औद्योगिक संस्थाओं को वापस नहीं की जाएगी सिंगूर संयंत्र की अधिग्रहित भूमि, ममता सरकार को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में टाटा नैनो परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि को उन औद्योगिक संस्थाओं को वापस न करने का फैसला सुनाया है जो अधिग्रहण से पहले वहां कार्यरत थीं। कोर्ट ने 2016 के अपने फैसले की व्याख्या करते हुए कहा कि वह निर्णय कमजोर खेतिहर मजदूरों के लिए था, जिनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के संसाधन नहीं थे, न कि उन औद्योगिक इकाइयों के लिए जिनके पास अपने अधिकारों की रक्षा के पर्याप्त साधन थे।
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ममता सरकार को कोर्ट से राहत (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल सरकार को राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को फैसला सुनाया कि ¨सगूर में टाटा मोटर्स की 'नैनो' कार परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि उन औद्योगिक संस्थाओं को वापस नहीं की जाएगी जो अधिग्रहण से पहले वहां कार्यरत थीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जोयमाल्या बागची की पीठ ने केदार नाथ यादव मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 2016 के फैसले की व्याख्या की, जिसमें टाटा मोटर्स के विनिर्माण संयंत्र की स्थापना के लिए भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को रद कर दिया गया था।
पीठ ने कहा कि 2016 का फैसला इस आधार पर आधारित था कि अधिग्रहण से उन कमजोर समुदायों पर असमान रूप से प्रभाव पड़ा जिनके पास सरकारी कार्रवाई को चुनौती देने के लिए वित्तीय संसाधन और संस्थागत पहुंच का अभाव था। इसने कहा कि इस न्यायालय ने राज्य को 12 सप्ताह के भीतर मूल भूस्वामियों/कृषकों को भूमि वापस करने का निर्देश दिया था।
पीठ ने 2016 के फैसले की व्याख्या करते हुए कहा, ''असाधारण न्यायिक हस्तक्षेप तब आवश्यक होता है जब व्यवस्थागत बाधाएं कुछ वर्गों को सामान्य नैदानिक उपायों तक पहुंचने से रोकती हैं, न कि तब जब पक्षों के पास अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त साधन हों।''
बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की उस याचिका पर यह आदेश पारित किया जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें राज्य को मेसर्स शांति सेरामिक्स प्राइवेट लिमिटेड को सभी संरचनाओं सहित 28 बीघा भूमि वापस करने का निर्देश दिया गया था।
यह कंपनी टाटा की नैनो परियोजना के लिए 2006 में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से पहले सिंगूर में सिरेमिक विद्युत इंसुलेटर के उत्पादन के लिए एक विनिर्माण इकाई का संचालन कर रही थी। पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में गरीब खेतिहर मजदूरों को समाज के सबसे कमजोर वर्गों के रूप में पहचाना था।
पीठ ने कहा, ''विरासत में मिली जमीन पर पूरी तरह से निर्भर रहने वाले किसान तब विपन्नता का सामना करते हैं जब अधिग्रहण के दौरान अनिवार्य सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर दिया जाता है - उनके पास कोई वैकल्पिक आजीविका नहीं होती, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए संसाधनों की कमी होती है या लंबी मुकदमेबाजी का खर्च वहन करने की क्षमता नहीं होती। न्यायालय द्वारा प्रदान किया गया निदान इस खामी को दूर करता है।''
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