जैसलमेर में खुला 20 करोड़ साल पुराना राज, मिला डायनासोर का दुर्लभ जीवाश्म; दुनिया की टिकी निगाहें
इससे पता चलता है कि यह मध्यम आकार का फाइटोसॉरस था। इसके पास मिला एक अंडा इस जीव की प्रजनन प्रक्रिया को समझने में मदद करेगा। बता दें फाइटोसॉरस प्राचीन काल के ऐसे जीव थे जो नदी और जंगलों के पास रहते थे और मुख्य रूप से मछलियां खाते थे।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संकाय के डीन फ्रोफेसर वी.एस. परिहार की टीम ने जैसलमेर जिले के मेघा गांव में एक अनोखा जीवाश्म खोजा है। यह 20 करोड़ साल पुराना फाइटोसॉरस (Phytosaur) है, जो आकार और बनावट में मगरमच्छ जैसा दिखता है।
भारत में यह पहली बार और दुनिया में सिर्फ दूसरी बार ऐसा जिवाश्म मिला है। यह खोज 21 अगस्त को हुई और वैज्ञानिक इसका ध्यान से अध्ययन कर रहे हैं। मिले हुए जिवाश्म का कंकाल 1.5 से 2 मीटर लंबा है।
पास में मिला एक अंडा
इससे पता चलता है कि यह मध्यम आकार का फाइटोसॉरस था। इसके पास मिला एक अंडा इस जीव की प्रजनन प्रक्रिया को समझने में मदद करेगा। बता दें, फाइटोसॉरस प्राचीन काल के ऐसे जीव थे जो नदी और जंगलों के पास रहते थे और मुख्य रूप से मछलियां खाते थे।
#WATCH | Jaisalmer, Rajasthan: Senior geologist Dr. Narayan Das says, "After observation, it was found that it's a creature from the Jurassic era, and it's a fossil... To discover such a creature is a proud moment not only for Jaisalmer but for the whole nation. Such fossils… https://t.co/2ZPWdyIRWA pic.twitter.com/hAsHVNIne2
— ANI (@ANI) August 25, 2025
वैज्ञानिक मानते हैं कि यह जीव पर्मियन-ट्राइसिक काल की बड़ी तबाही से भी बच गए थे और जुरासिक युग तक जीवित रहे। यह खोज जैसलमेर की 'लाठी फॉर्मेशन' नामक चट्टानों से हुई है जो जुरासिक काल की हैं।
20 किलोमीटर तक फैली है यह पहाड़ी
मेघा गांव की यह पहाड़ी करीब 20 किलोमीटर तक फैली हुई है और अकाल वुड फॉसिल पार्क से जुड़ी है। जिवाश्म मिलने के बाद प्रशासन ने इस क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिए चारों और तारबंदी कर दी है।
इससे पहले भी गांव के तालाब के पास जीवाश्म मिले थे, जिनसे अंदाजा लगाया जा रहा है कि वहां कोई 8 से 10 फीट लंबा उड़ने वाला शाकाहारी डायनासोर भी रहा होगा। प्रोफेसर परिहार ने इस खोज को एतिहासिक बताया है।
जैसलमेर बन सकता है खास
उनका कहना है कि यह भारत की भूवैज्ञानिक पहचान को नई ऊंचाई देगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि जैसलमेर में आने वाले समय में भारत की भूवैज्ञानिक धरोहर के रूप में और भी बड़ा स्थान हासिल करेगा।
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