नागतीर्थ शिखरधाम पहुंचने के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध है। यहां से 150 किमी दूर इंदौर में रेलवे स्टेशन एवं एयरपोर्ट है। देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोग यहां रेलवे व हवाई जहाज से इंदौर तक पहुंचकर यहां से बस या निजी वाहन से शिखरधाम पहुंच सकते हैं।
आगरा- मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग एवं खंडवा - बड़ौदा राजमार्ग से यहां पर पहुंचा जा सकता है। यहां आसपास क्षेत्र में रुकने व भोजन के लिए कई होटलें मौजूद हैं।
आसपास ये दर्शनीय स्थल भी हैं मौजूद
नागलवाड़ी शिखरधाम से करीब 100 किमी की परिधि में कई दर्शनीय व पर्यटन स्थल मौजूद हैं। इनमें विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र बावनगजा बड़वानी के नजदीक है। वहीं मप्र-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित तोरणमाल पर्यटन क्षेत्र एवं बिजासन देवी धाम के भी दर्शन किए जा सकते हैं।
इसके अलावा खरगोन जिले के सिरवेल महादेव, बीजागढ़ महादेव, ऊन का प्राचीन श्री महालक्ष्मी मंदिर, पर्यटन नगरी महेश्वर के दर्शन किए जा सकते हैं।
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