बालाकोट एयर स्ट्राइकः जब पाकिस्तान की एटमी ताकत की निकल गई थी हवा
पुस्तक में उन सारे सवालों के जवाब देने की कोशिश की गई है जो पाठक के जेहन में उठ सकते हैं। मसलन एयर स्ट्राइक के लिए तड़के साढ़े तीन बजे का समय ही क्यों चुना गया या इस हवाई हमले में मिराज-2000 विमानों का ही इस्तेमाल क्यों किया गया।

नई दिल्ली, ब्रजबिहारी। फरवरी, 2019 में पुलवामा में पाकिस्तान के कायराना आतंकी हमले के जवाब में बालाकोट में एयर स्ट्राइक के रूप में भारत के ऐतिहासिक और साहसिक सैन्य कदम ने संपूर्ण भूराजनीति को बदल कर रख दिया। इससे पहले तक देश का राजनीतिक नेतृत्व पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के विकल्प पर इसलिए विचार नहीं करता था क्योंकि उसे डर था कि जवाब में हमारा पड़ोसी परमाणु युद्ध की शुरुआत कर सकता है।
26 फरवरी को तड़के बालाकोट स्थित आतंकी ठिकानों को नष्ट कर भारतीय वायु सेना के जांबाज पायलटों ने इस डर को भी खत्म कर दिया। वरिष्ठ पत्रकार एवं अनुभवी रक्षा संवाददाता संजय सिंह और मुकेश कौशिक ने एयर स्ट्राइक की इस ऐतिहासिक कार्रवाई के सभी पहलुओं को एक पुस्तक में समेटने का प्रयास किया है। एयरस्ट्राइक@बालाकोट नामक यह पुस्तक दरअसल सरल भाषा में इस घटना को आम पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश है और कहना न होगा कि लेखक द्वय अपने इस प्रयास में सफल रहे हैं।
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पाकिस्तान के परमाणु शक्ति संपन्न होने के हौवे के कारण ही मुंबई में 26/11 के भीषण आतंकी हमले के बाद भी मनमोहन सिंह सरकार पाकिस्तान पर सीमित हवाई हमले से पीछे हट गई थी। मुंबई हमले के बाद भारत सरकार की सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में कुछ सदस्यों ने पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक का प्रस्ताव रखा था, लेकिन वह धरा का धरा रह गया और तत्कालीन सरकार कूटनीतिक प्रयासों से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरने तक सीमित रह गई थी। बहरहाल, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी ही मिट्टी के बने हुए हैं। उनकी अवधारणा और इरादे बिल्कुल स्पष्ट थे। पुलवामा आतंकी हमले के बाद उन्होंने सैन्य नेतृत्व से यह नहीं पूछा कि क्या किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें यह बताया कि क्या करना है। आपरेशन को किस तरह से अंजाम देना है, यह सैन्य नेतृत्व पर छोड़ दिया गया।

शीर्ष नेतृत्व की मजबूत इच्छाशक्ति के कारण ही बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले संभव हुए। इस एक घटना ने सदा के लिए भारत सरकार के लिए मानक ऊंचे कर दिए हैं। पाकिस्तान को भी सबक मिल गया कि अगर वह फिर भारत को लहूलुहान करने के लिए आतंकियों का इस्तेमाल करने का ऐसा दुस्साहस करता है तो उसे दंश झेलने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। हालांकि यह एयर स्ट्राइक ऐसे समय में हुई थी, जब देश आम चुनाव की ओर बढ़ रहा था। इसलिए इस पर जमकर राजनीति भी हुई। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने न सिर्फ पुलवामा हमले पर शक जताया बल्कि बालाकोट हवाई हमले को भी संदेह के घेरे में ला दिया। प्रस्तुत पुस्तक में लेखकों ने इस पर हुई राजनीति को चर्चा से दूर रखकर अच्छा काम किया है, क्योंकि इससे देश के लिए समर्पित भाव से सेवा करने वाली सैनिक बिरादरी के साथ बहुत बड़ा अन्याय होता।
पुस्तक में उन सारे सवालों के जवाब देने की कोशिश की गई है जो पाठक के जेहन में उठ सकते हैं। मसलन, एयर स्ट्राइक के लिए तड़के साढ़े तीन बजे का समय ही क्यों चुना गया या इस हवाई हमले में मिराज-2000 विमानों का ही इस्तेमाल क्यों किया गया जबकि भारत के पास सुखोई विमान भी उपलब्ध थे। पुस्तक की भाषा काफी सरल और प्रवाहमयी है। हालांकि संपादन संबंधी कुछ त्रुटियां रह गई हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए था। कुल मिलाकर, संजय सिंह और मुकेश कौशिक की यह पुस्तक आम के साथ खास पाठकों के लिए भी काफी उपयोगी साबित होगी।

पुस्तक का नामः एयर स्ट्राइक@ बालाकोट
लेखकः संजय सिंह और मुकेश कौशिक
प्रकाशकः नयी किताब प्रकाशन
मूल्यः 150 रुपये

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