Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'बिहार में हुई SIR की प्रक्रिया वोटर-फ्रेंडली', सुप्रीम कोर्ट ने 11 दस्तावेजों को बताया मतदाता हितैषी

    Updated: Wed, 13 Aug 2025 11:27 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने बिहार मतदाता सूची विशेष सघन पुनरीक्षण प्रक्रिया को मतदाता हितैषी बताते हुए चुनाव आयोग द्वारा तय 11 दस्तावेजों की सूची को मतदाताओं के अनुकूल बताया। याचिकाकर्ताओं ने दस्तावेजों की उपलब्धता पर सवाल उठाए जिस पर कोर्ट ने कहा कि एसआईआर में दस्तावेजों की संख्या बढ़ाना प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाता है।

    Hero Image
    बिहार मतदाता सूची मतदाताओं के अनुकूल: सुप्रीम कोर्ट।(फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार मतदाता सूची विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआइआर) प्रक्रिया में पहचान साबित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा तय 11 दस्तावेजों की सूची को मतदाता हितैषी बताते हुए इस प्रक्रिया को मतदाताओं के अनुकूल कहा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    याचिकाकर्ताओं की ओर से 11 दस्तावेजों पर सवाल उठाए जाने और बहुत कम जनसंख्या के पास इनके होने की दलीलों पर शीर्ष अदालत ने कहा कि मतदाता सूची के संक्षिप्त पुनरीक्षण में तय सात दस्तावेजों के बजाए एसआइआर में पहचान साबित करने के लिए तय 11 दस्तावेज दर्शाते हैं कि यह प्रक्रिया मतदाताओं के ज्यादा अनुकूल है।

    संवैधानिक अधिकार और संवैधानिक पात्रता का है विवाद

    कोर्ट ने प्रारूप मतदाता सूची से बड़ी संख्या में नाम हटाने के चुनाव आयोग के अधिकार पर सवाल खड़ा करने और लोगों के मतदान के अधिकार की दलील पर कहा कि यह विवाद संवैधानिक अधिकार और संवैधानिक पात्रता का है। मामले में गुरुवार को भी बहस जारी रहेगी।

    न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जोयमाल्या बाग्ची की पीठ एसआइआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। गैर सरकारी संगठन एडीआर और कई विपक्षी दलों के नेताओं ने एसआइआर को चुनौती दी है।

    बिहार में ज्यादातर जनसंख्या के पास तय 11 दस्तावेज नहीं: अभिषेक मनु सिंघवी

    बुधवार को एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने मतदाता सूची में नहीं शामिल किये गए 65 लाख लोगों के नाम और कारण वेबसाइट पर डालने का भी अंतरिम आदेश मांगा। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी ने पहचान साबित करने के लिए तय 11 दस्तावेजों पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार में ज्यादातर जनसंख्या के पास ये दस्तावेज नहीं हैं।

    आधार को न स्वीकार करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि ज्यादातर आबादी के पास आधार है और इसे न स्वीकार किया जाना लोगों को बाहर कर देगा। उनकी दलीलों पर पीठ ने कहा कि संक्षिप्त पुनरीक्षण में सात दस्तावेज तय थे और एसआइआर में बढ़ा कर 11 कर दिया गया है जो दर्शाता है कि प्रक्रिया मतदाताओं के ज्यादा अनुकूल है। हम आपकी ये दलील मानते हैं कि आधार स्वीकार न करना बाहर करने वाला है लेकिन दस्तावेजों की संख्या बढ़ाए जाने से वास्तव में प्रक्रिया समावेशी बनती है न कि बाहर करने वाली।

    हालांकि सिंघवी ने असहमति जताते हुए कहा कि भले ही दस्तावेजों की संख्या ज्यादा हो लेकिन बिहार की जनसंख्या के पास उनकी उपलब्धता देखी जाए तो कवरेज बहुत कम है। कोर्ट ने कहा कि अगर चुनाव आयोग सभी 11 दस्तावेज मांगता तो यह मतदाता विरोधी होती लेकिन उनमें से कोई एक मांगना ऐसा नहीं है। बात पासपोर्ट और शैक्षणिक प्रमाणपत्रों पर भी हुई और जब सिंघवी ने कहा कि बहुत कम जनसंख्या के पास ये दस्तावेज हैं।

    पीठ ने कहा कि हमें बिहार को इस तरह पेश नहीं करना चाहिए। ऑल इंडिया सर्विसेज में सबसे अधिक अभ्यर्थी इसी राज्य के होते हैं। राज्य में 36 लाख पासपोर्ट धारकों का कवरेज अच्छा प्रतीत होता है। वकील गोपाल शंकर नारायण ने पहचान के 11 दस्तावेजों और जारी नियमों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग को इसका अधिकार ही नहीं है।

    मनमाने ढंग से 2003 की कटऑफ तय कर दी। पीठ ने कहा कि यह दलील मानी जाए तो आयोग कहीं भी ये प्रक्रिया नहीं कर सकता। शंकरनारयण का कहना था कि रिवीजन तय प्रकिया से होना चाहिए और ये प्रक्रिया गैरकानूनी है। क्योंक मतदाता को हटाने की प्रक्रिया तय है उसका पालन किये बगैर बड़ी संख्या में लोग हटाए जा रहे हैं। 

    यह भी पढ़ें- राहुल गांधी की 'जान को खतरा' किससे? कोर्ट में किए गए दावे में नया मोड़, वकील ने बताई पूरी बात