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    जबलपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा में पूछा, कहां है रानी दुर्गावती का मकबरा; मचा बवाल

    Updated: Tue, 06 May 2025 07:45 AM (IST)

    जबलपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा में रानी दुर्गावती के मकबरे का जिक्र करने के बाद विवाद खड़ा हो गया है। इतिहासकारों और छात्र संगठनों ने प्रश्न पर आपत्ति जताई है क्योंकि रानी की समाधि है मकबरा नहीं। विश्वविद्यालय ने जांच के आदेश दिए हैं और पेपर बनाने वाले से स्पष्टीकरण मांगा है। सामाजिक संगठनों ने इसे सांस्कृतिक विरासत का अपमान बताया है।

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    जबलपुर विश्वविद्यालय की परीक्षा में रानी दुर्गावती को लेकर विवादित प्रश्न, बवाल।

    जेएनएन, जबलपुर। रानी दुर्गावती के नाम से ही जबलपुर में स्थापित विश्वविद्यालय की परीक्षा में ऐसा आपत्तिजनक प्रश्न पूछा गया कि बवाल खड़ा हो गया है। तीन मई को हुई बीएससी द्वितीय वर्ष के फाउंडेशन कोर्स के महिला सशक्तीकरण के पेपर में पूछा गया कि रानी दुर्गावती का मकबरा कहां बना है?

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    प्रश्न में समाधि की जगह मकबरा पूछे जाने से विद्यार्थी तो परेशान हुए ही, जब यह जानकारी छात्र संगठनों को हुई तो उन्होंने सोमवार को विश्वविद्यालय में हंगामा किया।

    इतिहास को बताया गया अपमानित करने वाला प्रश्न

    कई सामाजिक संगठनों और इतिहासविदों ने भी प्रश्न पर आपत्ति दर्ज कराई है। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले की जांच कराने के साथ पेपर बनाने वाले से लेकर विषय के अध्ययन मंडल और परीक्षा विभाग तक से जवाब मांगने की बात कही है। इतिहासविदों का कहना है कि वीरता और बलिदान की प्रतीक रानी दुर्गावती को मकबरे से जोड़ना गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और उनके बलिदान का अपमान है।

    परीक्षा नियंत्रक ने माना प्रश्न गलत

    वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों का कहना है कि इसके पीछे किसी की खुराफात या साजिश हो सकती है। परीक्षा नियंत्रक डा. रश्मि मिश्रा ने कहा कि यह प्रश्न गलत है। मकबरा शब्द का उपयोग नहीं होना चाहिए। अब देखा जाएगा कि पेपर किसने बनाया और किसने की जांच की है। इस मामले में संबंधित को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण लेंगे। जिम्मेदार पर कार्रवाई की जाएगी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1550 से 1564 तक गढ़ा की शासक रही रानी दुर्गावती को मुगल साम्राज्य के खिलाफ राज्य की रक्षा के लिए याद किया जाता है।

    बलिदान की धरती पर बना है स्मारक, नहीं है कोई मकबरा

    उन्होंने मुगल बादशाह अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इन्कार कर दिया और 24 जून 1564 को मुगलों से लड़ते हुए खुद ही तलवार सीने में घुसा ली और बलिदान हो गईं। जबलपुर में बरेला के निकट जबलपुर-मंडला मार्ग पर उनका स्मारक (समाधि) नरिया नाला में ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां वह बलिदान हुई थीं। 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया था।

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