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    सुप्रीम कोर्ट पहुंचा AQI मॉनिटरिंग स्टेशन पर पानी के छिड़काव का मामला, केंद्र ने क्या दिया जवाब?

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 08:35 PM (IST)

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के आसपास पानी के छिड़काव के आरोपों का विरोध किया। कोर्ट ने सीपीसीबी को उपकरणों का विवरण देने का निर्देश दिया। वरिष्ठ वकील ने निगरानी स्टेशनों की क्षमता पर सवाल उठाया और पराली जलाने का मुद्दा भी उठा। एक वकील ने दिल्ली की हवा सुधारने के लिए कड़े उपाय करने की मांग की।

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    केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कड़ा विरोध किया (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में वायु प्रदूषण के आंकड़े ठीक करने के लिए वायु गुणवत्ता (एक्यूआइ) निगरानी स्टेशनों के आसपास पानी के छिड़काव के आरोपों और निगरानी स्टेशनों में लगे उपकरणों की क्षमता को लेकर सवाल उठाए जाने का केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कड़ा विरोध किया और कहा कि राजनीतिक दल ऐसे वीडियो फैला रहे हैं।

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    सरकार ने कहा कि निगरानी स्टेशनों में लगे उपकरण दुनिया में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ उपकरण हैं। शीर्ष अदालत ने दावे प्रतिदावे के बीच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को उपकरणों की प्रकृति, क्षमता और दक्षता का विवरण देते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इस मुद्दे पर कोर्ट बुधवार को फिर सुनवाई करेगा। ये निर्देश प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की पीठ ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के मामले में सुनवाई के दौरान दिए।

    निगरानी स्टेशनों की क्षमता पर भी सवाल

    इससे पहले मामले की सुनवाई में कोर्ट की मददगार न्यायमित्र वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि खबरों में आया है और वीडियो भी आए हैं कि निगरानी स्टेशनों के आसपास पानी का छिड़काव किया जा रहा है। इन आरोपों पर केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि पूरे शहर में पानी का छिड़काव हो रहा है। ऐसे वीडियो राजनीतिक दल फैला रहे हैं। लेकिन न्यायमित्र ने निगरानी स्टेशनों की क्षमता पर भी सवाल उठाया और कहा कि 999 के बाद ये रीडिंग लेना बंद कर देते हैं और इनमें गैप भी आता है।

    इस पर सरकार से हलफनामा मांगा जाना चाहिए। भाटी ने कहा कि दिल्ली में भले ही प्रदूषण हो लेकिन यहां निगरानी स्टेशनों पर लगे उपकरण दुनिया के सर्वश्रेष्ठ उपकरण हैं। इसके बाद पीठ ने सीपीसीबी को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दाखिल निगरानी उपकरणों की प्रकृति, क्षमता और दक्षता का ब्योरा दे। पराली जलने का भी मुद्दा उठा। अपराजिता सिंह ने कहा कि विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलने की गिनती कम हो रही है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) का भी मानना है कि गिनती कम हो रही है।

    पंजाब सरकार ने मांगा मुआवजा

    पराली जलने की घटनाओं की शुरुआत से लेकर मौजूदा समस्या तक का ब्योरा देते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के कटाई के लिए पर्याप्त समय नहीं होता इसलिए वो उसे जला देते हैं। इसके लिए उपकरणों को उपलब्ध कराने पर केंद्र ने काफी सब्सिडी दी है। लेकिन किसानों को उपकरण नहीं मिल रहे। पंजाब सरकार ने अर्जी दाखिल कर मांग की है कि प्रति कुंतल सौ रुपये मुआवजा दिया जाए तो वह इस समस्या से निपटने का प्रयास कर सकती है। इस पर केंद्र की ओर से ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि पंजाब शुरू से ऐसी ही अर्जियां दाखिल कर रहा है पिछली अर्जी का सरकार ने जवाब भी दिया था।

    हालांकि पीठ ने कहा कि पंजाब के हलफनामे के मुताबिक पराली जलने की घटनाओं में इस वर्ष कमी आयी है। भाटी ने बताया कि वन एवं पर्यावरण मंत्री ने पिछले दिनों एक बैठक की है। यह भी बताया कि राज्यों को निर्देश जारी किये गए हैं। उन्होंने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्रेप के तहत किये गए उपायों और लगाए गए प्रतिबंधों का भी हवाला दिया। जब एक याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायण ने दिल्ली की खराब हवा को सुधारने के लिए कुछ कड़े उपाय करने और साल भर प्रतिबंधों को लागू करने की मांग करते हुए अमेरिका का उदाहरण दिया तो भाटी ने कहा कि हमारा देश भी बहुत कुछ कर रहा है हम विकसित देशों से इस बारे में तुलना नहीं कर सकते। हमने बहुत कुछ किया है इसलिए वायु प्रदूषण की खराब स्थिति तो है लेकिन अति खराब स्थिति के दिनों में पहले से कमी आयी है।

    पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश में कहा कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्रमबद्ध तरीके से गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय वैज्ञानिक आंकड़ों के आधार पर विशेषज्ञों ने लिया है। कोर्ट के पास इससे निपटने की विशेषज्ञता नहीं है। पीठ ने कहा कि वह वायु प्रदूषण को देखते हुए सभी गतिविधियां रोकने की मांग स्वीकार करने का इच्छुक नहीं है क्योंकि राजधानी में आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए इन गतिविधियों पर निर्भर है। इसके अलावा कोर्ट ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के साथ साथ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों से कहा कि वे इस दिशा में जारी निर्देशों का पालन करें और ठोस कार्रवाई करें।