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    हवा में घुलता जहर! घटा रहा हर भारतीय के जीवन के बेशकीमती साढ़े तीन साल

    Updated: Thu, 28 Aug 2025 10:00 PM (IST)

    एक नई रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण भारत में लोगों की औसत उम्र लगभग साढ़े तीन साल कम हो रही है। पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक तत्वों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत अधिक है। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में उत्तरी मैदानी इलाका शामिल है जहां 54 करोड़ लोग रहते हैं।

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    प्रदूषण कर रहा भारतीयों की उम्र कम। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हवा में घुलते जहर का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ रहा है, बल्कि ये बेशकीमती जीवन के साल भी घटाता जा रहा है।

    एक नई रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण से औसतन हर भारतीय की उम्र लगभग साढ़े तीन साल तक कम हो रही है। इसका कारण पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे प्रदूषक तत्वों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानकों से ज्यादा होना माना जा रहा है। प्रदूषण की वजह से ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाले शहरों में रह रहे लोगों की ही उम्र नहीं घट रही, बल्कि उन लोगों के जीवन पर भी ये प्रदूषण भारी है, जो अपेक्षाकृत स्वच्छ हवा वाले शहरों में रहते हैं।

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    डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन से 8 गुना ज्यादा मात्रा

    शिकागो विश्वविद्यालय के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की 2025 की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पीएम2.5 की मात्रा 2022 की तुलना में 2023 में ज्यादा रही है। ये मात्रा डब्ल्यूएचओ की तय गाइडलाइन से आठ गुना अधिक पाई गई है।

    रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण के इस स्तर को वैश्विक मानकों पर लाकर भारतीयों की औसत उम्र को साढ़े तीन साल बढ़ाया जा सकता है। पीएम2.5 और पीएम10 का मानक स्तर डब्ल्यूएचओ ने 2021 में एयर क्वालिटी गाइडलाइन जारी की थी, जिसके तहत पीएम2.5 की औसत सीमा 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए। वहीं पीएम 10 की मात्रा 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तय की गई थी। वहीं पूरे भारत का पीएम2.5 का औसत 41 माइक्रोग्राम रहा, जो संगठन के मानक से लगभग आठ गुना ज्यादा है।

    तो बढ़ सकती है लोगों की औसतन उम्र

    रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 46 प्रतिशत आबादी ऐसे शहरों में रहती है, जहां पीएम2.5 का स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के राष्ट्रीय मानक को भी पार कर गया है। अगर इस पर काबू पाया जा सके तो लोगों की औसतन उम्र को डेढ़ साल तक बढ़ाया जा सकता है।

    इन इलाकों में है सबसे ज्यादा प्रदूषण

    देश के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में उत्तरी मैदानी इलाका शामिल है, जहां लगभग 54 करोड़ लोग रहते हैं। ये आंकड़ा देश की आबादी का लगभग 40 प्रतिशत है। पीएम2.5 को तय मानकों के अंदर लाकर इस क्षेत्र में रहनेवाले लोगों की उम्र औसतन पांच साल तक बढ़ाई जा सकती है।

    दिल्ली की हवा का हाल

    रिपोर्ट के मुताबिक अगर पूरे देश से पीएम2.5 और पीएम10 के स्तर को डब्ल्यूएचओ के तय मानकों तक लाया जा सके, तो दिल्ली जैसे शहरों में रहनेवाले लोगों की औसत उम्र में 8.2 साल की बढ़ोतरी की जा सकती है। दिल्ली की हवा में पीएम2.5 का स्तर 88.4 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के करीब है, जो डब्ल्यूएचओ के मानक से 17 गुना ज्यादा है। इससे दिल्ली जैसे शहरों के लोग अपनी जिंदगी के कीमती 8.2 साल साल गंवा रहे हैं।

    अगर भारत के राष्ट्रीय मानक (40 माइक्रोग्राम) की बात करें, तो भी दिल्लीवासियों की जिंदगी 4.7 साल कम हो रही है। दिल्ली के प्रदूषण को राष्ट्रीय मानक तक लाने के लिए प्रदूषण को 50 प्रतिशत तक कम करना होगा।

    अन्य राज्यों का भी बुरा हाल

    दिल्ली अकेली नहीं है, जो इस जहरीली हवा की चपेट में है। बिहार में वायु प्रदूषण से 5.4 साल, हरियाणा में 5.3 साल और उत्तर प्रदेश में लोगों की औसतन उम्र 5 साल तक घट रही है।

    सरकार की ये है योजना

    केंद्र सरकार ने 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (एनकैप) की शुरुआत की थी, जिसमें देश के वायु प्रदूषण को 2024 तक 2017 के स्तर पर ले आने के लिए 20-30 प्रतिशत तक घटाने की योजना थी। 2022 में सरकार ने इस लक्ष्य को संशोधित किया, जिसके तहत 2026 तक वायु प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

    रिपोर्ट के मुताबिक अगर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सका तो देश के 140 करोड़ लोगों की उम्र औसतन दो साल और बढ़ जाएगी। 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में प्रदूषण को 2017 के मानक का केवल 10.7 प्रतिशत तक ही कम किया जा सका है। इससे 44.55 करोड़ लोगों की औसत आयु में छह महीने की वृद्धि का अनुमान है।

    क्या है एक्यूएलआई

    एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) ऐसा सूचकांक है, जो हवा में मौजूद महीन कणों के लंबे समय तक संपर्क और इंसान की आयु पर इसके असर को मापता है। ये दो भरोसेमंद शोधों पर आधारित है, जो प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच सीधा संबंध बताते हैं। ये इंडेक्स स्पष्ट करता है कि अगर प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए, तो हम अपनी ¨जदगी के साल बढ़ा सकते हैं।

    पीएम2.5 और पीएम10 पीएम2.5 हवा में घुले उन सूक्ष्म कणों को कहा जाता है, जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर के आसपास होता है। ये कण इंसानी बाल से 30 गुना छोटे होते हैं। ये हानिकारक कण बिजली संयंत्रों, वाहनों और औद्योगिक प्रक्रियाओं से हुए उत्सर्जन से पैदा होते हैं।

    वहीं पीएम10 हवा में घुले 10 माइक्रोमीटर तक के आकार वाले तत्व होते हैं, जो सांस के जरिये फेफड़ों में पहुंचकर जम जाते हैं। इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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