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    मिशन काबुल, भारत विरोधी गतिविधियों में तालिबान के इस्तेमाल का पाकिस्तान दम ठोंक रहा

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 30 Aug 2021 04:02 PM (IST)

    अफगानिस्तान में उसके और खुद के हितों को सुरक्षित रखने की भारत के सामने बड़ी चुनौती है। ऐसे में अधर में लटक रहे अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए भारत द्वारा उठाए जाने वाले कदमों और उसकी विदेश नीति की हनक की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।

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    कहते हैं कि अच्छे समय में किया गया निवेश बुरे वक्त में काम आता है।

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारत किसी देश से न आंख झुकाकर बात करेगा, न आंख उठाकर बात करेगा, अब वह आंख में आंख डालकर बात करेगा। 2014 से भारतीय विदेश नीति के तेवर में आया ये आक्रामक बदलाव उसकी समदर्शी विदेश नीति को दिखाता है। गरीब, अमीर, विकसित और विकासशील देशों में कोई भेद न करने के उसके आत्मविश्वास की ये बानगी पेश करता है। प्रधानमंत्री मोदी की ताबड़तोड़ विदेश यात्राओं ने उन्हें दुनिया के लोकप्रिय शासनाध्यक्षों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर दिया। जिस देश में दशकों से कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था, उन्होंने वहां भी पहुंचकर उसकी कुशल क्षेम पूछी। कहते हैं कि अच्छे समय में किया गया निवेश बुरे वक्त में काम आता है।

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    भारत के सामने जब भी बुरा वक्त आया तो उसके परंपरागत मित्र देश तो साथ खड़े ही हुए, अप्रत्याशित रूप से अपरिचित रहे मुल्क भी मददगार बने। कोरोना महामारी इसकी महज एक नजीर ही है जब दुनिया के तमाम देशों ने मेडिकल संसाधनों से भारत को मदद पहुंचाई। यह नई विदेश नीति और कूटनीति का ही इकबाल और प्रताप है कि खाड़ी देशों से उसके संबंध इतने मजबूत हो चुके हैं जिसकी बानगी ओआइसी के सम्मेलन में देखने को मिली, जब इस संगठन के परंपरागत सदस्य पाकिस्तान के विरोध के बावजूद भारत का आमंत्रण रद नहीं किया गया। उसकी यही कमाई अफगानिस्तान समस्या के समय उसके काम आ रही है।

    अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान के शासन में आने से मची अफरा-तफरी में हर भारतीय को सुरक्षित ठिकाने तक वह इसी वजह से पहुंचा पा रहा है। अफगानिस्तान से भारत के प्राचीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंध रहे हैं। मधुर संबंधों की थाती को हम आज तक सहेजते रहे हैं तभी तो बिखर चुके अफगानिस्तान के पुननिर्माण के लिए भारत ने तिजोरी खोली। इसके सृजनात्मक कदमों की तालिबान ने भी प्रशंसा की है। हालांकि अब तस्वीर बदल चुकी है। भारत विरोधी गतिविधियों में तालिबान के इस्तेमाल का पाकिस्तान खम ठोंक रहा है।

    आपकी आवाज

    सचिन कुमार कश्यप ने बताया कि अफगानिस्तान भारत का मित्र देश है। भारत अफगानिस्तान को समय-समय पर निवेश के द्वारा वित्तीय सहायता एवं कूटनीतिक मजबूती प्रदान करता रहा है। इसकी मदद से भारत पकिस्तान पर भी वैश्विक कूटनीतिक दबाव बनाए रखने में सफल रहा है। इसलिए भारत को वर्तमान अफगान समस्या में अपनी कूटनीतिक सक्रियता को बनाए रखना चाहिए, ताकि भविष्य में अफगान क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली समस्या पर भी काबू पाया जा सके।

    गौरीशंकर अंतज ने बताया कि भारत की विदेश नीति वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर आधारित है। यह भी सत्य है कि मौजूदा समय में भारत किसी भी स्तर पर चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। अफगानिस्तान मामले में भी चीन और पाकिस्तान की चालबाजियों पर भारत आसानी से जीत हासिल कर लेगा। फिलहाल अफगानिस्तान के लोगों का सहयोग करना भारत का कर्तव्य है और भारत सरकार ने भी इसे अपनी प्राथमिकताओं में रखा है।

    विजय कुमार धानिया ने बताया कि पाकिस्तान और चीन की नीतियां हमेशा तालिबान के पक्ष में रही हैं। जिस तरह से अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, वह भारत के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि भारत सरकार सभी संभावनाओं पर विचार कर रही है और इस मामले में भी सरकार उचित कदम उठाएगी। चीन और पाकिस्तान की चालाकियां भी भारत की कूटनीतिक क्षमता को मात नहीं दे सकती हैं।