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    दार्जिलिंग के स्कूलों में नहीं गूंजेगा बंगाल का राज्य गीत, गोरखालैंड प्रशासन सरकारी आदेश को ठुकराया

    Updated: Sat, 08 Nov 2025 02:39 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, दार्जिलिंग। दार्जिलिंग पहाड़ ने बंगाल सरकार के उस आदेश को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें सभी स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा में राज्य गीत 'बांग्लार माटी, बांग्लार जल' गाना अनिवार्य किया गया था। गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के प्रमुख कार्यकारी अनित थापा ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि यह नियम जीटीए क्षेत्र के किसी भी स्कूल पर लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जीटीए एक स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था है। दार्जिलिंग पहाड़ की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान, परंपरा और भाषाई विविधता है। इसे हमेशा सम्मान मिलना चाहिए। यहां के लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हैं इसलिए, हमारे स्कूलों में वही पुरानी परंपरा जारी रहेगी। दार्जिलिंग के स्कूलों में वर्षों से राष्ट्रगान के बाद अपना स्कूल गीत और प्रार्थना गीत गाने की प्रथा चली आ रही है और आगे भी यही जारी रहेगा।मालूम हो कि राज्य सरकार ने 6 नवंबर को आदेश जारी कर सभी सरकारी व सहायता प्राप्त स्कूलों में राज्य गीत गाना अनिवार्य किया था। शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने इसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंजूरी से लागू बताया था। लेकिन जीटीए के इस फैसले के बाद दार्जि¨लग, कालिम्पोंग, कर्सियांग और मिरिक के लगभग 1200 स्कूलों में राज्य गीत नहीं गाया जाएगा। पहाड़ में इस फैसले का व्यापक स्वागत हुआ है। स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान की जीत बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम बंगाल का हिस्सा हैं, लेकिन हमारी संस्कृति अलग है। इसे मिटाया नहीं जा सकता।

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    दार्जिलिंग के स्कूलों में नहीं गूंजेगा बंगाल का राज्य गीत, गोरखालैंड प्रशासन सरकारी आदेश को ठुकराया (सांकेतिक तस्वीर)

    जागरण संवाददाता, दार्जिलिंग। दार्जिलिंग पहाड़ ने बंगाल सरकार के उस आदेश को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें सभी स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा में राज्य गीत 'बांग्लार माटी, बांग्लार जल' गाना अनिवार्य किया गया था।

    गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) के प्रमुख कार्यकारी अनित थापा ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि यह नियम जीटीए क्षेत्र के किसी भी स्कूल पर लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जीटीए एक स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था है।

    दार्जिलिंग पहाड़ की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान, परंपरा और भाषाई विविधता है। इसे हमेशा सम्मान मिलना चाहिए। यहां के लोगों की भावनाएं इससे जुड़ी हैं इसलिए, हमारे स्कूलों में वही पुरानी परंपरा जारी रहेगी।

    दार्जिलिंग के स्कूलों में वर्षों से राष्ट्रगान के बाद अपना स्कूल गीत और प्रार्थना गीत गाने की प्रथा चली आ रही है और आगे भी यही जारी रहेगा।मालूम हो कि राज्य सरकार ने 6 नवंबर को आदेश जारी कर सभी सरकारी व सहायता प्राप्त स्कूलों में राज्य गीत गाना अनिवार्य किया था।

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    शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने इसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंजूरी से लागू बताया था। लेकिन जीटीए के इस फैसले के बाद दार्जि¨लग, कालिम्पोंग, कर्सियांग और मिरिक के लगभग 1200 स्कूलों में राज्य गीत नहीं गाया जाएगा। पहाड़ में इस फैसले का व्यापक स्वागत हुआ है। स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान की जीत बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम बंगाल का हिस्सा हैं, लेकिन हमारी संस्कृति अलग है। इसे मिटाया नहीं जा सकता।